भारतीय संस्कृति के स्वर : महादेवी द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Bhartiya Sanskriti Ke Swar by Mahadevi Hindi PDF Book

भारतीय संस्कृति के स्वर ( Bhartiya Sanskriti Ke Swar by Mahadevi Verma ) के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक का नाम (Name of Book)भारतीय संस्कृति के स्वर / Bhartiya Sanskriti Ke Swar
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Mahadevi Verma
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)27 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)100
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)History

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

ग्रन्थ शब्द के समान निबन्ध भी अपने मूल अर्थ को खोकर रूढ़ हो गया है। उसका शाब्दिक अर्थ तो नि+बन्ध+ धम प्रत्यय ही है जिसका अर्थ बांधना है, किन्तु अब वह साहित्य की एक इतनी महत्वपूर्ण विधा के अर्थ में प्रयुक्त होता है जो कविता का भी निकष या कसौटी कहा जाता है ।

पहले जब भोजपत्र लिखने के लिए प्रयुक्त होता था तब उन छिन्न पत्रों को बांधकर रखना आवश्यक हो जाता था, अतः इस बन्धन क्रिया को निबन्ध कहना स्वाभाविक था । कालान्तर में जब यह बन्धन साहित्यिक विधा के लिए रूढ़ हो गया, तब निःशेष बंध या भावों या विचारों की श्रृंखलित सरणि ही उसकी सीमा हो गई। हिन्दी में समानांतर अनेक शब्द प्रचलित हैं, परन्तु वे प्रबन्ध, रचना, लेख आदि निबन्ध की प्रकृति से भिन्न हैं। रचना और लेख जैसे शब्द तो अपनी अतिव्याप्ति के कारण निबन्ध से भिन्न रहेंगे ही, पर प्रबन्ध जो किसी समय निबन्ध का समानार्थक था अब उससे सर्वथा भिन्न है ।

किसी विषय की शोधपूर्ण विशद व्याख्या के अर्थ में प्रयुक्त होता है ।
निबन्ध शब्द तो मूलतः संस्कृत का है, परन्तु अब कुछ विद्वान उसे अंग्रेजी के समानार्थक एस्से (Essay) के रूप में विकसित मानते हैं। वह शब्द मूलत: लेटिन से अंग्रेजी में आया है और अंग्रेजी में उसे जो स्वच्छन्दता, लघुता आदि विशेषताएं प्राप्त हुई हैं वे हिन्दी के निबन्ध शब्द में नहीं है ।

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