“उपदेशप्रद कहानियाँ” गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित एक संग्रह है जिसमें नैतिक और आध्यात्मिक कथाएँ हैं जो मूल्यवान जीवन सीख और उपदेश प्रदान करती हैं। ये कहानियाँ अक्सर प्राचीन भारतीय ग्रंथों और परंपराओं पर आधारित हैं, जैसे कि रामायण, महाभारत और विभिन्न पुराणों से ली गई कथाएँ।
यह पुस्तक उन कथाओं की एक श्रृंगारिक ब्योरेक्ट्रिया प्रस्तुत करती है जो केवल रोचक नहीं हैं, बल्कि गहरे दार्शनिक और नैतिक दृष्टिकोण से भरपूर हैं। प्रत्येक कहानी का उद्देश्य मानवता, धर्म (कर्तव्य), कर्म (क्रिया और परिणाम), और आध्यात्मिक जागरूकता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को प्रस्तुत करना है।
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पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
स्त्रियोंके लिये कल्याणके कुछ घरेलू प्रयोग
(एक उपदेशप्रद दृष्टान्त)
किसी संयुक्त परिवारमें दो स्त्री-पुरुष, उनके पाँच लड़के और दो लड़कियाँ थीं। लड़कोंका विवाह हो चुका था। उनमेंसे चारके बाल-बच्चे भी थे। लड़कियाँ दोनों कुआरी थीं। सबसे छोटे लड़केका ब्याह कुछ ही दिन पहले हुआ था । उसकी स्त्री अभी मैकेमें ही थी। इस प्रकार दोनों लड़कियोंको मिलाकर घरमें कुल सात स्त्रियाँ थीं। वे चाहतीं तो सब मिलकर घरका काम-काज अच्छी तरह कर सकती थीं; परन्तु उनकी आपसमें बनती न थी ।
वे एक-दूसरीसे जला करती थीं और घरके काम- काजसे जी चुराती थीं। उनमेंसे प्रत्येक यही चाहती कि उसे कम-से-कम काम और अधिक-से-अधिक आराम मिले। आये दिन उनमें तू-तू, मैं-मैं हो जाया करती थी; घरमें अशान्ति और कलहका साम्राज्य था । इसी परिस्थितिमें सबसे छोटे लड़केकी स्त्री भी अपने मैकेसे आ गयी। वह उत्तम घरानेकी लड़की थी ।
उसे बचपनसे ही बड़ी अच्छी शिक्षा मिली थी। वह अपनेको उस क्षुब्ध वातावरणमें पाकर घबरा उठी। अपनी सास और जिठानियोंको आपसमें लड़ते-झगड़ते देख वह एक दिन रो पड़ी और अत्यन्त आर्त होकर मन ही मन भगवान् से प्रार्थना करने लगी- ‘प्रभो !
क्या यही सब देखने-सुननेके लिये मुझे आपने इस घरमें भेजा है ? यहाँ तो मैं एक दिन भी न रह सकूँगी। मुझे रात-दिनका झगड़ा अच्छा नहीं लगता। न जाने मैंने पिछले जन्मोंमें ऐसे कौन-से दुष्कर्म किये हैं, जिनके कारण मेरा इस घरमें ब्याह हुआ है ?’ रोते-रोते उसकी आँख लग गयी ।
उसे स्पष्ट सुनायी दिया मानो उसे कोई सान्त्वनापूर्ण शब्दोंमें कह रहा है- ‘बेटी ! घबरा मत, इस घरका सुधार करनेके लिये ही तुझे यहाँ भेजा गया है । तुझ जैसी लड़कीकी यहाँ आवश्यकता थी ।’
इन शब्दोंको सुनकर छोटी बहूको बड़ी सान्त्वना मिली । उसकी सारी घबराहट जाती रही। उसने मन-ही-मन अपना कर्तव्य निश्चित कर लिया । उसने कलहका मूल जानना चाहा। उसे मालूम हुआ कि उसकी सास और जिठानियों तथा ननदोंने आपसमें घरका काम बाँट लिया है। सास और ननदें ऊपरका काम करती थीं और बहुएँ पारी पारीसे भोजन बनातीं ।
अन्य सभी 1 कामोंके लिये भी पारी बाँध ली गयी थी; परन्तु यदि उनमेंसे दैवात् कोई बीमार हो जाती तो दूसरी बहुएँ उसके बदलेका काम करनेमें आनाकानी करतीं । वे उसपर बहानेबाजीका आरोप करतीं और अनेक प्रकारके आक्षेप करतीं।
लड़ाईका दूसरा कारण यह होता कि जब कभी घरमें बाहरसे कोई खाने-पीनेकी चीज आती तो सब की सब यह चाहतीं कि अच्छी-से-अच्छी चीज अधिक-से-अधिक मात्रामें मुझे मिले।
बस, इसीपर झगड़ा शुरू हो जाता और आपसमें गाली-गलौजतककी नौबत आ जाती। कभी-कभी मामूली बातोंको लेकर बखेड़ा खड़ा कर लिया जाता। यदि कभी एक भाईका लड़का दूसरे भाईके लड़केसे लड़ पड़ा तो इसीपर दोनोंकी माताएँ एक-दूसरीको खूब खोटी-खरी सुनातीं।
इन सब बातोंको देखकर छोटी बहूको बड़ा दुःख हुआ। जिस दिन उसने भगवान्का आदेश सुना, उसी दिनसे वह झगड़ा मिटानेका उपाय सोचने लगी।
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