Radha Tantra PDF in Hindi (राधातंत्र ) Book PDF Details:
पुस्तक का नाम (Name of Book) | Radha Tantra PDF | राधातंत्र |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | अनाम / Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 3 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 145 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | तंत्र विद्या/Tantra Vidya |
Radha Tantra PDF (राधातंत्र) Book Summary
राधा तंत्रम् (Radha Tantra) एक प्राचीन तंत्र ग्रंथ है, जो वैष्णव तंत्र के अंतर्गत आता है। यह ग्रंथ राधा और कृष्ण के भक्ति और उनके आपसी प्रेम के विषय में ज्ञान देता है। इसमें विभिन्न तंत्रिक विधियों, मंत्रों, यंत्रों, और उपासना की जानकारी होती है।
सुनहु भरत भावी प्रबल विलखि कहेउ मुनिनाथ। हानि-लाभ-जीवन-मरण-यश-अपयश विधि हाथ।।
(रा० न० मा० अ० का)
राधातंत्र में माधवी राधा और श्रीकृष्ण तत्त्व
लोक में प्रसिद्ध है कि “राधा के बिना माधव (श्रीकृष्ण) आधे हैं।” श्रीमद् भागवत् महापुराण में श्रीराधा का नाम नहीं आता, लेकिन ‘अनया राधितः कृष्णः’ अर्थात् राधा से आराधित माधव और माधव से आराधिता राधा यह दोनों परम तत्त्व युगनद्ध (युगल) हैं। शिव-शक्ति, विष्णु-लक्ष्मी, श्रीराम-सीता की भांति श्रीराधा-श्रीकृष्ण तत्त्व अभिन्न हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है, “कहियत भिन्न न भिन्त्र।” वागर्थ (वाणी शब्द) अर्थ की भाँति, माता-पिता की भाँति राधा-कृष्ण एक ही तत्त्व हैं। महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य में लिखा है:
वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये। जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमरमेश्वरी।।
अर्थात् शब्द और उसका अर्थ जिस प्रकार अभिन्न हैं वैसे ही समग्र जगत् के माता-पिता शिव-पार्वती को प्रणाम है। हिन्दी साहित्य के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है:
गिराअर्थ जलवीचिसम कहियत भिन्न न भिन्न। वन्दौं सीतारामपद जाहि परमप्रिय खिन्न।।
- श्रीरामचरितमानस
अर्थात् जिस प्रकार जल और उसकी तरंग में कोई भेद नहीं है, उसी प्रकार दुःखी जनों के लिए श्रीराम-श्रीसीता के चरणयुगल अभिन्न रूप से आराधना योग्य हैं। महाकवि बिहारीलाल ने भी अपनी ‘सतसई’ में लिखा है:
मेरी भववाधा हरो राधा नागरि सोय। जा तन की झाई पड़े श्याम हरित द्युति होय।।
- बिहारीलाल
भगवान श्रीकृष्ण श्यामवर्ण हैं और राधा अत्यंत गेधूमवर्ण के समान गोरी हैं। जब श्रीराधा की छाया श्रीकृष्ण पर और श्रीकृष्ण की छाया श्रीराधा पर पड़ती है, तब श्रीकृष्ण की आभा हरितवर्ण की हो जाती है। महाकवि बिहारीलाल का कहना है कि हे राधे! तुम्हारी आभा से भगवान के श्याम वपु की छवि जिस प्रकार हरित हो जाती है, उसी प्रकार हमारे जीवन की सभी बाधाएँ दूर हो जाएं।
अरब के मुसलमान रसखान की ब्रजभाषा में राधा-माधव के अखण्ड प्रेम को बखूबी प्रस्तुत किया गया है:
ब्रह्म मैं बुढौँ पुरानन गायन,
वेद ऋचा सुनि चौगुने चावन,
देखों दुराँ कतहूँ न कितौं,
वह कैसों स्वरूप और कैसों सुभायन।
हेरत-हेरत हारे पर्यो रस-
खान बतायो न लोग लुगायन, देखों दूर्यों वह कुञ्जकुटीर में, बैठे पलोटत राधिका पायन।।
ब्रजभाषा की माधुरी प्रसिद्ध है और कवि ने राधा-माधव के प्रेम में मग्न होकर यह पद्यबन्ध लिखा है।
राधातंत्र पुस्तक का सारांश
“राधातंत्र” पुस्तक राधा और कृष्ण के आध्यात्मिक और भौतिक स्वरूप को गहराई से विश्लेषण करती है। इसमें राधा और कृष्ण की अभिन्नता, उनके प्रेम की अद्वितीयता, और उनके विभिन्न तात्त्विक पहलुओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। पुस्तक यह भी दर्शाती है कि राधा और कृष्ण का प्रेम केवल एक सांसारिक प्रेम नहीं है, बल्कि एक दिव्य और अनंत प्रेम है।
श्रीराधा और श्रीकृष्ण का एकत्व, उनके व्यक्तित्व का अनूठापन, और उनकी उपासना की विधियों का वर्णन इस ग्रंथ में बड़े सुंदर तरीके से किया गया है। यह पुस्तक भक्तों को उनके प्रेम के वास्तविक मर्म तक पहुँचाने में सहायक है।
राधातंत्र में राधा और कृष्ण की महिमा, उनके विभिन्न लीलाओं का वर्णन, और भक्तों के लिए उपदेश शामिल हैं। यह पुस्तक सभी भक्तों के लिए एक अनमोल धरोहर है जो उन्हें राधा और कृष्ण के प्रेम के सच्चे स्वरूप से परिचित कराती है।
Leave a Comment