कनेर का फूल | Kaner Ke Phool

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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-

पुस्तक का नाम (Name of Book)कनेर का फूल | Kaner Ke Phool
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Hareram Singh
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)400 KB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)42
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)Story

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

“कनेर के फूल” एक हिंदी उपन्यास है, जिसे हरेराम सिंह ने 2023 में प्रकाशित किया। यह कहानी एक युवक बुधू के बारे में है, जो सोन नदी के किनारे एक छोटे से गांव में पल बढ़ा। बुधू एक बुद्धिमान और उत्साही छात्र है, लेकिन वह बहुत ही गरीब है। उसके परिवार को गुजारा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और वह अक्सर अपने परिवार का सहारा बनने के लिए खेतों में दिन-रात काम करने को मजबूर होता है।

अपनी कठिनाइयों के बावजूद, बुधू को शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय लेने की तीव्र इच्छा होती है। वह स्कूल में मेहनत करता है और आखिरकार हाई स्कूल जाने के लिए छावनी जीतता है। हालांकि, उसकी खुशियां बहुत कम समय के लिए ही बनी रहती हैं जब उसके पिता का अचानक निधन हो जाता है। बुधू को स्कूल छोड़कर घर वापस जाने के लिए अपनी मां और छोटे भाइयों की मदद करनी पड़ती है।

बुधू के पिता के मरने के बाद, उसका जीवन और भी कठिन हो जाता है। वह अपने परिवार का सहारा बनाने के लिए लम्बी घंटों तक काम करने के लिए मजबूर हो जाता है, और उसे खुद या अपने अध्ययन के लिए कोई समय नहीं मिलता है। वह अब निराश और उदास महसूस करने लगता है।

एक दिन, बुधू एक रहस्यमय बुढ़िया आदमी से मिलता है, जिसका नाम कनेर है। कनेर एक ज्ञानी और दयालु आदमी है, और वह बुधू को अपने साथ ले लेता है। उसने बुधू को शिक्षा और आत्म-विश्वास के महत्व के बारे में सिखाया। वह बुधू को प्राकृतिक सौंदर्य के महत्व और दुनिया के साथ साझा रहने के महत्व के बारे में भी सिखाता है।

कनेर की मदद से, बुधू अपनी चुनौतियों को पार करता है और अपने सपनों को पूरा करता है। उसका आखिरकार फिर से स्कूल जाने और अपनी शिक्षा पूरी करने में सफलता मिलता है। फिर वह एक सफल करियर और खुश जीवन जीता है।

“कनेर के फूल” एक आशा, आत्मसमर्पण और मानव परिवर्तन की शक्ति की कहानी है। यह कहानी पाठकों को उनके सपनों पर कभी भी उनकी कठिनाइयों के बावजूद कभी भी हार नहीं मानने के लिए प्रेरित करेगी, चाहे वो कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़े।”कनेर के फूल” एक कहानी है जो पाठकों को उम्मीद, सहनशीलता और मानव भावनाओं के अद्वितीय प्रेम की गहरी अवबोधन कराएगी, चाहे वो कितनी भी कठिनाइयों का सामना करें।

कलिकाल

जीवन की सुस्त रफ्तारों को उसने और सुस्त कर दिया था। जीवन में उल्लास की जगह जहर मिला दिया था। हमेषा काम-काम की रट लगाता और काम करते-करते जब स्टॉफ थककर चुर हो जाते, तब उसका दमित मन खुष हो उठता- लगता उसके पृतकों की आत्मा में कुछ समय के लिए ठंढ़क पहुँची और अन्दर – अन्दर माँ को याद करता। जिस माँ से वह अतिषय प्यार करता था;

उसकी माँ ने उसके लिए क्या नहीं की? सारे चमरौने में उसकी माँ बदनाम हो गई थी। बाप बेलुरा था। घर में फूटी कौड़ी तक नहीं थी । ताड़ के नीचे झोपड़ी बना कर रहती थी। कितना हल्ला-गुल्ला करने पर बुधुआ के बाप ने मिट्टी का घर बनाया।

जब घर बनकर तैयार हुआ – बुधुआ उछल-उछलकर आंगन से दरवाजे तक जाता और दरवाजे से आंगन तक। फिर भी न जाने क्यों बुधुआ का बाप महेष राम उदास था? मिट्टी का घर पर जो छप्पर लगे थे, उसे खुद महेष ने बनाया था, किन्तु छाजने के लिए उसके पास बाँस नहीं थे। बुधुआ की माँ तितिलिया बुबआने गई थी और बाबुसाहब के गोड़ पर गिरकर कही थी

“मालिक मेरे चार बच्चें हैं; उसमें छोटका बुधुआ आप ही का खून है। यह बात – सारा चमरौना जानता है। तीन महेष के वे सब बिन घर के कैसे रहेंगे? कितना कहने पर तो बुधुआ का बाप मिट्टी के घर के बनाने के लिए तैयार हुआ । वरना वह तो मुझसे बोलना ही छोड़ दिया था । मालिक, आप ही मेरे एक सहारा हैं? बाँस के लिए किसके दरवाजे जाऊँ? जात-बिरादर तो कबके बेगाने हो गए !”

हुल्लास बाबु तिलिलिया के बात सुन रहे थे। केवल “हूँ हाँ कर रहे थे, ताकि कोई सुन न ले । भोर का समय था। कोई पहर भर समय अभी सूरज उगने में शेष था । वह बुधुआ और उसके तीनों भाईयों सुधुआ, महुआ और खदेरन को सोते छोड़ चुपके से बाबुसाहब के दालान पर आई थी। उस रात महेष राम घर पर नहीं था । बगल के गाँव सोनीपुर में न्योता पठाने गया था।

तितिलिया उसके न होने की वजह से निष्चित थी। फिर भी वह हड़बड़ में थी। सूरज निकलने से पहले घर निकल जाना चाहती थी; ताकि कोई देख न ले। उल्लास सिंह ने कहा -” ठीक है, जाओ। कल पछेआरी बाग में जो बाँस की कोठी है, उससे जितना बाँस की जरूरत हो महेष काट ले।

लेकिन अगर कोई मेरे घर से टोका-टोकी करे तो उससे मुँह मत लगना। कहना हुल्लास ठाकुर बोले हैं। ठीक है, भिनुसार होने वाला है, घर जाओ!” तितिलिया ज्यो दलान से बाहर निकलना चाही कि हुल्लास सिंह ने उसकी कमर में हाथ लगा दिया। तितिलिया मुस्कुराई पर अगले ही क्षण प्रतिकार भी की। “छोड़िए, कोई देख लेगा।

बुधुआ तो भूखे मर ही रहा है। क्या एक और जनमाकर उसे भी मारना हैं?” न जाने क्यों हुल्लास को तितिलिया की यह बात कैसी तो लगी और अगले पल उसकी कमर पर से स्वतः हाथ हट गया।

अनुक्रम
कलिकाल
पाकिस्तानी सिम
झबरा कुत्ता
सपने टूटे थे….
कनेर के फूल
मेरे पास आओ तो!
राम के वारिस
जय हिंद सर

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कनेर का फूल में क्या लिखा है?

“कनेर के फूल” एक हिंदी उपन्यास है जिसमें विभिन्न मुद्दों और संवादों के माध्यम से विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है। इस कहानी में कुछ मुख्य विषय शामिल हैं.

कनेर का फूल के लेखक कौन है?

इसके रचयिता हरेराम सिंह हैं।

कनेर का फूल में कितने अनुक्रम हैं?

“कनेर के फूल” में कुल मिलाकर 8 अनुक्रम हैं।

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