वराह पुराण हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Varaha Purana PDF in Hindi

What is Varaha Purana in hindi (वराह पुराण) क्या है ?

वराह पुराण में भगवान श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें भगवान नारायण का पूजन-विधान, शिव-पार्वती की कथाएँ, वराह क्षेत्रवर्ती आदित्य तीर्थों की महिमा, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है। ‘वराह पुराण’ हिन्दू धर्म के पवित्र 18 पुराणों में से एक है, पुराणों की सूची में इसका स्थान 12 है। ऋषि व्यास द्वारा लिपिबद्ध इस पुराण में कुल 217 अध्याय और चौबीस हजार श्लोक है।

‘वराह पुराण’ वैष्णव पुराण है। भगवान विष्णु के दशावतारों में एक अवतार ‘वराह अवतार’ (Varah Awtar) है। पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने यह अवतार लिया था। इस अवतार की विस्तृत व्याख्या इस पुराण में की गई है।

वराह पुराण हिंदी में –Varaha Purana in Hindi

पुराण भारत की सर्वोत्कृष्ट निधि हैं। प्राचीनकाल से ही भारतवर्ष में पुराणों का बड़े आदर के साथ पठन पाठन, श्रवण-मनन और अनुशीलन होता आया है। भारतीय मानस में भगवद्भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार तथा धर्मपरायणताको दृढ़तापूर्वक प्रतिष्ठित करने एवं मानव जीवनके अन्तिम लक्ष्य- ‘भगवत्प्राप्ति’ अथवा ‘मोक्ष्य साधन की ओर प्रेरित करनेका श्रेय वस्तुतः पुराणों को ही है। वेदादि शास्त्रोंके गूढ़तम ज्ञान तत्त्वों एवं रहस्योंको सरल, रोचक एवं सुमधुर आख्यान- शैली में सर्वसाधारणके लिये सुलभ (उपलब्ध) करा देना ही पुराणों की अपूर्व विशेषता है। इसीलिये पुराणों को भारतीय वाङ्मय में विशिष्ट सम्मान और लोकप्रियता प्राप्त है।
पुराणों की ऐसी विलक्षण महिमा और महत्त्वको सादर स्वीकार करते हुए गीताप्रेस ने ‘कल्याण’ के विशेषाङ्कोंके माध्यमसे समय-समयपर अनेक पुराणोंका सरल हिन्दी अनुवाद जनहितमें प्रकाशित किया है। ‘संक्षिप्त वराहपुराणाङ्क’ भी उनमेंसे एक है। यह ‘कल्याण’ के ५१वें वर्षके विशेषाङ्क के रूपमें जनवरी १९७७ ई० में प्रकाशित किया गया था। ‘वराहपुराण’ की गणना परम सात्त्विक पुराणोंमें की जाती है। इसकी कथाएँ बड़ी ज्ञानप्रद, रोचक और कल्याणकारी हैं। भगवत्परायणता, ज्ञान, वैराग्य, साधना एवं अध्यात्मके विकास के लिये इसका अनुशीलन बड़ा ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है। इसमें भगवान् श्रीहरिके वराह अवतारकी मुख्य कथाके साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञयजन श्राद्ध, तर्पण, दान और अनुष्ठान आदिका शिक्षाप्रद और आत्मकल्याणकारी वर्णन है। भगवान् श्रीहरि (श्रीमन्नारायण ) की महिमा, पूजन विधान, हिमालयकी पुत्रीके रूपमें गौरीकी उत्पत्तिका वर्णन और भगवान् शङ्करके साथ उनके विवाहकी रोचक कथा इसमें विस्तारसे वर्णित है। इसके अतिरिक्त इसमें वराह क्षेत्रवर्ती आदित्य-तीर्थोंका वर्णन, भगवान् श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओंके प्रभावसे मथुरामण्डल और व्रजके समस्त तीर्थोंकी महिमा और उनके प्रभाव का भी विशद तथा रोचक वर्णन है।
अमावस्या तिथिकी महिमाके प्रसङ्गमें पितरोंकी उत्पत्तिका कथन एवं पूर्णिमा तिथिकी महिमाके प्रसङ्गमें चन्द्रमाकी उत्पत्तिका वर्णन, मोक्षदायिनी पवित्र नदियों की उत्पत्ति, प्रभाव तथा माहात्म्यादि भी इसमें वर्णित हैं। इसके अतिरिक्त इसमें स्नान, दान, तर्पण आदिकी महिमाके साथ पुण्यकर्मों तथा पापकर्मों के फलोंका विस्तृत वर्णन है। ब्रह्मा, विष्णु, शिवादि त्रिदेवोंकी महिमासहित उनके दिव्य लोकों-ब्रह्मलोक, शिवलोक और वैकुण्ठ आदिका भी इसमें बड़ा ही सुन्दर वर्णन है। साथ ही पुण्यकर्मों के फलस्वरूप स्वर्गादि दिव्य लोकोंकी प्राप्ति और पापकर्मोंके परिणाम स्वरूप भयावह नरकोंकी यातनाका भी वर्णन है। जो मनुष्यको अच्छे और बुरे कर्मों के करने या उनसे बचनेकी प्रेरणा देता है। संक्षेपमें इसकी सभी कथाएँ अत्यन्त ज्ञानप्रद, रोचक और पुण्यप्रद कर्मोंकी ओर प्रेरित करनेवाली एवं पापकर्मों से विरत करनेवाली हैं। वराहपुराण की फलश्रुति भी इसमें महत्त्वपूर्ण है।
हमारा विशेष प्रेमानुरोध है कि कल्याणकामी सभी महानुभावों, अध्यात्मचेता साधकों और समस्त श्रद्धालुजनोंको इसके अधिकाधिक अध्ययन अनुशीलनद्वारा विशिष्ट पारमार्थिक लाभ उठाना चाहिये।

Varaha Purana Story Summary ( वराह पुराण कथा सार )-

इस वराहपुराण में सबसे पहले पृथ्वी और वाराह भगवान का शुभ संवाद है, तदनन्तर आदि सत्ययुग के वृतांत में रैम्य का चरित्र है, फ़िर दुर्जेय के चरित्र और श्राद्ध कल्प का वर्णन है, तत्पश्चात महातपा का आख्यान, गौरी की उत्पत्ति, विनायक, नागगण सेनानी (कार्तिकेय) आदित्यगण देवी धनद तथा वृष का आख्यान है। उसके बाद सत्यतपा के व्रत की कथा दी गयी है, तदनन्तर अगस्त्य गीता तथा रुद्रगीता कही गयी है, महिषासुर के विध्वंस में ब्रह्मा विष्णु रुद्र तीनों की शक्तियों का माहात्म्य प्रकट किया गया है, तत्पश्चात पर्वाध्याय श्वेतोपाख्यान गोप्रदानिक इत्यादि सत्ययुग वृतान्त मैंने प्रथम भाग में दिखाया गया है, फ़िर भगवर्द्ध में व्रत और तीर्थों की कथायें है, बत्तीस अपराधों का शारीरिक प्रायश्चित बताया गया है, प्राय: सभी तीर्थों के पृथक पृथक माहात्मय का वर्णन है, मथुरा की महिमा विशेषरूप से दी गयी है, उसके बाद श्राद्ध आदि की विधि है, तदनन्तर ऋषि पुत्र के प्रसंग से यमलोक का वर्णन है, कर्मविपाक एवं विष्णुव्रत का निरूपण है, गोकर्ण के पापनाशक माहात्मय का भी वर्नन किया गया है, इस प्रकार वाराहपुराण का यह पूर्वभाग कहा गया है, उत्तर भाग में पुलस्त्य और पुरुराज के सम्वाद में विस्तार के साथ सब तीर्थों के माहात्मय का पृथक पृथक वर्णन है। फ़िर सम्पूर्ण धर्मों की व्याख्या और पुष्कर नामक पुण्य पर्व का भी वर्णन है।

पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-

पुस्तक का नाम (Name of Book)मत्स्य-पुराण / Matsya Puran PDF
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Gita Press / गीता प्रेस
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)21 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)1082
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)वेद-पुराण / Ved-Puran

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

सूतजी कहते हैं— सभी जीवधारियोंके शरीरोंमें आत्मारूपसे स्थित भगवान् श्रीहरि पृथ्वीको भक्तिसे परम संतुष्ट हो गये। उन्होंने वराह रूप धारण करके पृथ्वीको अपनी योगमायाका दर्शन कराया और फिर उसी रूपमें स्थित रहकर बोले—’सुश्रोणि! तुम्हारा प्रश्न यद्यपि बहुत कठिन है एवं यह पुरातन इतिहासका विषय है, तथापि मैं सभी शास्त्रोंसे सम्मत इस विषयका प्रतिपादन करता हूँ। पृथ्वीदेवि! साधारणतः सभी पुराणोंमें यह प्रसङ्ग आया है।’ भगवान् वराहने कहा- सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित-जहाँ ये पाँच लक्षण विद्यमान हों, उसे पुराण समझना चाहिये। वरानने! पुराणोंमें सर्ग अर्थात् सृष्टिका स्थान प्रथम है। अतः मैं पहले उसीका वर्णन करता हूँ। इसके आरम्भसे ही देवताओं और राजाओंके चरित्रका ज्ञान होता है। परमात्मा सनातन हैं। उनका कभी किसी कालमें नाश नहीं होता। वे परमात्मा सृष्टिकी इच्छासे चार भागोंमें विभक्त हुए, ऐसा

वेदज्ञ पुरुष जानते हैं। सृष्टिके आदिकालमें सर्वप्रथम परमात्मासे अहंतत्त्व, फिर आकाश आदि पञ्च महाभूत उत्पन्न हुए। उसके पश्चात् महत्तत्त्व प्रकट हुआ और फिर अणुरूपा प्रकृति और इसके बाद समष्टि बुद्धिका प्रादुर्भाव हुआ। सत्त्व, रज और तम-इन तीन गुणोंसे युक्त होकर वह बुद्धि पृथक्-पृथक् तीन प्रकारके भेदोंमें विभक्त हो गयी। इस गुणत्रयमेंसे तमोगुणका संयोग प्राप्त करके महद्ब्रह्मका प्रादुर्भाव हुआ, इसको सभी तत्त्वज्ञ प्रधान अर्थात् प्रकृति कहते हैं। इस प्रकृतिसे भी क्षेत्रज्ञ अधिक महिमायुक्त है। उस परब्रह्मसे सत्त्वादि गुण, गुणोंसे आकाश आदि तन्मात्राएँ और फिर इन्द्रियोंका समुदाय बना। इस प्रकार जगत्की सृष्टि व्यवस्थित हुई। भद्रे पाँच महाभूतोंसे स्वयं मैंने स्थूल शरीरका निर्माण किया देवि! पहले केवल शून्य था। फिर उसमें शब्दकी उत्पत्ति हुई। शब्दसे आकाश हुआ। आकाशसे वायु, वायुसे तेज एवं तेजसे जलकी | उत्पत्ति हुई। इसके बाद प्राणियोंको अपने ऊपर धारण करनेके लिये तुम्हारी – (पृथ्वीकी) रचना हुई ।

पृथ्वी और जलका संयोग होनेपर बुदबुदाकार कलल बना और वही अण्डेके आकारमें परिणत हो गया। उसके बढ़ जानेपर मेरा जलमय रूप दृष्टिगोचर हुआ। मेरे इस रूपको स्वयं मैंने ही बनाया था। इस प्रकार नार अर्थात् जलकी सृष्टि करके मैं उसीमें निवास करने लगा। इसीसे मेरा नाम ‘नारायण’ हुआ। वर्तमान कल्पके समान ही मैं प्रत्येक कल्पमें जलमें शयन करता हूँ और मेरे सोते समय सदैव मेरी नाभिसे इसी प्रकार कमल उत्पन्न होता है, जैसा कि आज तुम देख रही हो। देवि! ऐसी स्थितिमें मेरे नाभिकमलपर चतुर्मुख ब्रह्मा उत्पन्न हुए। तब मैंने उनसे कहा- ‘महामते! तुम प्रजाकी रचना करो।’ ऐसा कहकर मैं अन्तर्धान हो गया और ब्रह्मा भी सृष्टिरचनाके चिन्तनमें लग गये। वसुन्धरे ! इस प्रकार चिन्तन करते हुए ब्रह्माको जब कोई मार्ग नहीं सूझ पड़ा, तो फिर उन अव्यक्तजन्माके मनमें क्रोध उत्पन्न हुआ। उनके इस क्रोधके परिणामस्वरूप एक बालकका प्रादुर्भाव हुआ। जब उस बालकने रोना प्रारम्भ किया, तब अव्यक्तरूप ब्रह्माने उसे रोनेसे मना किया। इसपर उस बालकने कहा- ‘मेरा नाम तो बता दीजिये।’ तब ब्रह्माने रोनेके कारण उसका नाम ‘रुद्र’ रख दिया। शुभे! उस बालकसे भी ब्रह्माने कहा – ‘लोकोंकी रचना करो।’ परंतु इस कार्यमें अपनेको असमर्थ जानकर उस बालकने जलमें निमग्न होकर तप करनेका निश्चय किया।

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Varaha Purana (वराह पुराण) में कितने अध्याय और श्लोक है ?

वराह पुराण में कुल 217 अध्याय और चौबीस हजार श्लोक है।

वराह पुराण में कितने श्लोक हैं?

वराह पुराण में दो सौ सत्तरह अध्याय और लगभग दस हज़ार श्लोक हैं

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