पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | प्रेतनी का मायाजाल / Pretani Ka Mayajal |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Rajeev Kulshreshtha |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 48 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Horror |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
बहुत कम लोग इस अज्ञात तथ्य से परिचित होंगे कि प्रथ्वी पर होने वाली सभी अकाल मृत्यु और स्वाभाविक मृत्यु के बाद लगभग तीस प्रतिशत लोग ‘प्रेतगति’ को प्राप्त होते हैं। इसमें अकाल मृत्यु वालों का दस से पन्द्रह प्रतिशत होता
है और लगभग पन्द्रह से बीस प्रतिशत ही स्वाभाविक मृत्यु से मरे लोगों का होता है। बीमारी, दुर्घटना, हत्या, टोना आदि द्वारा अकाल मृत्यु को प्राप्त हुये लोग, अभी उनकी आयु शेष रहने से, अपने सूक्ष्म शरीर में आयु का ठीका पूर्ण होने तक भटकते रहते हैं। ये साधारण और अक्सर बड़े प्रेतों से डर कर रहने वाले प्रेत होते हैं।
लेकिन खास तौर पर स्वाभाविक मृत्यु मरे लोग अज्ञानतावश उल्टे, सीधे, नीच, और अज्ञात देवी देव पूजने से प्रेतगति को प्राप्त होते हैं। क्योंकि अनजाने में वे स्वयं ही अपना संस्कार उनसे जोङ देते हैं । प्रायः ऐसे प्रेत पहले किस्म की अपेक्षा सबल होते हैं।
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इसके अतिरिक्त एक तीसरी श्रेणी उन लोगों की भी होती है, जो जानबूझ कर प्रेत, मसान, जिन्न आदि को लालच हेतु या शौकिया सिद्ध करते हैं या अन्य तरीकों से उनकी सेवा करते हैं, सम्पर्क में रहते हैं। ये भी अन्त समय प्रेतगति को ही प्राप्त होते हैं। बड़े और खतरनाक और ताकतवर प्रेत होते हैं।
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