Yog Ke Aasan aur Kasrato Ke Chitra Book PDF Details:
पुस्तक का नाम (Name of Book) | योग के आसन और कसरतो के चित्र / Yog Ke Aasan aur Kasrato Ke Chitra |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | अनाम / Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 172 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Health |
Yog Ke Aasan aur Kasrato Ke Chitra Book Summary
व्यायाम स्वास्थ्य का सच्चा मित्र है। जो व्यायाम नहीं करता, उसका रोगी होना अनिवार्य है। पंद्रह सोलह वर्ष की आयु से यदि व्यायाम का अभ्यास रक्खा जाय, तो शारीरिक व्याधियों से जीवन मर छुटकारा मिलता रहेगा ।
मैं आसनों का विशेषज्ञ नहीं। दो ही तीन आसनों का साधारण अनुभव रखता हूँ; पर आसनों का प्रेमी अवश्य हूँ। और चाहता हूँ कि हमारे नवयुवक विलायती कसरतें, जो महँगी और बाहरी साधनों की मुहताज होती हैं, न करके अपने पूर्वजों के अनुभूत तथा बिना किसी बाहरी साघन की सहायता के किये जाने वाले अनमोल आसनों और कसरतों को करके देखें; मेरा दृढ़ विश्वास है कि उनको आशातीत लाभ होगा ।
आसनों का महत्व
मनुष्य का शरीर परमात्मा की एक अद्भुत रचना है। इसके अन्दर बड़ी विचित्र शंक्तियाँ भरी हुई हैं। शरीर- शाख के पंडितों ने सूक्ष्म निरीक्षण करके कुछ शक्तियों का पता लगाया है सही, पर अमीतक वे उन शक्तियों का पता नहीं पा सके हैं, जिन्हें हमारे पवित्र देश के योगी- गण जानने थे ।
आसनों के अभ्यासी साधकों के बहुत-से चमत्कारों की कथायें हिन्दुओं में प्रसिद्ध हैं। अब भी कभी-कभी सुनने को मिलता है कि अमुक योगी ने यह अलौकिक कार्य करके दिखाया था ।
चमत्कार कर दिखाने की शक्ति केवल आसनों की सिद्धि से प्राप्त नहीं हो सकती। उसके लिये तो मन और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करनी पड़ती है, जिसमें आसन सहायक होते हैं। चमत्कारों के लिये आसनों का अभ्यास करना हमारे लिये उतना आवश्यक नहीं है, जितना स्वास्थ्य के लिये है। स्वास्थ्य तो मनुष्य-मात्र के लिये मूल्यवान वस्तु है।
इधर कुछ दिनों से आसनों की ओर शिक्षित जनों की रुचि बढ़ने लगी है। और आसनों के अभ्यासियों के बहुत-से अनुभव भी, जो उनकी उपयोगिता सिद्ध करते हैं, सुनने को मिलने लगे हैं। अभी थोड़े ही दिन हुये, इंग्लैंड के एक पत्र में वहाँ के एक वृद्ध अंग्रेज का समाचार छपा था, जिसकी उम्र १०३ वर्ष की थी।
वह चश्मा चदलवाने के लिये चश्मे की एक दुकान में गया, तव चश्मेवाले ने उसकी उम्र पूछी, और उसका उत्तर सुनकर वह चकित हो गया। क्योंकि उक्त अंग्रेज १०३ वर्ष का होने पर भी पूरा स्वस्थ और अधिक से अधिक ५०-६० वर्ष का दिखाई पड़ता था। पूछने पर उसने अपनी सुन्दर स्वस्थता को कारण शीर्षासन बताया, जिसे उसने बनारस में किसी योगी से सीखा था। सोचने की बात है कि हम अपने को इतना भूल चुके हैं कि बिदे- शियों के याद दिलाने पर तब हमें आत्म-ज्ञान होता है।
आसन का समय
बहुत सवेरे, ४ और ५ बजे के बीच उठकर, दातुन करके, ताँबे के बरतन में रक्खा हुआ रात का पानी आध सेर पीकर, तब शौच जाना चाहिये। यह आजमाया हुआ नुस्खा है। इससे कभी कब्ज और जुकाम नहीं होता। मुझे सन् १६१६ के अगस्त से आज सन् १६४० के दूसरे महीने तक न ज्वर आया, न जुकाम हुआ। मेरा यह विश्वास है कि यह सवेरे, शौच जाने से पहले, दातुन करके पानी पी लेने का फल है। मैंने और भी कई व्यक्तियों को यह नुस्खा बताया, प्रायः सवको इससे लाभ हुआ है।
शौच आदि से निवृत्त होकर, किसी एकांत कुमरे में या खुली छत पर कंबल चिछाकर, मन को स्वस्थ करके, आसनों का अभ्यास करना चाहिये ।
कुछ लोग स्नान करके अभ्यास करते हैं और कुछ अभ्यास कर चुकने के बाद देर में स्नान करते हैं। जैसी सुविधा हो, वैसा नियम बना लेना चाहिये ।
शाम को भी सूर्यास्त के आसपास आसनों का अभ्यास किया जा सकता है। पर कामकाजी आदमी को शाम को नियत समय पर अवकाश मिलना कभी-कभी मुश्किल होता है, इससे उसे तो प्रातःकाल ही करने का नियम बनाना चाहिये। जो दोनों वक्त, कर सकें, उन्हें दोनों वक्त करना चाहिये ।
आसनों से रोग-चिकित्सा
शीर्षासन से मृगी रोग मिट जाता है। आँखों की ज्योति बढ़ती है। बुद्धि तीब्र होती है। स्मरण-शक्ति बढ़ती है; दाँत मज़बूत होते हैं; बाल काले हो जाते हैं और शरीर के अन्य भीतरी रोगों में भी लाभ पहुँचता है।
पश्चिमोत्तान आसन डायविटीज़ (मधुमेह) के रोगी को विशेष लाभदायक है।
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