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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | श्री दुर्गा सप्तशती / Shri Durga Saptashati |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Sant Nagpal |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 50 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 343 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
Shri Durga Saptashati in Hindi PDF Summary
श्री दुर्गासप्तशती एक संस्कृत ग्रंथ है जो देवी दुर्गा की आराधना के लिए लिखा गया है। यह ग्रंथ 700 श्लोकों से बना है, और इसे दो भागों में विभाजित किया गया है: चतुर्दशी-खंड और अष्टमी-खंड। चतुर्दशी-खंड में देवी दुर्गा के अवतार और महिमा का वर्णन है, जबकि अष्टमी-खंड में देवी दुर्गा की आराधना और मंत्रों का वर्णन है।
श्री दुर्गासप्तशती का पाठ प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में किया जाता रहा है। यह ग्रंथ देवी दुर्गा की उपासना और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली तरीका माना जाता है।
श्री दुर्गासप्तशती का पाठ करने के कई लाभ हैं। यह पाठ हमें देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने, बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने और अपने जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि लाने में मदद कर सकता है।
अगर आप देवी दुर्गा की आराधना करना चाहते हैं, तो श्री दुर्गासप्तशती का पाठ एक अच्छा तरीका है। यह ग्रंथ आपको देवी दुर्गा के बारे में जानने और उनकी आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
श्री दुर्गासप्तशती के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
- श्री दुर्गासप्तशती एक संस्कृत ग्रंथ है जो देवी दुर्गा की आराधना के लिए लिखा गया है।
- यह ग्रंथ 700 श्लोकों से बना है, और इसे दो भागों में विभाजित किया गया है: चतुर्दशी-खंड और अष्टमी-खंड।
- चतुर्दशी-खंड में देवी दुर्गा के अवतार और महिमा का वर्णन है, जबकि अष्टमी-खंड में देवी दुर्गा की आराधना और मंत्रों का वर्णन है।
- श्री दुर्गासप्तशती का पाठ प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में किया जाता रहा है।
- यह ग्रंथ देवी दुर्गा की उपासना और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली तरीका माना जाता है।
श्री दुर्गासप्तशती का पाठ करने के तरीके:
- श्री दुर्गासप्तशती का पाठ करने के लिए, आपको एक साफ और शांत जगह की आवश्यकता होगी।
- एक दीपक जलाएं और देवी दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर रखें।
- श्री दुर्गासप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले, देवी दुर्गा को प्रणाम करें और उनसे आशीर्वाद मांगें।
- श्री दुर्गासप्तशती का पाठ एक बार में पूरा करें।
- पाठ पूरा करने के बाद, देवी दुर्गा को धन्यवाद दें और उनसे प्रार्थना करें कि वे आपकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करें।”
श्रीदुर्गासप्तशती का माहात्म्य
वर्तमान युग में श्रीदुर्गासप्तशती का विशेष महत्व है। आज का मानव अत्यंत व्यस्त है और विशेषकर युवा पीढ़ी तो पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से इन्द्रिय उत्तेजना के मार्ग पर खिंची जा रही है। इसका परिणाम है बढ़ता असंतोष तथा मानसिक अशांति। इनसे प्राणशक्ति में असंतुलन उत्पन्न होता है तथा भौतिक शरीर पर इसका दुष्परिणाम मनोकायिक (साइकोसोमैटिक) व्याधियों के रूप में प्रकट होता है।
एलोपैथी में उपचार भी केवल मनुष्य के बाहरी चोले, अन्नमय कोष (भौतिक शरीर) का होता है, जब कि रोग की जड़ भीतरी प्राणमय कोष में या इससे भी गहरे मनोमय कोष या विज्ञानमय कोष में होती है। इस प्रकार से दबाए जाने पर रोग अन्य किसी रूप में अंकुरित हो उठता है। हताश और निराश होकर मनुष्य जब अध्यात्म का आश्रय लेता है तो श्रीदुर्गासप्तशती के पाठमात्र से उसके संकट का निवारण हो जाता है।
क्योंकि इसका प्रभाव सीधा व्याधि के जड़ पर होता है। यदि अर्थ को भली भाँति समझकर पाठ किया जाए तो सहस्रगुना फल मिलता है। कथानक के भावार्थ तथा गूढार्थ को समझकर उन पर मनन एवं चिन्तन करें तो उससे भी सहस्रगुना लाभप्रद है। वास्तविकता तो अंतर्मुखी (मानसिक) साधना में है, बहिरंग-पूजन आदि तो मन को ध्यान के लिये तैयार करने की भूमिका मात्र है।
श्री दुर्गासप्तशती आत्मोत्थान का एक ऐसा राजमार्ग है जिसमें भगवत्प्राप्ति के चारों मुख्य मार्ग (कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और राजयोग ) समाये हुए हैं। अहंभाव तथा कर्ताभाव को त्यागकर कर्मफल में आसक्ति से रहित होकर, पूर्ण संतोष, श्रद्धा, तत्परता, कुशलता तथा लगन से स्वधर्म का पालन करना कर्मयोग कहलाता है।
अपने इष्ट से सम्बन्ध का तार सोते-जागते, उठते-बैठते, सदा जुड़ा रहे, यह भक्तिमार्ग का निचोड़ है। जीवात्मा तथा परमात्मा में भेद के भ्रम से मुक्त होकर दोनों के यथार्थ में एक ही होने की वास्तविकता को समझना और सृष्टि के कण-कण को परमात्मा से व्याप्त देखना ज्ञानयोग का सारांश है राजयोग अंतरंग साधना प्रधान है अपनी रुचि के अनुसार आप कोई भी मार्ग अपना लें, श्रीदुर्गासप्तशती से आपको उसके अनुरूप मार्गदर्शन प्राप्त होगा।
इस संदर्भ में भारतीय ऋषियों तथा योगियों ने अपने तप से मानव शरीर के विभिन्न चक्रों पर मन्त्रशक्ति का जो गहरा प्रभाव होता है, उसका अध्ययन किया। साथ ही प्रकृति के विभिन्न स्तरों में जो शक्तियाँ सदैव विराजमान रहती हैं, उन पर भी मंत्र का जो प्रभाव पड़ता है, उस पर अनुसंधान किया। आत्मोत्थान के लिये इनमें से अनुकूल शक्तियों से कैसे सहयोग एवं सहायता प्राप्त की जाए और प्रतिकूल शक्तियों को कैसे निरस्त किया जाए, इसका गहन अध्ययन हमारे आगम-शास्त्र की मानव मात्र को अपूर्व देन है।
सप्तशती का हर श्लोक अपने आप में मन्त्र है और शुद्ध उच्चारण सहित इनके क्रमानुसार पाठमात्र से ऐसे कम्पन उत्पन्न होते हैं जिनसे वातावरण शुद्ध हो जाता है। ये कम्पन आत्मोन्नति के लिये अनुकूल शक्तियों को जागृत करते हैं और विरोधी तत्वों को निष्क्रिय कर देते हैं।
उच्चारण सहित देवीकवच के पाठ से ऐसे प्रतिकूल तत्व पास ही नहीं फटक सकते सर्वव्यापी परमेश्वर के प्रत्येक अंश (देवी-देवता) में अपनी विशेष प्रकार की स्पन्दन तरंग होती है। यदि शुद्ध मंत्रोच्चारण द्वारा भक्त अपने अंतरंग मन में तथा बाह्य वातावरण में भी उसी प्रकार की स्पन्दन तरंग उत्पन्न कर ले,
तो उस देवी देवता का प्रकट होना उतना ही अवश्यम्भावी है जितना कि सुर में मिले दो सितारों में से एक का तार छेड़ने पर दूसरे का स्वतः बज उठना। श्रीदुर्गापाठ का संकटमोचन माहात्म्य यही है।
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