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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | Upasana Aur Sadhana Ka Samanvay PDF | उपासना और साधना का समन्वय |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Shriram Sharma |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 49 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
Upasana Aur Sadhana Ka Samanvay Book PDF Summary
उपासना और साधना पुस्तक में, श्रीराम शर्मा आचार्य उपासना और साधना के महत्व और उनके बीच के संबंध पर चर्चा करते हैं। वह कहते हैं कि उपासना और साधना दोनों ही मनुष्य को उसके उद्देश्य तक पहुँचने में मदद करती हैं।
उपासना का अर्थ है ईश्वर की उपासना करना। यह एक भावनात्मक प्रक्रिया है जो प्रेम, भक्ति और श्रद्धा से प्रेरित होती है। उपासना से मनुष्य का मन शांत और निर्मल होता है, और वह ईश्वर के साथ एकता का अनुभव करता है।
साधना का अर्थ है आत्म-विकास के लिए प्रयास करना। यह एक मानसिक और शारीरिक प्रक्रिया है जो ज्ञान, कर्म और ध्यान के माध्यम से होती है। साधना से मनुष्य का शरीर, मन और आत्मा शुद्ध और विकसित होते हैं।
श्रीराम शर्मा आचार्य कहते हैं कि उपासना और साधना एक दूसरे के पूरक हैं। उपासना से मनुष्य का मन तैयार होता है, और साधना से मनुष्य का मन निर्मल और विकसित होता है। जब इन दोनों का समन्वय होता है, तो मनुष्य अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सक्षम होता है।
इस पुस्तक में, श्रीराम शर्मा आचार्य उपासना और साधना के विभिन्न प्रकारों पर भी चर्चा करते हैं। वह कहते हैं कि उपासना शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर की जा सकती है। साधना भी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर की जा सकती है।
उपासना और साधना के कुछ लाभ
- मन को शांत और निर्मल बनाते हैं।
- ईश्वर के साथ एकता का अनुभव कराते हैं।
- शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध और विकसित करते हैं।
- मनुष्य को उसके उद्देश्य तक पहुँचने में मदद करते हैं।
उपासना और साधना एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है। यह एक निरंतर प्रयास है जो मनुष्य को पूर्णता की ओर ले जाता है।
निष्कर्ष
उपासना और साधना एक महत्वपूर्ण विषय है जो हर मनुष्य के लिए प्रासंगिक है। यह पुस्तक इस विषय पर एक व्यापक और जानकारीपूर्ण चर्चा प्रदान करती है।
उपासना-ईश्वर के पास बैठना
अध्यात्म-साधना को ज्ञान और विज्ञान- इन दो पक्षों में विभाजित कर सकते हैं। ज्ञान पक्ष वह है जो पशु और मनुष्य के बीच का अंतर प्रस्तुत करता है और प्रेरणा देता है कि इस सुरदुर्लभ अवसर का उपयोग उसी प्रयोजन के लिए किया जाना चाहिए, जिसके लिए वह मिला है। इसके लिए किस तरह सोचना और किस तरह की रीति- नीति अपनाना उचित है, इसे हृदयंगम कराना ज्ञानपक्ष का काम है। स्वाध्याय, सत्संग, कथा, प्रवचन, पाठ, मनन, चिंतन जैसी प्रक्रियाओं का सहारा इसी प्रयोजन के लिए लिया जाना चाहिए।
इसी पक्ष का दूसरा चरण यह है कि धर्म, सदाचार, संयम, कर्त्तव्यपालन के उच्च सिद्धांतों को अपनाकर आदर्शवादी जीवन जिया जाए। अवांछनीय चिंतन और कर्तृत्व में ही मनुष्य की अधिकांश शक्तियों का अपव्यय होता रहता है। दुर्बुद्धिग्रस्त और दुष्कर्म निरत व्यक्ति अपना ओजस नष्ट करते रहते हैं
और उस प्राणशक्ति को गँवा बैठते हैं, जो उच्चस्तरीय प्रगति के लिए उसी प्रकार आवश्यक है, जैसे मोटर के लिए पेट्रोल। बिना तेल के मोटर कैसे चलेगी ? बिना प्रखर प्राणशक्ति के आत्मिक प्रगति किस प्रकार संभव होगी ? अस्तु, ज्ञान-साधना द्वारा चिंतन को उत्कृष्ट और कर्तृत्व को आदर्श बनाया जाता है। यह जमीन को जोतकर, खाद-पानी लगाकर उर्वर बना लेने की तरह है।
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