प्रश्न उपनिषद | Prashna Upanishad Shankara Bhashya with Hindi Translation – Gita Press

प्रश्न उपनिषद PDF ( Prashna Upanishad PDF Hindi Book) के बारे में अधिक जानकारी

पुस्तक का नाम (Name of Book)प्रश्न उपनिषद / Prashna Upanishad
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Gita Press
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)4 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)131
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)Upanishad

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

प्रश्नोपनिषद् अथर्ववेदीय ब्राह्मणभागके अन्तर्गत है । इसका भाग्य आरम्भ करते हुए भगवान् भाष्यकार लिखते हैं- ‘अथर्ववेदके मन्त्रभागमें कही हुई [ मुण्डक ] उपनिषट्के अर्थका ही विस्तारसे अनुवाद करनेवाली यह ब्राह्मणोपनिषद् आरम्भ की जाती है ।’

इससे विदित होता है कि प्रश्नोपनिपद् मुण्डकोपनिषद् कहे हुए चिपकी ही पूर्ति के लिये है। मुण्डकके आरम्भमें विद्याके दो भेद परा और अपराका उल्लेख कर फिर समस्त ग्रन्थमें उन्हीं की व्याख्या की गयी है। उसमें दोनों विद्याओंका सविस्तर वर्णन है और प्रश्नमें उनकी प्राप्तिके साधनस्वरूप प्राणोपासना आदिका निरूपण है ।

इसलिये इसे उसकी पूर्ति करनेवाली कहा जाय तो उचित ही है । इस उपनिषदूके छः खण्ड हैं, जो छः प्रश्न कहे जाते हैं । ग्रन्थके आरम्भमै सुकेशा आदि छः ऋषिकुमार मुनिवर पिप्पलादके आश्रम- पर आकर उनसे कुछ पूछना चाहते हैं।

मुनि उन्हें आशा करते हैं कि अभी एक वर्ष यहाँ संयमपूर्वक रहो उसके पीछे जिसे जो-जो प्रश्न करना हो पूछना। इससे दो बातें ज्ञात होती हैं। एक तो यह कि शिष्यको कुछ दिन अच्छी तरह संयमपूर्वक गुरुसेवामें रहनेपर ही विद्याग्रहणकी योग्यता प्राप्त होती है, अकस्मात् प्रश्नोत्तर करके ही कोई यथार्थं तत्त्वको ग्रहण नहीं कर सकता तथा दूसरी बात यह है कि गुरुको भी शिष्यकी बिना पूरी तरह परीक्षा किये विद्याका उपदेश नहीं करना चाहिये, क्योंकि अनधिकारीको किया हुआ उपदेश निरर्थक ही नहीं, कई बार हानिकर भी हो जाता है। इसलिये शिष्य के अधिकारका पूरी तरह विचारकर उसकी योग्यताके अनुसार ही उपदेश करना चाहिये ।

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