अलादीन और जादुई चिराग | Aladin Aur Jadui Chirag

Aladin Aur Jadui Chirag Book PDF Details:

पुस्तक का नाम (Name of Book)अलादीन और जादुई चिराग / Aladin Aur Jadui Chirag
पुस्तक का लेखक (Name of Author)अनाम / Anonymous
पुस्तक की भाषा (Language of Book)Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)10 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)119
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)कहानी / Story

Aladin Aur Jadui Chirag Book Summary

“अलादीन का जादुई चिराग” एक प्रसिद्ध और प्रिय कहानी है जो हमें एक युवा लड़के अलादीन की कहानी सुनाती है। यह कहानी उसके जीवन के रोमांचक और चमत्कारिक पलों को दर्शाती है जब उसे एक जादुई चिराग मिलता है।

अलादीन एक गरीब लड़का है जो बाजार में चोरी करके अपने और अपनी माता-पिता की जरूरतों को पूरा करता है। एक दिन, उसे एक जादुई चिराग मिलता है जो उसे एक जादुई दुनिया में ले जाता है। वहां उसे एक जादुई जिन्न मिलता है जो उसे तीन विशेष वास्तुओं की मांग करता है। अलादीन उन वास्तुओं को प्राप्त करता है और उसे अपने लाभ के लिए उपयोग करता है।

इस कहानी में हम देखते हैं कि अलादीन कैसे अपनी जादुई शक्तियों का उपयोग करके अपने जीवन को सुखी और समृद्ध बनाता है। उसे अपने दुश्मनों से लड़ना पड़ता है और अपने प्रेमी को जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इस कहानी में हमें यह भी दिखाया जाता है कि जब हम अपनी शक्तियों का सही उपयोग करते हैं, तो हम किसी भी मुश्किल से निपट सकते हैं और अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।

अनुक्रमविषयपृष्ठ
पहला भागअलादीन का जादुई चिराग7
नकली चाचा12
गुफा से मुक्ति17
चिराग का कमाल20
भयानक लड़ाई और शहजादी22
शादी में अड़चन27
कैदी और शहजादी29
डरपोक रहमान34
अलादीन की शादी38
अलादीन और शहजादी का मिलन43
दूसरा भागजादूगर का खतरनाक खेल48
अलादीन का वियोग55
अलादीन की जीत61
तीसरा भागमृत जादूगर और उसका शैतान गुरु बैसूफ73
रहमान और जादूगर83
ख्वाजा सरा93
सलीमा98
अलादीन जादूगर की कैद में106
ईश्वर की अनुपम लीला110
अफगानिस्तान पर विजय114
महाजादूगर बैसूफ का अंत116

प्रस्तुत पुस्तक के कुछ अंश

पहला भाग

अलादीन का जादुई चिराग

बहुत पुरानी बात है। किसी समय अफगानिस्तान के एक छोटे से गांव में, मुस्तफा नाम का एक गरीब आदमी रहता था। धन के अभाव में उसका जीवन बड़ी कठिनाई से व्यतीत हो रहा था। उसका परिवार तीन सदस्यों का था। स्वयं मुस्तफा, उसकी पत्नी तथा उनका एकमात्र बेटा। जिसका नाम उन्होंने बड़े प्यार से ‘अलादीन’ रखा था।

मुस्तफा बहुत गरीब था। जैसे-तैसे वह लोगों के कपड़े सी-सी कर अपना तथा अपने परिवार का पेट पालता, क्योंकि लोगों के कपड़े सीना ही उसका एकमात्र रोजगार था।

मुस्तफा का चूंकि एक ही बेटा था, अतः वह अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर एक बड़ा आदमी बनाना चाहता था। उसकी इच्छा यही थी कि उसका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने और उसका नाम रोशन करे, परंतु अलादीन की पढ़ाई-लिखाई में कोई रुचि नहीं थी। किताबों से तो उसे सख्त नफरत थी। वह मनमौजी था। उसे न तो अपने पिता की भावनाओं की चिंता थी और न ही अपने भविष्य की। उसका सारा दिन खेल-कूद में ही व्यतीत होता था।

मुस्तफा को हर समय अलादीन की ही चिंता बनी रहती। मुस्तफा तरह-तरह से अलादीन को समझाने की कोशिश करता, परंतु अलादीन तो मानो चिकना घड़ा था। मुस्तफा की किसी भी बात का उस पर कोई असर नहीं होता। अलादीन को समझाने का अपना हर संभव प्रयास करने के बाद मुस्तफा बहुत निराश हो गया। चूंकि वह लोगों के कपड़े सी-सी कर अपना गुजारा करता था, अतः हारकर मुस्तफा ने अलादीन को भी दर्जी का कार्य सिखाने का निश्चय किया। उसने अलादीन से इस बारे मे बात की, परतु अलादीन ने दर्जी का काम सीखने से साफ इनकार कर दिया।

अलादीन का इनकार सुनकर मुस्तफा और भी हताश हो गया। वह बेचारा यह सोचकर दिन-रात इसी चिंता में घुला जा रहा था कि उसकी मौत के बाद

अलादीन का क्या होगा? यह बात-मुस्तफा को अंदर-ही-अंदर खाए जा रही थी। अलादीन की चिंता में घुलता हुआ मुस्तफा एक दिन बीमार पड़ गया। काफी इलाज कराने के बाद भी उसकी हालत में कोई सुधार न हुआ। उसकी बीमारी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली गई और एक दिन मुस्तफा अपने बेटे का गम सीने में दबाए हुए ही इस दुनिया से कूच कर गया। अब अलादीन अपनी मां के साथ इस दुनिया में अकेला रह गया था।

समय गुजरता रहा और समय गुजरने के साथ-साथ अलादीन की उम्र भी बढ़ती रही। इन्हीं हालातों में कुछ समय बाद अलादीन जवान हो गया, परंतु जवान होने के बाद भी उसके स्वभाव में कोई फर्क नहीं आया। अपनी जिम्मेदारियों की परवाह किए बिना, वह अब भी बच्चों के साथ खेल-कूद में ही व्यस्त रहता। अलादीन के लापरवाही भरे स्वभाव पर उसकी मां बहुत कुढ़ा करती थी, परंतु एकमात्र बेटे की ममता और स्नेह से बंधी होने के कारण वह कभी अलादीन पर दबाव नहीं डाल पाती थी।
एक दिन अलादीन बस्ती के बाहर, अपने कुछ दोस्तों के साथ कंचे खेल रहा था। वह इस खेल में निरंतर हार रहा था, इसलिए वह नाराज था और अपने दोस्तों से कह रहा था- “मेरे ऊपर हंसो मत, मैं आखिर में जरूर जीतूंगा।”

अचानक वहां पर एक सौदागर के समान लगने वाला व्यक्ति आया। उसने सिर पर लाल पगड़ी बांधी हुई थी तथा हाथ में एक थैला लटका रखा था। पास आकर वह अलादीन से बोला- “क्या तुम्हारा ही नाम अलादीन है?” एक अजनबी के मुख से अपना नाम सुनकर अलादीन पहले तो चौंका, फिर बोला- “जी हां! मेरा ही नाम अलादीन है, परंतु आप कौन हैं? मैंने तो आपको पहले कभी नहीं देखा और न ही मैं आपको जानता हूं। फिर आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?”

“तुम मुझे नहीं जानते बेटे, मगर मैं तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूं।” सौदागर के समान लगने वाला वह व्यक्ति बड़े प्यार से बोला- “क्योंकि मैं तुमसे उसी समय से दूर हूं, जब तुम छोटे बच्चे थे। तुम्हारा पिता मुस्तफा भी तब जीवित था।”

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