रत्न विज्ञान PDF (Ratn Vigyan Hindi Book) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
मनुष्य प्राकृतिक रूप से ही सौंदर्य प्रेमी रहा है। इसीलिए जब वह धीरे- धीरे सभ्यता की ओर बढ़ रहा था तब भी वह तरह-तरह की वस्तुओं से अपने शरीर को सजाता संवारता रहता था। पक्षियों के सुन्दर पंख, हड्डियां, दाँत तथा पत्थर आदि जो भी वस्तु उसे अपनी ओर आकर्षित करती उसे वह अपने शरीर की शोभा वृद्धि के लिए प्रयोग करने लगता था । आज भी यदि हम गौर करें तो पाएंगे कि छोटे-छोटे बच्चे सुन्दर पत्थर, पर, सीपीयां तथा चूड़ियों के टुकड़े आदि एकत्रित करके अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। मनुष्य की इसी प्रवृति ने रत्नों का आविष्कार किया होगा ।
रत्नों का प्रयोग सर्वप्रथम कब आरम्भ हुआ यह तो ठीक-ठीक बता पाना कठिन है । फिर भी आज विद्वानों की सर्वसम्मति से संसार की अत्यन्त प्राचीन मानी जाने वाली पुस्तक ऋग्वेद में ‘रत्न’ शब्द का प्रयोग देखने को • मिलता है।
उसके बाद लिखी गई अन्य पुस्तकों जो कि आज से हजारों साल पहले लिखी गई थी जैसे महाभारत, अग्निपुराण, देवी भाग्वत, गरुण पुराण, भाव प्रकाश, चरक, वागभट, सुश्रुत, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, शुक्रनीति तथा अमरकोश में भी रत्नों के विषय में जानकारी मिलती है।
प्रत्येक सम्प्रदाय की धार्मिक पुस्तकों में भी रत्नों का वर्णन देखने को मिलता है ।यूनान के प्रसिद्ध लेखक थ्योफेरेटस (Thiopharatus) (372-287 ईसा पूर्व) ने रत्नों के विषय पर बहुत कुछ लिखा है। प्रथम शताब्दी के लेखक प्लीनी (62-113) ने एक विशाल पुस्तक ‘नेचुरल हिस्ट्री’ नाम से लिखी थी । जिसके अन्त में एक बड़ा अध्याय रत्नों के विषय पर भी दिया गया था । 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध लेखक व पर्यटक मार्कोपोलो, 16वीं शताब्दी के प्रसिद्ध रत्न व्यापारी, जौहरी, पर्यटक व लेखक टेवरनियर (Taverniar).
Leave a Comment