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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | Teesra Netra Part 1 (तीसरा नेत्र भाग – 1) PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Arun Kumar Sharma |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 73 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 356 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
Teesra Netra Part 1 in Hindi PDF Summary
तीसरा नेत्र भाग – 1 अरुण कुमार शर्मा द्वारा लिखी गई एक हिंदी पुस्तक है। यह पुस्तक लेखक की आध्यात्मिक यात्रा का एक वृत्तांत है। पुस्तक में लेखक ने अपने जीवन में हुए उन अनुभवों को साझा किया है, जिनसे उन्हें आध्यात्मिकता की राह पर चलने की प्रेरणा मिली।
लेखक ने पुस्तक में बताया है कि कैसे उन्होंने बचपन से ही आध्यात्मिकता में रुचि रखी थी। उन्होंने बताया है कि कैसे उन्होंने विभिन्न गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की और कैसे उन्होंने अपनी आध्यात्मिक साधना को आगे बढ़ाया।
लेखक ने पुस्तक में आध्यात्मिक साधना के विभिन्न पहलुओं पर भी चर्चा की है। इन पहलुओं में ध्यान, योग, मंत्र, तंत्र, ज्योतिष आदि शामिल हैं। लेखक ने इन विषयों को सरल और आसान भाषा में समझाया है।
लेखक ने पुस्तक में कुछ ऐसे अद्भुत अनुभवों का भी वर्णन किया है जो उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान किए हैं। इन अनुभवों में भूत-प्रेतों से संपर्क, देवताओं के दर्शन, चमत्कार आदि शामिल हैं।
तीसरा नेत्र भाग – 1 पुस्तक का सारांश इस प्रकार है:
लेखक अरुण कुमार शर्मा ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा का एक वृत्तांत प्रस्तुत किया है। उन्होंने बताया है कि कैसे बचपन से ही उन्हें आध्यात्मिकता में रुचि थी और कैसे उन्होंने विभिन्न गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने आध्यात्मिक साधना के विभिन्न पहलुओं पर भी चर्चा की है और कुछ अद्भुत अनुभवों का भी वर्णन किया है।
भारतीय संस्कृति और साधना की मूल भित्ति एक मात्र योग और तंत्र है। योग तपश्चर्या है और तंत्र है साधना योग के अट्ठारह प्रकार है, जिनका प्रतिनिधित्व गीता का अट्ठारह अध्याय करता है, लेकिन एक ऐसा भी ‘योग’ है, जो सर्वोपरि और अपने आपमें स्वतंत्र है और वह ‘योग’ है ‘कुण्डलिनी योग कुण्डलिनी योग में सभी अट्ठारह प्रकार के योगों का समावेश है इसीलिए उसे परम योग और महायोग भी कहते हैं।
कुण्डलिनी योग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें तंत्र के गुह्य आयामों का सामन्जस्य हैं और यही कारण है कि कुण्डलिनी योग साधना अपने विकास की ऊँचाइयों में योग के अनेक आयामों को और विभिन्न प्रक्रियाओं को अपने में समाहित कर लेती है। इसलिए इस साधना को सिद्ध योग भी कहते हैं। वास्तव में कुण्डलिनी योग मनुष्य के आन्तरिक रूपान्तरण व जागरण की वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
कहने की आवश्यकता नहीं, १६४५ ई० में जब मैंने योग तंत्र पर व्यक्तिगत रूप से शोध एवं अन्वेषण करना चाहा तो गुरूदेव महामहोपाध्याय डॉo गोपीनाथ जी कविराज के संकेत पर मैंने कुण्डलिनी योग का ही चयन किया। और उसी आधार पर दो महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना भी की कुण्डलिनी शक्ति और मारण पात्र दोनों ग्रंथ प्रकाशित है।
किसी भी विषय पर शोध और अन्वेषण एक प्रकार से सत्य की खोज और उसकी उपलब्धि है। लेकिन आजकल शोध एवं अनुसंधान विश्वास का परिपन्थी माना जाता है। मगर बात ऐसी है नहीं, शोध एवं अनुसंधान का मतलब है कि जो जैसा दिखाई दे रहा है उसे वैसा ही नहीं मान लेना चाहिए। संसार की वास्तविकता को उसकी गहरायी में जाकर खोजने की आवश्यकता है, जो कुछ जैसा दीख रहा है, उसका वही स्वरूप नहीं भी हो सकता है। प्रत्येक वस्तु को तर्क की कसौटी पर कस कर देख लेना आवश्यक है। वास्तविक शोध एवं अनुसंधान की चपेट में न धर्म बच सकता है न आत्मा, न ईश्वर न योग और न तो भक्ति ।
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