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प्राचीन भारत में हिन्दू राज्य एक पुस्तक है जो प्राचीन भारत के विभिन्न हिंदू राज्यों के इतिहास और संस्कृति का वर्णन करती है। यह पुस्तक बाबू वृन्दावन दास द्वारा लिखी गई है, और इसे गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया है।
पुस्तक में प्राचीन भारत के विभिन्न हिंदू राज्यों के उदय, विकास और पतन का वर्णन किया गया है। इसमें विभिन्न राज्यों के शासकों, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और धर्म का भी वर्णन किया गया है।
पुस्तक में 12 अध्यायों में प्राचीन भारत के विभिन्न हिंदू राज्यों के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है, जिसमें शामिल हैं:
- प्राचीन भारत में हिंदू राज्यों का उदय
- प्राचीन भारत में हिंदू राज्यों का विकास
- प्राचीन भारत में हिंदू राज्यों का पतन
- प्राचीन भारत में हिंदू राज्यों के शासक
- प्राचीन भारत में हिंदू राज्यों का प्रशासन
- प्राचीन भारत में हिंदू राज्यों की अर्थव्यवस्था
- प्राचीन भारत में हिंदू राज्यों की संस्कृति
- प्राचीन भारत में हिंदू राज्यों का धर्म
पुस्तक में प्रत्येक अध्याय में सरल और सुगम भाषा में समझाया गया है, ताकि इसे सभी पाठकों द्वारा आसानी से समझा जा सके। पुस्तक में कई ऐतिहासिक चित्र भी हैं जो प्राचीन भारत के विभिन्न हिंदू राज्यों को दिखाते हैं।
प्राचीन भारत में हिन्दू राज्य एक मूल्यवान पुस्तक है जो उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम कर सकती है जो प्राचीन भारत के हिंदू राज्यों के बारे में अधिक जानना चाहते हैं। यह उन लोगों के लिए भी एक अच्छा संदर्भ हो सकता है जो प्राचीन भारत के इतिहास का अध्ययन कर रहे हैं।
प्राचीन भारत में हिन्दू राज्य ( Prachin Bharat Me Hindu Rajay Pdf ) के बारे में अधिक जानकारी:-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | Prachin Bharat Me Hindu Rajay Book PDF / प्राचीन भारत में हिन्दू राज्य |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Babu Vrandavan Das |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 7 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 366 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | History |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
एक देश का इतिहास उसके निवासियों का इतिहास होता है। देश के निवासी विभिन्न जातियों और धर्मों के होते हैं। इस दृष्टि से प्रस्तुत इतिहास ग्रन्थ भी सभी धर्मों और जातियों से सम्बन्धित है। एक इतिहासकार का दृष्टिकोण धर्मनिरपेक्ष होना चाहिये। किसी भी देश की उन्नति और समृद्धि तब ही सम्भव है जब उसमें रहने वाले सभी धर्मों, वर्गों और जातियों के लोग स्वतन्त्रता पूर्वक अपने-अपने धार्मिक विश्वासों के अनुकूल जीवन व्यतीत करते हो ।
किमी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए उसके विभिन्न घटकों में सौहार्द और समन्वय परमावश्यक है। परन्तु प्राचीन भारत के इतिहास की एक विशेषता है और वह यह कि यह इतिहास तो हिन्दुओं से ही मुख्यतया सम्बन्धित है। प्राचीन भारत के निवासी मूलतः और मुख्यतः हिन्दू थे, इतर धर्मों के लोग तो आक्रामक के रूप में इस देश में आये और इसी स्थिति में उनसे निपटा भी गया था। स्थिति के इस सन्दर्भ में प्राचीन भारत का इतिहास वस्तुतः हिन्दू जाति का इतिहास ही है।
प्राचीन भारत का इतिहास इस सन्दर्भ मे आदिकाल से १००० ई० तक का है । १००० ई० के बाद मुस्लिम आक्रमण के परिणाम स्वरूप भारतीय राजनीति मे मुसलमानों के समावेश का आरम्भ हुआ था, इससे पूर्व तो समग्र दृष्टि से भारतीय राजनीति केवल हिन्दुओ से सम्बन्धित थी ।
प्राचीन भारत के निवामियो को हिन्दू नाम से सम्बोधित करने पर कुछ विज्ञजन शका उपस्थित करते हैं। उनकी सेवा मे विनम्र निवेदन है कि प्राचीन भारत के मूल निवासी चाहे वे द्रविण हों अथवा आयं अथवा दोनो का मिश्रण हो वर्तमान हिन्दू जाति के पूर्वज थे। चूंकि प्राचीन भारत के निवासियो के वंशजों को आज हिन्दू कहते हैं अतः उन वंशजो के पूर्वजों को हिन्दू कहना सर्वथा उपयुक्त होगा। हिन्दुस्तान के रहने वाले हिन्दू और उनकी भाषा हिन्दी यह भी एक स्पष्ट ऐतिहासिक सत्य है ।
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