कर्ण पिशाचिनी साधना ( Karna Pishachini Sadhana PDF ) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक का नाम (Name of Book) | कर्ण पिशाचिनी साधना / Karna Pishachini Sadhana |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | अनाम / Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 3 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 5 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | तंत्र विद्या/Tantra Vidya |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
छ: माह बीत चुके थे मुझे गांव छोडे हुए। घर की दरिद्रता से विकल होकर मैं जीवन से विरक्त हो चुका था। अक्सर मैं सोचता मेरे पूर्वज उच्चकोटि के ब्राह्मण थे। उनके पास अलौकिक सिद्धियां थीं, ज्योतिष के क्षेत्र में वे अद्वितीय थे । काल को अपने चिन्तन से उन्होंने बांध रखा था, पर आज वे विद्याएं कहां है ?
अपने ब्राह्मणत्व पर लांछन लगते देखना मुझे असह्य था । मैंने तो निश्चय कर लिया था कि मुझे उन विशिष्ट योगियों तक पहुंचना है जिनके पास अलौकिक ज्ञान है, जिनसे मैं कुछ साधनात्मक बल प्राप्त कर सकूं।
अमरकंटक के पास विचरण करते हुए एक दिन मुझे सद्गुरुदेव जी के दर्शन हो गए। कोई साधनात्मक शिविर चल रहा था। मौका देखकर मैंने उनसे भेंट की और अपनी व्यथा से अवगत कराया। मेरे ज्योतिष के प्रति रूझान को देखकर शायद उनका हृदय पसीज उठा, मुस्कुराकर बोले, ‘तू कर्णपिशाचिनी सिद्ध कर ले’ ।
पिशाचिनी का नाम सुनते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये । सुना था कि यह वाममार्गी साधना है और अत्यन्त वीभत्स तरीके से सम्पन्न की जाती है। सारे वैदिक कर्म त्याग देने पड़ते हैं और साधना खण्डित कर देने पर तुरंत मृत्यु हो जाती है। साथ ही -साथ कर्णपिशाचिनी को सिद्ध कर लेने के बाद भी उसकी काम पिपासा शान्त करनी पड़ती है
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