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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | श्री दुर्गा स्तुति / Shri Durga Stuti |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 149 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 112 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
Shri Durga Stuti in Hindi PDF Summary
भगवती दुर्गा की उत्पत्ति एवं चरित्रों का वर्णन श्री मार्कण्डेय पुराण के अर्न्तगत देवी माहात्म्य में है । यह देवी माहात्म्य ७०० श्लोकों में वर्णित होने के कारण ‘दुर्गा सप्तशति’ के नाम से प्रसिद्ध है ।
‘प्रस्तुत पुस्तक धार्मिक ग्रंथों के गहन अध्ययन एवं विद्वानों से विचार-विमर्श के पश्चात् लिखी गई है। अकारण भगतजनों को भययुक्त या भ्रमयुक्त करने की अपेक्षा उनके सुखद जीवन की कामना करते हुए उनके मङ्गल के लिए पुस्तक में कथा का वर्णन है ।
क्योंकि पुस्तक भगतजनों के या पाठी के मङ्गलमयी जीवन की कामना में लिखी गई है इसलिए मैंने अपना नाम बार-बार दोहों आदि में देने से संकोच किया है । पाठ का क्या फल है वह भी में वर्णित पुस्तक है । पाठकों की सेवा में मेरा निवेदन है कि पाठ किसी विद्वान से करवाया जाये तो शीघ्र फल देने वाला एवं कार्यसिद्धि करने वाला होता है ।
दुर्गा सप्तशति की कोई महत्वपूर्ण बात एवं घटना छोड़ी न जा सके, इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है । क्रम से श्री दुर्गा कवच, अर्गलास्तोत्र, कीलक स्तोत्र एवं पहले अध्याय से तेहरवां अध्याय तथा फिर प्रार्थना एवं श्री दुर्गा देवी के १०८ नामों का मङ्गलकारी जाप, मां काली स्तोत्र तथा मां की आरती एवं सुविधानुसार दुर्गा चालीसा आदि मन को शांति एंव जीवन में मङ्गलकारी फल देने वाले होते हैं। चौथा, पाँचवां तथा ग्याहरवां अध्याय विशेष रूप से कल्याणकारी है ।
श्री दुर्गा स्तुति बुक अनुक्रम :
अध्याय | सिद्धि के लिए कार्य |
---|---|
पहला अध्याय | चिंता दूर करने के लिए, शत्रु से भय एवं उसको नष्ट करने के लिए |
दूसरा अध्याय | शत्रु द्वारा सम्पत्ति एवं भूमि पर अधिकार कर लेने के बाद उसे फिर से अपने अधिकार में करने के लिए |
तीसरा अध्याय | शत्रु पर विजय पाने के लिए |
चौथा अध्याय | धन, पत्नी एवं ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति के लिए |
पाँचवाँ अध्याय | भूत-प्रेत बाधा, भय आदि के नाश के लिए |
छटा अध्याय | कामना – सिद्धि के लिए |
सातवाँ अध्याय | मनोकामना पूरी करने के लिए |
आठवाँ अध्याय | सुरक्षा आदि हेतु |
नौवाँ अध्याय | सम्पत्ति एवं लाभ-प्राप्ति के लिए |
दसवाँ अध्याय | शक्ति तथा सन्तान सुख के लिए |
ग्यारहवाँ अध्याय | भक्ति, मुक्ति एवं भविष्य की चिंता दूर करने हेतु |
बारहवाँ अध्याय | रोगमुक्ति एंव भय दूर करने के लिए |
तेरहवाँ अध्याय | मन – वांछित वस्तु की प्राप्ति के लिए |
दुर्गा सप्तशती पाठ विधि:
प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध आसन बिछा कर भगवती मां की मूर्ति के सामने बैठ जायें। अपने पास पुष्प, धूप, दीप, फल, जल, मौली आदि रख लें। आसन पर बैठ कर मौली बांधें, साथ में मंत्र का उच्चारण करें :-
ॐ सर्व मङ्गल माङ्गल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्र्यम्बके गौरी, नारायणी नमोऽस्तुते !!
अर्थात् – हे सम्पूर्ण मङ्गलरूपिणी, हें शिवे, हे सम्पूर्ण अर्थ के साधन करने वाली ! हे शरण देने वाली, हे तीन नेत्रों वाली,
| हे गौरी, हे नारायणी, आपको नमस्कार है ।
मौली बंधवाने के पश्चात् चन्दन या भस्म का तिलक लगा लें एवं निम्न मन्त्र का जाप करें :-
चन्दस्य महत पुण्यं
पवित्र पाप नाशनम्
आपदा हरते नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा ।
गंगा के पूजन के पश्चात् जल को चारों दिशा के पूजन के लिए निम्न मंत्र से छिड़कें :-
ॐ अवसर्पन्तु ते भूता ये भूताः भुवि संस्थिता, ये चात्र विघ्न कर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया, अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा सर्वती दिशाय । सर्वेषामविरोधेन शुभ कर्म समारभे ॥
गणपति पूजन के लिए निम्न मन्त्र पढ़ें:-
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धि बुद्धि सहित, श्री गणपते इस गच्छ तिष्ठ सुप्रतिष्ठ, वरदोभवः ॐ एषो अर्घा श्री भगवद्, गणपतये नमः पुष्पं, चन्दनं, समर्पयामि ।
भगवद् गणपतये नमः, धूप दीपं प्रदर्शयामि भगवद् गणपतिये नमः
भगवती मां की प्रसन्नता के लिए नवरात्रों में अष्टमी या नवमी को कन्याओं का पूजन एवं खाना खिलाने का विधान है । कन्याओं की संख्या 9 हो तो ठीक है, उनकी आयु 2 वर्ष से कम तथा 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। दो बालक भी होने चाहिए क्योंकि शास्त्रों में दुर्गा के साथ भैरव तथा हनुमान जी का पूजन भी आवश्यक माना गया है ।
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