श्री नारद पुराण | Sri Narad Puran Book Pdf Free Download

श्री नारद पुराण कथा हिंदी में – Narad Puran in Hindi

देवर्षि नारद जी ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न माने गये हैं। ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा, ‘‘बेटा, विवाह करो और सष्ष्टि का विस्तार करो।’’ लेकिन नारद जी ने पिता ब्रह्मा जी की बात नहीं मानी, कहने लगे, ‘‘पिताजी, मैं विवाह नहीं करूँगा। मैं केवल भगवान पुरूषोत्तम की भक्ति करना चाहता हूँ और जो भगवान को छोड़कर विषयों एवं भोगों में मन लगाये उससे अधिक मूर्ख कौन होगा! विषय तो स्वप्न के समान नश्वर, तुच्छ एवं विनाशकारी हैं।’’

आदेश न मानने पर ब्रह्मा जी ने रोष में आकर नारदजी को श्राप दे दिया एवं कहा कि ‘‘तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी, इसलिये तुम्हारा समस्त ज्ञान नष्ट हो जायेगा और तुम गन्धर्व योनी को प्राप्त कर कामिनीयों के वशीभूत हो जाओगे।’’ नारदजी ने कहा, ‘‘पिताजी, आपने यह क्या किया? अपने तपस्वी पुत्र को श्राप दे दिया?

लेकिन एक कष्पा जरूर करना जिस-जिस योनि में मेरा जन्म हो, भगवान भक्ति मुझे कभी न छोड़े एवं मुझे पूर्व जन्मों का स्मरण रहे। और हाँ, आपने मुझे बिना किसी अपराध के श्राप दिया है, अतः मैं भी तुम्हें श्राप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में तुम्हारी पूजा नहीं होगी। आपके मंत्र-स्त्रोत कवच सभी लोप हो जायेंगे।’’

ब्रह्मा जी के श्राप से नारद जी को गन्धर्व योनि में जन्म लेना पड़ा तथा दो योनियों में जन्म लेने के पश्चात् उन्हें परब्रह्मज्ञानी नारद स्वरूप प्राप्त हुआ।

गायन्न्ा माद्यन्निदं तंत्र्या रमयत्यातुरं जगत्।

अहो! देवर्षि नारद धन्य हैं क्योंकि ये भगवान की कीर्ति को अपनी वीणा पर गाकर स्वयं तो आनन्दमयी रहते हैं साथ ही दुःखों से संतप्त जगत को भी आनन्दित करते रहते हैं। नारद पुराण में सदाचार, महिमा, एकादशी व्रत तथा गंगा उत्पत्ति महात्मय, वर्णाश्रम धर्म, पंच महापातक, प्रायश्चित कर्म, पूजन विधि, गायंत्री मंत्र जाप विधि, तीर्थ स्थानों का महत्व, दान महात्मय आदि पर विशिष्ट चर्चा की गयी है।

नारद पुराण में क्या लिखा है? (What is written in Narada Purana?)

भारतीय संस्कृत-साहित्य अनन्त ज्ञान-गरिमासे परिपूर्ण है। उसके असीम ज्ञान-सिन्धु से उपलब्ध हुए पुराणोंको अमूल्य रत्नराशिके रूपमें अत्यन्त सम्मान और गौरवशाली स्थान प्राप्त है। इसीलिये पुराणोंके सेवन (श्रवण, अनुशीलन) को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।
‘कल्याण’ – वर्ष २८वेंके विशेषाङ्कके रूप में ‘नारद – विष्णुपुराणाङ्क’ (सन् १९५४ ई० में) प्रकाशित हुआ था । बादमें यह पुनर्मुद्रित भी किया गया। ‘नारदपुराण’ तथा ‘विष्णुपुराण’ एक ही में संयुक्त होने से इसका कलेवर पर्याप्त बड़ा ( लगभग आठ सौ पृष्ठों का ) था। फलस्वरूप इसका अध्ययन समयसाध्य और पाठकों के लिये असुविधाजनक था। अतः इसे ध्यानमें रखते हुए प्रेमी पाठकोंके सुविधार्थ इसे अब अलग-अलग दो भागोंमें प्रकाशित करनेका विचार किया गया है। तदनुसार यह केवल ‘नारदपुराण’ आप सबकी सेवामें प्रस्तुत है।

नारद पुराण या ‘नारदीय पुराण’ अट्ठारह महापुराणों में से एक पुराण है। यह स्वयं महर्षि नारद के मुख से कहा गया एक वैष्णव पुराण है।[ महर्षि व्यास द्वारा लिपिबद्ध किए गए १८ पुराणों में से एक है। नारदपुराण में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष (तथा गणित), और छन्द-शास्त्रों का विशद वर्णन तथा भगवान की उपासना का विस्तृत वर्णन है। यह पुराण इस दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें अठारह पुराणों की अनुक्रमणिका दी गई है। इस पुराण के विषय में कहा जाता है कि इसका श्रवण करने से पापी व्यक्ति भी पापमुक्त हो जाते हैं। पापियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो व्यक्ति ब्रह्महत्या का दोषी है, मदिरापान करता है, मांस भक्षण करता है, वेश्यागमन करता हे, तामसिक भोजन खाता है तथा चोरी करता है; वह पापी है। इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय विष्णुभक्ति है।
‘नारदपुराण’ में कल्याणकारी श्रेष्ठ विषयोंका उल्लेख है। इसमें वेदोंके छहों अङ्गों – (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छन्द-शास्त्रों ) का विशद वर्णन तथा भगवान्‌की सकाम उपासनाका भी विस्तृत विवेचन है। प्रारंभ में यह २५,००० श्लोकों का संग्रह था लेकिन वर्तमान में उपलब्ध संस्करण में केवल २२,००० श्लोक ही उपलब्ध है। नारद पुराण दो भागों में विभक्त है- पूर्व भाग और उत्तर भाग। पहले भाग में चार अध्याय हैं जिसमें सुत और शौनक का संवाद है, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा के कर्मकांड, विभिन्न मासों में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों के अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं। दूसरे भाग में भगवान विष्णु के अनेक अवतारों की कथाएँ हैं।

भगवान्‌की सकाम आराधना भी उत्तम है। भाव बननेपर भगवद्भक्तिके उत्कर्षके बाद अन्तमें भगवत्प्राप्ति कर लेनेमें समर्थ हो जाता है। आशा है आत्म-कल्याणकामी पाठकों और सभी श्रद्धालु, जिज्ञासुजनोंके लिये प्रस्तुत इस ‘नारदपुराण’ का अध्ययन विशेष उपयोगी सिद्ध होगा।

पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-

पुस्तक का नाम (Name of Book)श्री नारद पुराण / Sri Narad Puran PDF
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Gita Press / गीता प्रेस
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)41 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)751
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)वेद-पुराण / Ved-Puran

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

नैमिषारण्य नामक विशाल वनमें महात्मा ॥ शौनक आदि ब्रह्मवादी मुनि मुक्तिकी इच्छासे तपस्या में संलग्न थे। उन्होंने इन्द्रियोंको वशमें कर लिया था। उनका भोजन नियमित था। वे सच्चे संत थे और सत्यस्वरूप परमात्माकी प्राप्तिके लिये पुरुषार्थ करते थे। आदिपुरुष सनातन भगवान् विष्णुका वे बड़ी भक्तिसे यजन-पूजन करते रहते थे। उनमें ईष्यांका नाम नहीं था। वे सम्पूर्ण धर्मोके ज्ञाता और समस्त लोकोंपर अनुग्रह करनेवाले थे। ममता और अहङ्कार उन्हें छू भी नहीं सके थे। उनका चित्त निरन्तर परमात्माके चिन्तनमें तत्पर रहता था। वे समस्त कामनाओंका त्याग करके सर्वथा निष्पाप हो गये थे। उनमें शम, दम आदि सद्गुणोंका सहज विकास था। काले मृगचर्मकी चादर ओढ़े, सिरपर जटा बढ़ाये तथा निरन्तर ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए वे महर्षिगण

सदा परब्रह्म परमात्माका जप एवं कीर्तन करते थे। सूर्यके समान प्रतापी, धर्मशास्त्रोंका यथार्थ तत्त्व जाननेवाले वे महात्मा नैमिषारण्य में तप करते थे। उनमें से कुछ लोग यज्ञोंद्वारा यज्ञपति भगवान् विष्णुका यजन करते थे। कुछ लोग ज्ञानयोगके साधनोंद्वारा ज्ञानस्वरूप श्रीहरिकी उपासना करते थे और कुछ लोग भक्तिके मार्गपर चलते हुए परा-भक्तिके द्वारा भगवान् नारायणकी पूजा करते थे।
एक समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्षका उपाय जाननेकी इच्छासे उन श्रेष्ठ महात्माओंने एक बड़ी भारी सभा की। उसमें छब्बीस हजार ऊर्ध्वरेता (नैष्ठिक ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले) मुनि सम्मिलित हुए थे। उनके शिष्य प्रशिष्योंकी संख्या तो बतायी ही नहीं जा सकती। पवित्र अन्तःकरणवाले वे महातेजस्वी महर्षि लोकोंपर अनुग्रह करनेके लिये ही एकत्र हुए थे। उनमें राग और मात्सर्यका सर्वथा अभाव था। वे शौनकजीसे यह पूछना चाहते थे कि इस पृथ्वीपर कौन- कौन-से पुण्यक्षेत्र एवं पवित्र तीर्थ हैं। त्रिविध तापसे पीड़ित चित्तवाले मनुष्योंको मुक्ति कैसे प्राप्त हो सकती है। लोगोंको भगवान् विष्णुकी अविचल भक्ति कैसे प्राप्त होगी तथा सात्त्विक, राजस और तामस-भेदसे तीन प्रकारके कर्मोंका फल किसके द्वारा प्राप्त होता है। उन मुनियोंको अपनेसे इस प्रकार प्रश्न करनेके लिये उद्यत देखकर उत्तम बुद्धिवाले शौनकजी विनयसे झुक गये और हाथ जोड़कर बोले।

शौनकजीने कहा- महर्षियो! पवित्र सिद्धाश्रम- तीर्थमें पौराणिकोंमें श्रेष्ठ सूतजी रहते हैं। वे वहाँ अनेक प्रकारके यज्ञोंद्वारा विश्वरूप भगवान् विष्णुका यजन किया करते हैं। महामुनि सूतजी व्यासजीके शिष्य हैं। वे यह सब विषय अच्छी तरह जानते हैं। उनका नाम रोमहर्षण है। वे बड़े शान्त स्वभावके हैं और पुराणसंहिताके वक्ता हैं। भगवान् मधुसूदन प्रत्येक युगमें धर्मोका हास देखकर वेदव्यास- रूपसे प्रकट होते और एक ही वेदके अनेक विभाग करते हैं। विप्रगण ! हमने सब शास्त्रोंमें यह सुना है कि वेदव्यास मुनि साक्षात् भगवान् नारायण ही हैं। उन्हीं भगवान् व्यासने सूतजीको पुराणोंका उपदेश दिया है। परम बुद्धिमान् वेदव्यासजीके द्वारा भलीभाँति उपदेश पाकर सूतजी सब धर्मोके ज्ञाता हो गये हैं। संसारमें उनसे बढ़कर दूसरा कोई पुराणोंका ज्ञाता नहीं है; क्योंकि इस लोकमें सूतजी ही पुराणोंके तात्त्विक अर्थको जाननेवाले, सर्वज्ञ और बुद्धिमान् हैं। उनका स्वभाव शान्त है। वे मोक्षधर्मके ज्ञाता तो हैं ही, कर्म और भक्तिके विविध साधनोंको भी जानते हैं। मुनीश्वरो ! वेद, वेदाङ्ग और शास्त्रोंका जो सारभूत तत्त्व है, वह सब मुनिवर व्यासने जगत्के हितके लिये पुराणोंमें बता दिया है और ज्ञानसागर सूतजी उन सबका यथार्थ तत्त्व जाननेमें कुशल हैं, इसलिये हमलोग उन्होंसे सब बातें पूछें।

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नारद पुराण सुनने से क्या फल मिलता है?

नारद पुराण कथा करने एवं सुनने से नारायण की निश्चल भक्ति प्राप्त होती है। नारदोदेव दर्शनः। अर्थात् जिन्हें नारद जी के दर्शन हो जायें उसे नारायण के दर्शन अवश्य होते हैं।

नारद जी की मृत्यु कैसे हुई?

इनसे जुड़ी एक कथा के अनुसार प्राचीन समय में दक्ष पुत्रों को योग का उपदेश उपदेश देकर उन्हें संसार से विमुख करने पर राजा दक्ष क्रोधित हो गए और उन्होंने नारद का विनाश कर दिया।

नारद जी का जन्म कैसे हुआ था?

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार नारद जी ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न हुए थे

नारद मुनि के माता पिता कौन है?

नारद मुनि ब्रह्मा के मानसी पुत्र थे, उनकी मां नहीं थी ।

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