स्मृति की रेखाएं (Smriti Ki Rekhaye) के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का नाम (Name of Book) | स्मृति की रेखाएं (Smriti Ki Rekhaye) |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Mahadevi Verma |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 27 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 154 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | साहित्य / Literature |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
छोटे कद और दुबले शरीर वाली भक्तिन अपने पतले ओठों के कोनों
में दृढ़ संकल्प और छोटी आँखों में एक विचित्र सम- झदारी लेकर जिस दिन पहले पहले मेरे पास आ उपस्थित हुई थी तब से श्राज तक एक युग का समय बीत चुका है। पर जब कोई जिज्ञासु उससे इस सम्बन्ध में प्रश्न कर बैठता है तब वह पलकों को आधी पुतलियों तक गिराकर और चिंतन की मुद्रा में ठुड्डी को कुछ ऊपर उठाकर विश्वास भरे कण्ठ से उत्तर देती है ‘ तुम पचै का का बताई – यहै पचास बरिस से संग रहित है’।
इस हिसाब से मैं पचहत्तर की ठहरती हूँ और वह सौ वर्ष की आयु भी पार कर जाती है, इसका भक्तिन को पता नहीं। पता हो भी तो सम्भवतः वह मेरे साथ बीते हुए समय में से रत्तीभर भी कम न करना चाहेगी। मुझे तो विश्वास होता जा रहा है कि कुछ वर्ष और बीत जाने पर वह मेरे साथ रहने के समय को खींच कर सौ वर्ष तक पहुँचा देगी चाहे उसके हिसाब से मुझे १५० वर्ष की असम्भव आयु का भार क्यों न ढोना पड़े ।
सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करने वाली भक्तिन किसी की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है— नाम है लछमिन अर्थात् लक्ष्मी । पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्बह है वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुञ्चित रेखाओं में नहीं बँध सकी । वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है, पर भक्तिन बहुत समझदार है क्योंकि वह अपना समृद्धि- सूचक नाम किसी को बताती ही नहीं।
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