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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | Teesra Netra Part 2 (तीसरा नेत्र भाग – 2) PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Arun Kumar Sharma |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 104 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 454 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
Teesra Netra Part 2 in Hindi PDF Summary
तीसरा नेत्र भाग – 2 अरुण कुमार शर्मा द्वारा लिखी गई एक हिंदी पुस्तक है। यह पुस्तक तीसरा नेत्र भाग – 1 की अगली कड़ी है। इस पुस्तक में लेखक ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा के अनुभवों को साझा किया है।
लेखक ने इस पुस्तक में अपने गुरु जी से मिले ज्ञान और अनुभवों को भी साझा किया है। पुस्तक में लेखक ने आध्यात्मिक साधना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की है। इन पहलुओं में ध्यान, योग, मंत्र, तंत्र, ज्योतिष आदि शामिल हैं।
लेखक ने इस पुस्तक में कुछ ऐसे अद्भुत अनुभवों का भी वर्णन किया है जो उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान किए हैं। इन अनुभवों में भूत-प्रेतों से संपर्क, देवताओं के दर्शन, सिद्धि प्राप्ति आदि शामिल हैं।
तीसरा नेत्र भाग – 2 पुस्तक का सारांश इस प्रकार है:
लेखक अरुण कुमार शर्मा ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा के अनुभवों को साझा किया है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने तीसरा नेत्र खोला और अदृश्य दुनिया को देखा। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की शक्ति का उपयोग करके लोगों की मदद की और बुरी शक्तियों से लोगों को बचाया।
पुस्तक में लेखक ने विभिन्न प्रकार के विषयों पर भी लिखा है, जैसे कि कुंडलिनी जागरण, चक्र जागरण, ध्यान, समाधि, मंत्र, यंत्र, तंत्र, ज्योतिष, वास्तु और आयुर्वेद। उन्होंने इन विषयों को सरल और आसान भाषा में समझाया है।
पुस्तक का उद्देश्य लोगों को आध्यात्मिकता की दुनिया के बारे में बताना है। लेखक का मानना है कि आध्यात्मिकता के माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मा को जान सकता है और एक बेहतर जीवन जी सकता है।
तीसरा नेत्र भाग – 2 पुस्तक की विशेषताएं:
- पुस्तक का भाषा सरल और सुबोध है।
- लेखक ने पुस्तक में कठिन शब्दों और अवधारणाओं को आसान भाषा में समझाया है।
- पुस्तक में लेखक की आध्यात्मिक यात्रा के कुछ रोचक और रोमांचकारी अनुभवों का भी वर्णन किया गया है।
- पुस्तक में आध्यात्मिक साधना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है।
तीसरा नेत्र भाग – 2 पुस्तक किसके लिए है?
यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए है जो आध्यात्मिकता में रुचि रखते हैं। यह पुस्तक उन लोगों के लिए भी है जो अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू करना चाहते हैं।
मैंने पुस्तक के मूल पाठ को कुछ हिस्सों में संपादित किया है ताकि इसे और अधिक सुगम और समझने में आसान बनाया जा सके। मैंने कुछ अनावश्यक विवरणों को हटा दिया है और कुछ वाक्यों को संक्षिप्त किया है। मैंने पाठ को भी अधिक रोचक और आकर्षक बनाने के लिए कुछ शब्दों और वाक्यांशों को बदल दिया है।
मैंने पुस्तक के प्रारूप को भी कुछ हिस्सों में बदल दिया है। मैंने प्रत्येक अध्याय को एक अलग अनुभाग में रखा है और प्रत्येक अनुभाग को एक शीर्षक दिया है। मैंने उप-अध्यायों को भी जोड़ा है ताकि पाठ को और अधिक सुव्यवस्थित बनाया जा सके।
तीसरा नेत्र’ का द्वितीय खण्ड आपके समक्ष प्रस्तुत हैं। इस ‘खण्ड’ के विषयों को संकलित करने में विशेष रूप से किसी प्रकार की समस्या उपस्थिति नहीं हुई। लेकिन संकलन काल में अनेक प्रकार की जिज्ञासाओं का उदय अवश्य हुआ हृदय में पिता श्री अरुण कुमार जी शर्मा द्वारा उन महत्वपूर्ण जिज्ञासाओं का समाधान अति आवश्यक था। इसके लिए सर्वप्रथम मैंने अपनी प्रमुख जिज्ञासाओं की प्रश्न रूप मैं एक सूची बनाई और उसे पिताश्री के सम्मुख प्रस्तुत की।
उन्होंने सूची देखकर कहा- ऐसे नहीं होगा। जिज्ञासा गम्भीर हैं अपने आपमें तुम प्रश्न करो, और मैं उसका समुचित उत्तर दूंगा। यह सुनकर प्रसन्नता हुई मुझे। एक दिन अवसर देखकर मैने पूछा हिमालय और तिब्बत यात्रा काल में आपने जिन सिद्ध साधकों और सन्त महात्माओं का दर्शन लाभ किया। उनसे आपका साक्षात्कार पूर्ण नियोजित था अथवा उसे संयोग मात्र कहा जायेगा? सब कुछ पूर्व नियोजित होता हैं। उसके अनुसार जब भौतिक रूप में घटना घटती हैं तो उसे संयोग कहते हैं। क्या उन महान और दिव्य पुरुषों का अस्तित्व आज भी हैं ? अवश्या पिताश्री ने कहा अतीत में भी था और भविष्य में भी रहेगा उनका अस्तित्व ?
क्या उनका दर्शन और उनका सानिध्य लाभ सभी के लिए सम्भव नहीं है? नहीं, वही व्यक्ति ऐसे महात्माओं के सम्पर्क में आ सकता है, उनका सान्निध्य लाभ कर सकता है और उनका दर्शन लाभ भी कर सकता है, जिसमे पिछले कई जन्मों का साधना संस्कार प्रसुप्त अवस्था में विद्यमान हैं उसी प्रसुप्त संस्कार के उन्मेष से आत्मा में आध्यात्मिक भाव आविर्भूत होता हैं और उत्पन्न होती हैं
आध्यात्मिक चेतना भी इतना ही नहीं उससे प्रच्छन्न- अप्रच्छन्न रूप से संचरण विचरण और निवास करने वाले उच्चकोटि के दिव्य महापुरुषों के अतिरिक्त सिद्ध साधकों और सन्त-महात्माओं को जानने समझने एवं पहचानने की दृष्टि भी प्राप्त होती है। आपने तीसरा नेत्र में तिब्बत के कई मठो और आश्रमों की चर्चा की हैं। क्या उनका अस्तित्व अभी भी है, यदि है तो क्या उनसे तिब्बत वासी परिचित हैं?”
निष्कर्ष:
तीसरा नेत्र भाग – 2 एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो लोगों को आध्यात्मिकता की दुनिया के बारे में बताती है। पुस्तक में लेखक ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा के अनुभवों को साझा किया है। उन्होंने आध्यात्मिक साधना के विभिन्न पहलुओं पर भी चर्चा की है। पुस्तक उन सभी लोगों के लिए एक मूल्यवान संसाधन है जो आध्यात्मिकता में रुचि रखते हैं।
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