रहीम के दोहे (Rahim Ke Dohe ) के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का नाम (Name of Book) | रहीम के दोहे / Rahim Ke Dohe |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Rahim |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 201 KB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 24 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
“रहीम के दोहे” 16वीं शताब्दी में कवि और संत रहीम द्वारा लिखे गए दोहों का संग्रह है। हिंदी भाषा में लिखे गए ये दोहे प्रेम, नैतिकता और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला पर ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
पुस्तक को भारतीय साहित्य का एक क्लासिक माना जाता है, और इसकी शिक्षाओं का आज भी व्यापक रूप से अध्ययन और संदर्भ किया जाता है। इस पुस्तक को व्यापक रूप से भारतीय साहित्य में सबसे महान कार्यों में से एक माना जाता है, जिसे देश भर में व्यापक रूप से पढ़ा और पढ़ा जा रहा है।
1 ध्यान और वन्दना
जेहि ‘रहीम’ मन आपनो कीन्हो चारू चकोर । निखि- वासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर। 1||
जिस किसी ने अपने मन को सुन्दर चकोर बना लिया, वह नित्य निरन्तर, रात और दिन, श्रीकृष्णरूपी चन्द्र की ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है। सन्दर्भ- चन्द्र का उदय रात को होता है, पर यहाँ वासर अर्थात दिन भी आया है, अतः वासर का आशय है नित्य निरन्तर से। हृ
‘रहिमन’ कोऊ का करे, ज्वारी, चोर, लवार।
जो पत राखनहार है, माखन चाखनहार ||2||
जिसकी लाज रखनेवाले माखन चाखनहार अर्थात रसास्वादन लेनेवाले स्वयं श्रीकृष्ण
हैं, उसका कौन क्या बिगाड़ सकता है?
न तो कोई जुआरी उसे हरा सकता है, न कोई चोर उसकी किसी वस्तु को चुरा सकता है और न कोई लफंगा उसके साथ असभ्यता का व्यवहार कर सकता है। सन्दर्भ- जुआरी का आशय है यहां शकुनि से, जिसने युधिष्ठर को धूर्ततापूर्वक जुए में
बुरी तरह हरा दिया था।
10
ब्रह्मा द्वारा जब ग्वाल-बालों की गांए चुरा ली गयीं, तब श्रीकृष्ण ने उनकी
रक्षा की थी। इसी प्रकार दुष्ट दुःशासन द्वारा साडी खींचने पर आर्त द्रौपदी की लाज श्रीकृष्ण ने बचाई थी। हृ
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