पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | हिंदी भजन संग्रह | Bhajan Sangrah PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | गीता प्रेस / Geeta Press |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 49 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 476 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | धार्मिक / Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
हम संसार बद्ध जीवों को इतना अवकाश कहाँ, जो संत-महात्माओंकी समग्र सरस बानियोंका पवित्र पारायण कर सकें ? इसलिये इस भजन संग्रहमें थोड़े-से चुने हुए पदों का संकलन किया गया है। अच्छा हो कि इनका रस लेकर हमारी लोभ-प्रवृत्ति जागे और हम सम्पूर्ण बानियोंका आनन्द लेनेको प्रेम-विह्वल हो जायँ ।
इस संग्रहके प्रारम्भ में गोसाईं तुलसीदास, महात्मा सूरदास और संतवर कबीरदास के पदोंका संकलन है। भक्ति-साहित्यमें इन तीनों ही महात्माओंकी दिव्य बानियाँ अनुपम हैं, तदनन्तर अष्टछापके अनन्य भक्तों तथा हितहरिवंश, स्वामी हरिदास, गदाधर भट्ट, हरिराम व्यास आदि व्रज-रस-मधुकरोंकी सुललित गुंजार और नानक, दादूदयाल, रैदास, मलूकदास आदि संतोंके पदों का संक्षिप्त संग्रह है। ग्रन्थके मध्यमें कुछ हरिभक्त देवियोंके पदोंका संग्रह है। जिनमें प्रमुख हैं- मीरा, सहजोबाई, वृन्दावनवासिनी बनीठनीजी, प्रतापबाला तथा युगलप्रियाजी ।
अन्तमें कुछ रामरँगीले भक्तोंकी वाणीका संकलन किया गया है, जिनमें एक दरियासाहबको छोड़कर शेष सभी मुसलमान हैं, जिनके बारेमें श्रीभारतेन्दुजीने कहा है- ‘इन मुसलमान हरिजनन पै कोटिन हिन्दुन वारिये ।’
इस संग्रहके प्रारम्भिक (१-८६० तक) पदोंका संकलन श्रीवियोगी हरिजीने किया था, जो पहले गीताप्रेसद्वारा चार खण्डोंमें छप चुके हैं। इस संग्रहमें भी वे पद ज्यों-के-त्यों सम्मिलित किये गये हैं।
ग्रन्थकी समाप्ति नित्यलीलालीन परम श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी है। पाठकोंके सुविधार्थ पुस्तकमें दिये गये समस्त पदों (बानियों) का वर्णमाला क्रमसे संयोजन किया गया है, जिससे प्रेमी पाठक इच्छानुसार किसी एक वर्णाक्षर क्रममें ही एकसे अधिक भक्त कवियोंकी इन बानियोंका रसास्वादन कर सकें।
सभी श्रद्धालु जनों को इस ‘भजन-संग्रह’ से विशेष लाभ उठाना चाहिये। अन्तमें भगवान्से हमारी प्रार्थना है कि इन हरिभक्त कवियोंकी विमल बानियोंसे जगत्को सुख-शान्ति एवं आनन्दकी प्राप्ति हो ।
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