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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | तन्त्र सिद्धि रहस्य बुक | Tantra Siddhi Rahasya |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | PT. Ramesh Chandra Sharma |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 121 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 436 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | तंत्र विद्या/Tantra Vidya |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
Tantra Siddhi Rahasya in Hindi PDF Summary
“तंत्र सिद्धि रहस्य इन हिंदी पीडीएफ” तंत्र की प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक पद्धति के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका है। यह पुस्तक तंत्र की गहन अवधारणाओं, अनुष्ठानों और तकनीकों पर प्रकाश डालती है, जो पाठकों को इस गूढ़ मार्ग की गहरी समझ प्रदान करती है।
एक अनुभवी चिकित्सक द्वारा लिखी गई यह पुस्तक तंत्र के रहस्यों को उजागर करती है और पाठकों को इसके विकास के विभिन्न चरणों के माध्यम से मार्गदर्शन करती है। यह मानव शरीर के भीतर चक्रों, ऊर्जा केंद्रों के महत्व का पता लगाता है, और सिखाता है कि आध्यात्मिक विकास और परिवर्तन के लिए उनकी शक्ति का उपयोग कैसे किया जाए।
पुस्तक का एक प्रमुख पहलू कुंडलिनी शक्ति, रीढ़ की हड्डी के आधार पर रहने वाली सुप्त आध्यात्मिक ऊर्जा, के जागरण पर जोर देना है। विस्तृत व्याख्याओं और व्यावहारिक अभ्यासों के माध्यम से, लेखक पाठकों को कुंडलिनी जागरण के मार्ग पर मार्गदर्शन करता है, जिससे उच्च चेतना और आत्मज्ञान की स्थिति प्राप्त होती है।
“तंत्र सिद्धि रहस्य इन हिंदी पीडीएफ” तंत्र अभ्यास में मंत्रों, मुद्राओं और यंत्रों की भूमिका का भी पता लगाता है। मंत्र पवित्र ध्वनियाँ और कंपन हैं जिनमें अपार शक्ति होती है, जबकि मुद्राएँ हाथ के इशारे हैं जो ऊर्जा को प्रवाहित करते हैं और चेतना की विशिष्ट अवस्थाओं को उद्घाटित करते हैं। यंत्र, जटिल ज्यामितीय आरेख, ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं के दृश्य प्रतिनिधित्व के रूप में कार्य करते हैं और ध्यान और चिंतन में सहायता करते हैं।
यह पुस्तक वामाचार, दक्षिणाचार और कौलाचार सहित तंत्र की विभिन्न शाखाओं पर प्रकाश डालती है, जिनमें से प्रत्येक अपनी अनूठी प्रथाओं और दर्शन के साथ है। यह द्वैत, अद्वैत और माया के भ्रम की तांत्रिक अवधारणाओं की भी पड़ताल करता है, पाठकों को वास्तविकता और अस्तित्व की गहरी समझ की ओर मार्गदर्शन करता है।
“तंत्र सिद्धि रहस्य हिंदी पीडीएफ में” तांत्रिक मार्ग पर चलने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति के लिए एक मूल्यवान संसाधन है। यह तंत्र के सिद्धांतों, प्रथाओं और दर्शन का व्यापक परिचय प्रदान करता है, जिससे पाठकों को गहराई और समझ के साथ इस गहन आध्यात्मिक परंपरा का पता लगाने का अधिकार मिलता है।
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अथ कर्ण पिशाचिनी साधनम्
कर्णपिशाचिनी साधना मूलतः वाममार्गी साधना है, अत: आगे जाकर साधक का भविष्य बिगाड़ देती है। साधक अंत में शारीरिक कष्ट एवं दुर्गति को प्राप्त करता है। मुक्ति उससे कोसों दूर रहती है, ऐसी बात नहीं है, कुछ प्रयोग सात्विक भी है। केसर का लेप कान के लगाने से तथा अभिमंत्रित भस्म कान के लगाने से भी वार्ता फल कहती है। अघोर क्रिया वाले मल या मूत्र की भिगाई रुई कान में लगाते है। चाहे समय अधिक लगे प्रयोग सात्विक ही करना चाहिये। कर्णपिशाचि का आप के परिवार से कोई मोह नहीं होता, अतः किसी पारिवारिक दुर्घटना का भी कोई संकेत नहीं देती।
एक कर्णपिशाचि विदेश गये हुये थे। पीछे से उनकी पत्नि शांत हो गयी उसके २-३ महिने बाद वे अपने घर पहुंचे । घर आने पर ही उनको इस हेतु पता चला। एक अच्छे कर्णपिशाचि साधक थे, जिनका विशेष सम्मान होता था। उन्होनें अपने पुत्र की शादी में हाथी मंगवाया। संयोग से हाथी पागल हो गया तथा गांव में ३-४ व्यक्तियों को मार डाला। जयपुर में भी एक दाधिच ब्राह्मण कर्णपिशाचि के अच्छे साधक थे, संभव है उन्होने उसे अघोर क्रिया से सिद्ध किया था। उनकी मृत्यु के समय पिशाचि ने विशेष दुर्गन्ध वाला मल लाकर पूरे शरीर, आंख, कान, नाक, सभी में लेपन कर दिया। भीलवाड़ा में भी एक जैन वकील है, जिन्हे इसके प्रयोग हेतु शराब व सिगरेट का सहारा लेना पड़ता है।
कर्णपिशाचिनी भूतकाल वार्ता सही बता सकती है। आय स्रोत बढ़ा सकती है, किन्तु भविष्य फल तो ज्योतिष माध्यम से ही सही बैठता है। किसी विशिष्ट साधक का भूतकाल भी सही नहीं बता सकती। आप दुर्गासप्तशती में से कवच का पाठ करके अपनी जेब में कोई वस्तु रख लेवें। पुनः कवच का पाठ करके पिशाचि साधक के पास जायें तो वह उस वस्तु के बारे में नहीं बता सकेगा। मैं ५-७ कर्णपिशाचिनी साधकों से मिला कोई मेरा भूतकाल भी सहीं नहीं बता सका। भविष्य तो दूर रहा। विशिष्ट साधक के सामने पिशाचि पूर्णरूप से सामने नही आ सकने के कारण वह अपने साधक को दूर से ही वार्ता संकेत देती है। जिसे वह पूर्ण नहीं समझ पाता और उसका फलित गलत हो जाता है।
दुर्गापाठी व शक्ति उपासक को यह विद्या आसानी से सिद्ध नहीं होती। कर्णपिशाचिनी कई बार वर मांगती है कि “तुम मुझे किस रूप में चाहते हो मां, बहिन, पुत्री, सखी या स्त्री” इसमें से जिस रूप में आप उसे स्वीकार करोगे तो उस स्त्री की परिवार में हानि हो जायेगी। जैसे मां रूप में माना तो मां की हानी हो जायेगी। यह कभी कभी विशेष लावण्य रूप धारण करती है अतः मां, बहिन, रूप में मानते मानते पत्नी भाव को प्राप्त करने की इच्छा होने लगती है। वहीं साधक का पतन हो जाता है।
एक साधक जिन्होने पहले बहिन रूप में माना परन्तु जब उसे पत्नी भाव से माना तो गृहस्थ से दूर हो गया। एक साधक की पत्नी यदि उनके पलंग पर सोती तो कर्णपिशाचिनी उसे उठाकर फेंक देती थी, तथा जान से मारने की धमकी भी देती थी। साधक दुखी था वह कहता “मैं जो भी भजन उपासना करता हूं उसका आध फल अब उसे पत्नी रूप के कारण मिल जाता है, अतः इसका निवारण अब मुझे असंभव लगता है” इतने सारे उदाहरण मैं साधक को भविष्य के प्रति सचेत हाने के लिये लिख रहा हूं।
कर्णपिशाचि जितनी जल्दी आयेगी उसकी शक्ति भी कम होगी। कर्णपिशाचि मंत्र में “पिप्पलाद ऋषि” का उल्लेख विनियोग में आता है अतः विशिष्ट शक्तिशाली पिशाचि ही उनके सामने प्रकट हुई होगी।
साधकों के हित के लिये एक विशिष्ट प्रयोग लिख रहा हूं।
१. मन्त्रः- ॐ नमो भगवती कर्णपिशाचिनी देवि अग्रे छागेश्वरि सत्यवादिनी सत्यं दर्शय दर्शय शिव प्रसन्नमुद्रा व्यंतर्याकोपिनभर्त मम कर्णे कथय कथय हरये नमः ।
एक सिद्ध महात्मा ने यह मंत्र मेरे एक मित्र को दिया था। मित्र बगलामुखी का प्रयोग करता था। उसने मंत्र को जांचने हेतु इसका प्रयोग साधारण धूप दीपादि के द्वारा रात्रि में किया। १० वें दिन कर्णपिशाचिनी ने उसे एक निश्चितजगह पर आने को कहा। वहां प्रकट होकर वर मांगने को कहा तो उसने मना कर दिया कहा कि “मैने तो मंत्र सिद्धि जानने के लिये प्रयोग किया था” इससे ३-४ दिन तो उसका कोप रहा पर वह उसका कोई अहित नहीं कर सकी। मुझे जब तंत्र में रुचि हुई इसका प्रयोग करके देखा।
११ माला रोज करने पर रात्रि में मुझे स्वप्न में ज्योतिष व सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञान करवाती। ५-७ दिन बाद प्रयोग बंद कर दिया। एक बार पुनः प्रयोग करके देखा चित्र की जगह मैंने दुर्गासप्तशती की पुस्तक में जो चित्र था उस पृष्ट को खोल कर रख लिया। ३ दिन तक वह पुस्तक मुझ से एकदम दूर खिसक गई। पुस्तक के चलायमान होने से मैं समझ गया कि मंत्र सही है। परन्तु मैं इस विद्या के पीछे नहीं पड़ा दश महाविद्याओं में ही मेरी रुचि रही।
कहा जाता है पिशाचि १०,००० मंत्र में ही सिद्ध हो जाती है परन्तु यदि कभी प्रयोग बंद कर दिया तो पुनः दुगने मंत्र जप करने पर ही सिद्ध होगी यदि फिर छोड़ दिया तो ४०,००० पर सिद्ध होगी ऐसा कहा जाता है।
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