Shri Durga Saptashati Sachitra (श्री दुर्गासप्तशती सचित्र) PDF in Hindi

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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-

पुस्तक का नाम (Name of Book)श्री दुर्गासप्तशती सचित्र / Shri Durga Saptashati Sachitra PDF
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Geeta Press
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)3 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)240
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)Religious

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

Shri Durga Saptashati Sachitra in Hindi PDF Summary

श्री दुर्गासप्तशती सचित्र एक हिंदी पुस्तक है जिसमें देवी दुर्गा की पूजा के लिए 700 श्लोकों वाली दुर्गासप्तशती की कथा और पूजा विधि का वर्णन है। यह पुस्तक गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई है।

पुस्तक की शुरुआत देवी दुर्गा की महिमा और पूजा के महत्व के वर्णन से होती है। इसके बाद, दुर्गासप्तशती के 700 श्लोकों का सरल हिंदी में अनुवाद दिया गया है। प्रत्येक श्लोक के बाद, उसका अर्थ और व्याख्या भी दी गई है।

पुस्तक में दुर्गासप्तशती की पूजा विधि का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। पूजा विधि के लिए आवश्यक सामग्री, पूजा की प्रक्रिया और पूजा के बाद के अनुष्ठानों का वर्णन किया गया है।

पुस्तक के अंत में, दुर्गासप्तशती के कुछ महत्वपूर्ण मंत्रों का भी वर्णन किया गया है।

पुस्तक की प्रमुख विशेषताएं:

  • देवी दुर्गा की पूजा के लिए दुर्गासप्तशती की कथा और पूजा विधि का सरल हिंदी में वर्णन।
  • प्रत्येक श्लोक के बाद, उसका अर्थ और व्याख्या।
  • दुर्गासप्तशती की पूजा विधि का विस्तार से वर्णन।
  • दुर्गासप्तशती के कुछ महत्वपूर्ण मंत्रों का वर्णन।

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥

दुर्गासप्तशती हिंदू-धर्मका सर्वमान्य ग्रन्थ है। इसमें भगवतीकी कृपाके सुन्दर इतिहासके साथ ही बड़े-बड़े गूढ़ साधन – रहस्य भरे हैं । कर्म, भक्ति और ज्ञानकी त्रिविध मन्दाकिनी बहानेवाला यह ग्रन्थ भक्तोंके लिये वांछाकल्पतरु है । सकाम भक्त इसके सेवनसे मनोऽभिलषित दुर्लभतम वस्तु या स्थिति सहज ही प्राप्त करते हैं और निष्काम भक्त परम दुर्लभ मोक्षको पाकर कृतार्थ होते हैं।

राजा सुरथसे महर्षि मेधाने कहा था— ‘तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम् । आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा ॥ महाराज ! आप उन्हीं भगवती परमेश्वरीकी शरण ग्रहण कीजिये । वे आराधनासे प्रसन्न होकर मनुष्योंको भोग, स्वर्ग और अपुनरावर्ती मोक्ष प्रदान करती हैं।’

इसी के अनुसार आराधना करके ऐश्वर्यकामी राजा सुरथने अखण्ड साम्राज्य प्राप्त किया तथा वैराग्यवान् समाधि वैश्यने दुर्लभ ज्ञानके द्वारा मोक्षकी प्राप्ति की । अबतक इस आशीर्वादरूप मन्त्रमय ग्रन्थके आश्रयसे न मालूम कितने आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु तथा प्रेमी भक्त अपना मनोरथ सफल कर चुके हैं। हर्षकी बात है कि जगज्जननी भगवती श्रीदुर्गाजी की कृपासे वही सप्तशती संक्षिप्त पाठ-विधिसहित पाठकोंके समक्ष पुस्तकरूपमें उपस्थित की जा रही है। इसमें कथा – भाग तथा अन्य बातें वे ही हैं, जो ‘कल्याण’ के विशेषांक संक्षिप्त मार्कण्डेय – ब्रह्मपुराणांक’ में प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ उपयोगी स्तोत्र और बढ़ाये गये हैं ।

इसमें पाठ करने की विधि स्पष्ट, सरल और प्रामाणिक रूपमें दी गयी है। इसके मूल पाठको विशेषतः शुद्ध रखनेका प्रयास किया गया है। आजकल प्रेसोंमें छपी हुई अधिकांश पुस्तकें अशुद्ध निकलती हैं, किंतु प्रस्तुत पुस्तकको इस दोषसे बचानेकी यथासाध्य चेष्टा की गयी है। पाठकोंकी सुविधाके लिये कहीं-कहीं महत्त्वपूर्ण पाठान्तर भी दे दिये गये हैं। शापोद्धारके अनेक प्रकार बतलाये गये हैं। कवच, अर्गला और कीलकके भी अर्थ दिये गये हैं ।

वैदिक-तान्त्रिक रात्रिसूक्त और देवीसूक्तके साथ ही देव्यथर्वशीर्ष, सिद्ध कुंजिकास्तोत्र, मूल सप्तश्लोकी दुर्गा, – श्रीदुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला, श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र, श्रीदुर्गामानसपूजा और देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रको भी दे देनेसे पुस्तककी उपादेयता विशेष बढ़ गयी है। नवार्ण-विधि तो है ही, आवश्यक न्यास भी नहीं छूटने पाये हैं । सप्तशतीके मूल श्लोकोंका पूरा अर्थ दे दिया गया है। तीनों रहस्योंमें आये हुए कई गूढ़ विषयोंको भी टिप्पणीद्वारा स्पष्ट किया गया है। इन विशेषताओंके कारण यह पाठ और अध्ययनके लिये बहुत ही उपयोगी और उत्तम पुस्तक हो गयी है।

सप्तशती के पाठ में विधिका ध्यान रखना तो उत्तम है ही, उसमें भी सबसे उत्तम बात है भगवती दुर्गामाताके चरणोंमें प्रेमपूर्ण भक्ति । श्रद्धा और भक्तिके साथ जगदम्बाके स्मरणपूर्वक सप्तशती का पाठ करनेवालेको उनकी कृपाका शीघ्र अनुभव हो सकता है।

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