पद्म पुराण हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Padam Puran Hindi PDF Book

What is Padam Puran Pdf in Hindi (पद्म पुराण क्या है)

पद्म पुराण (संस्कृत: पद्म पुराण) अठारह प्रमुख पुराणों में से एक है, जो हिंदू धर्म में ग्रंथों की एक शैली है। यह एक विश्वकोश पाठ है, जिसका नाम कमल के नाम पर रखा गया है जिसमें निर्माता भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए थे, और इसमें विष्णु को समर्पित बड़े खंड, साथ ही शिव और शक्ति पर महत्वपूर्ण खंड शामिल हैं।

पद्म पुराण की पांडुलिपियां आधुनिक युग में कई संस्करणों में बनी हुई हैं, जिनमें से दो प्रमुख और महत्वपूर्ण रूप से भिन्न हैं, एक का पता पूर्वी और दूसरा भारत के पश्चिमी क्षेत्रों से है। यह ५५,००० श्लोकों का दावा करते हुए विशाल ग्रंथों में से एक है, जिसमें वास्तविक जीवित पांडुलिपियों में ५०,००० के बारे में दिखाया गया है।

पद्म पुराण कथा (Padam Puran Katha)

पदमपुराण’ प्रमुख रूप से वैष्णव पुराण है। इस पुराण की मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु की उपासना का प्रतिपादन करने वाले पुराण ही सात्विक हैं। इस पुराण में प्रसंगवश शिव का वर्णन भी प्राप्त होता है। इस पुराण का पद्मपुराण नाम पड़ने का कारण यह है कि यह सम्पूर्ण जगत स्वर्णमय कमल (पद्म) के रूप में परिणित था। इस पुराण का पद्मपुराण नाम पड़ने का कारण यह है कि यह सम्पूर्ण जगत स्वर्णमय कमल (पद्म) के रूप में परिणित था।

अर्थात् भगवान विष्णु की नाभि से जब कमल उत्पन्न हुआ तब वह पृथ्वी की तरह था। उस कमल (पद्म) को ही रसा या पृथ्वी देवी कहा जाता है। इस पष्वी में अभिव्याप्त आग्नेय प्राण ही ब्रह्मा हैं जो चर्तुमुख के रूप में अर्थात् चारों ओर फैला हुआ सष्टि की रचना करते हैं और वह कमल जिनकी नाभि से निकला है. वे विष्णु भगवान सूर्य के समान पथ्वी का पालन-पोषण करते हैं।

पदमपुराण में नन्दी धेनु उपाख्यान, वामन अवतार की कथा, तुलाधार की कथा, सुशंख द्वारा यम कन्या सुनीथा को श्राप की कथा, सीता-शुक संवाद, सुकर्मा की पितष भक्ति तथा विष्णु भगवान के पुराणमय स्वरूप का अद्भुत वर्णन है। पद्मपुराण के अनुसार व्यक्ति ज्यादा कर्मकाण्डों पर न जाकर यदि साधारण जीवन व्यतीत करते हुये, सदाचार और परोपकार के मार्ग पर चलता है तो उसे भी पुराणों का पूर्ण फल प्राप्त होता है तथा वह दीर्घ जीवी हो जाता है। पद्मपुराण में पचपन हजार श्लोक हैं जो पाँच खण्डों में विभक्त हैं। जिसमें पहला खण्ड सृष्टिखण्ड, दूसरा- भूमिखण्ड, तीसरा स्वर्गखण्ड, चैथा-पातालखण्ड, पाँचवा – उत्तरखण्ड ।

खण्ड विभाजन

पदमपुराण’ को पांच खण्डों में विभाजित किया गया है। ये खण्ड इस प्रकार हैं-

  • सृष्टि खण्ड
  • भूमि खण्ड
  • स्वर्ग खण्ड
  • पाताल खण्ड
  • उत्तर खण्ड

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शास्त्रों में पुराणों की बड़ी महिमा है। उन्हें साक्षात् श्रीहरिका रूप बताया गया है। जिस प्रकार सम्पूर्ण जगत्‌ को आलोकित करने के लिये भगवान् सूर्य रूप में प्रकट होकर हमारे बाहरी अन्धकार को नष्ट करते हैं, उसी प्रकार हमारे हृदयान्धकार – भीतरी अन्धकारको दूर करने के लिये श्रीहरि ही पुराण-विग्रह धारण करते हैं। * जिस प्रकार त्रैवर्णिकों के लिये वेदोंका स्वाध्याय नित्य करनेकी विधि है, उसी प्रकार पुराणोंका श्रवण भी सबको नित्य करना चाहिये – ‘पुराणं शृणुयान्नित्यम्’ । पुराणोंमें अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष- चारोंका बहुत ही सुन्दर निरूपण हुआ है और चारोंका एक-दूसरेके साथ क्या सम्बन्ध है – इसे भी भलीभाँति समझाया गया है। श्रीमद्भागवतमें लिखा है –

धर्मस्य ह्यापवर्ग्यस्य नार्थोऽर्थायोपकल्पते । नार्थस्य धर्मैकान्तस्य कामो लाभाय हि स्मृतः ॥ कामस्य नेन्द्रियप्रीतिर्लाभो जीवेत यावता । जीवस्य तत्त्वजिज्ञासा नार्थो यश्चेह कर्मभिः ॥

‘धर्मका फल है— संसारके बन्धनोंसे मुक्ति, भगवान्की प्राप्ति। उससे यदि कुछ सांसारिक सम्पत्ति उपार्जन कर ली तो यह उसकी कोई सफलता नहीं है। इसी प्रकार धनका फल है-एकमात्र धर्मका अनुष्ठान; वह न करके यदि कुछ भोगकी सामग्रियाँ एकत्र कर लीं तो यह कोई लाभकी बात नहीं है।

भोग की सामग्रियों का भी यह लाभ नहीं है कि उनसे इन्द्रियोंको तृप्त किया जाय; जितने भोगोंसे जीवन-निर्वाह हो जाय, उतने ही भोग हमारे लिये पर्याप्त हैं तथा जीवन-निर्वाहका — जीवित रहनेका फल यह नहीं है कि अनेक प्रकारके कर्मोंके पचड़ेमें पड़कर इस लोक या परलोकका सांसारिक सुख प्राप्त किया जाय । उसका परम लाभ तो यह है कि वास्तविक तत्त्वको भगवत्तत्त्वको जाननेकी शुद्ध इच्छा हो।’ यह तत्त्व- जिज्ञासा पुराणोंके श्रवणसे भलीभाँति जगायी जा सकती है। इतना ही नहीं, सारे साधनोंका फल है – भगवान्की प्रसन्नता प्राप्त करना । यह भगवत्प्रीति भी पुराणोंके श्रवणसे सहजमें ही प्राप्त की जा सकती है। पद्मपुराणमें लिखा है

तस्माद्यदि हरेः प्रीतेरुत्पादे धीयते मतिः । श्रोतव्यमनिशं पुम्भिः पुराणं कृष्णरूपिणः ॥

‘इसलिये यदि भगवान्‌ को प्रसन्न करनेका मनमें सङ्कल्प हो तो सभी मनुष्योंको निरन्तर श्रीकृष्णके अङ्गभूत पुराणोंका श्रवण करना चाहिये।’ इसीलिये पुराणोंका हमारे यहाँ इतना आदर रहा है। वेदोंकी भाँति पुराण भी हमारे यहाँ अनादि माने गये हैं। उनका रचयिता कोई नहीं है। सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी भी उनका स्मरण ही करते हैं। पद्मपुराणमें लिखा है— ‘पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम् ।’ इनका विस्तार सौ करोड़ (एक अरब) श्लोकोंका माना गया है—’शतकोटिप्रविस्तरम् ।’ उसी प्रसङ्गमें यह भी कहा गया है कि समयके परिवर्तनसे जब मनुष्यकी आयु कम हो जाती है और इतने बड़े पुराणोंका श्रवण और पठन एक जीवनमें मनुष्यों के लिये असम्भव हो जाता है, तब उनका संक्षेप करनेके लिये स्वयं भगवान् प्रत्येक द्वापर युगमें व्यासरूपसे अवतीर्ण होते हैं और उन्हें अठारह भागोंमें बाँटकर चार लाख श्लोकोंमें सीमित कर देते हैं। पुराणों का यह संक्षिप्त संस्करण ही भूलोक में प्रकाशित होता है। कहते हैं स्वर्गादि लोकों में आज भी एक अरब श्लोकों का विस्तृत पुराण विद्यमान है। * इस प्रकार भगवान् वेदव्यास भी पुराणोंके रचयिता नहीं, अपितु संक्षेपक अथवा संग्राहक ही सिद्ध होते हैं। इसीलिये पुराणोंको ‘पञ्चम वेद’ कहा गया है- “इतिहासपुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम्’ (छान्दोग्य- उपनिषद् ७ । १ । २) । उपर्युक्त उपनिषद्वाक्यके अनुसार यद्यपि इतिहास-पुराण दोनोंको ही ‘पञ्चम वेद’ की गौरवपूर्ण उपाधि दी गयी है, फिर भी वाल्मीकीय रामायण और महाभारत जिनकी इतिहास संज्ञा है, क्रमशः महर्षि वाल्मीकि तथा वेदव्यासद्वारा प्रणीत होनेके कारण पुराणोंकी अपेक्षा अर्वाचीन ही हैं। इस प्रकार पुराणोंकी पुराणता सर्वापेक्षया प्राचीनता सुतरां सिद्ध हो जाती है। इसीलिये वेदोंके बाद पुराणों का ही हमारे यहाँ सबसे अधिक सम्मान है।

पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-

पुस्तक का नाम (Name of Book)पद्म पुराण / Padam Puran PDF
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Gita Press / गीता प्रेस
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)68 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)1001
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)वेद-पुराण / Ved-Puran

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

श्रीव्यासजी के शिष्य परम बुद्धिमान् लोमहर्षणजीने एकान्तमें बैठे हुए [अपने पुत्र] उग्रश्रवा नामक सूतसे कहा- “बेटा! तुम ऋषियोंके आश्रमोंपर जाओ और उनके पूछनेपर सम्पूर्ण धर्मोका वर्णन करो। तुमने मुझसे जो संक्षेपमें सुना है, वह उन्हें विस्तारपूर्वक सुनाओ। मैंने महर्षि वेदव्यासजीके मुखसे समस्त पुराणोंका ज्ञान प्राप्त किया है और वह सब तुम्हें बता दिया है; अतः अब मुनियोंके समक्ष तुम उसका विस्तारके साथ वर्णन करो। प्रयागमें कुछ महर्षियोंने, जो उत्तम कुलोंमें उत्पन्न हुए थे, साक्षात् भगवान्‌से प्रश्न किया था वे [ यज्ञ करनेके योग्य ] किसी पावन प्रदेशको जानना चाहते थे। भगवान् नारायण ही सबके हितैषी हैं, वे धर्मानुष्ठानकी इच्छा रखनेवाले उन महर्षियोंके पूछनेपर बोले- ‘मुनिवरो ! यह सामने जो चक्र दिखायी दे रहा है, इसकी कहीं तुलना नहीं है। इसकी नाभि सुन्दर और स्वरूप दिव्य है। यह सत्यकी ओर जानेवाला है। इसकी गति सुन्दर एवं कल्याणमयी है तुमलोग सावधान होकर नियम •पूर्वक इसके पीछे-पीछे जाओ। तुम्हें अपने लिये हितकारी स्थानकी प्राप्ति होगी। यह धर्ममय चक्र यहाँसे जा रहा है जाते-जाते जिस स्थानपर इसकी नेमि जीर्ण-शीर्ण होकर उन मुनीश्वरोंके पास गये तथा उनके चरण पकड़कर हाथ गिर पड़े, उसीको पुण्यमय प्रदेश समझना।’

उन सभी महर्षियोंसे ऐसा कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये और । वह धर्म चक्र नैमिषारण्यके वर्त नामक स्थानपर गिरा। तब ऋषियोंने निमि शीर्ण होनेके कारण उस स्थानका नाम ‘नैमिष’ रखा और नैमिषारण्यमें दीर्घकालतक चालू रहनेवाले यशोंका अनुष्ठान आरम्भ कर दिया। वहीं तुम भी जाओ और ऋषियोंके पूछने पर उनके धर्म विषयक संशयोंका निवारण करो।” तदनन्तर ज्ञानी उग्रश्रवा पिताकी आज्ञा मानकर उन मुनीश्वरोंके पास गये तथा उनके चरण पकड़कर हाथ जोड़कर उन्होंने प्रणाम किया। सूतजी बड़े बुद्धिमान् थे,

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पद्म पुराण में क्या बताया गया है?

पद्म-पुराण सृष्टि की उत्पत्ति अर्थात् ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और अनेक प्रकार के अन्य ज्ञानों से परिपूर्ण है तथा अनेक विषयों के गम्भीर रहस्यों का इसमें उद्घाटन किया गया है। इसमें सृष्टि खंड, भूमि खंड और उसके बाद स्वर्ग खण्ड महत्त्वपूर्ण अध्याय है। फिर ब्रह्म खण्ड और उत्तर खण्ड के साथ क्रिया योग सार भी दिया गया है।

पद्म पुराण में कितने अध्याय हैं?

कुल अध्याय 697 है। अलग-अलग प्रकाशक ने पद्मपुराण के खंडों के अलग-अलग नाम दिया है।

पद्म पुराण में कितने श्लोक है?

पद्मपुराण पुराण में कुल 50,000 श्लोक है।

पद्मपुराण किसकी रचना है

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए अठारह पुराणों में से एक पुराण ग्रंथ है।

पद्म पुराण का दूसरा नाम क्या है?

इस पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा गया है।

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