भागवत पुराण हिंदी पुस्तक का विवरण (Bhagwat Puran PDF In Hindi Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | श्री भागवत पुराण | Bhagwat Puran PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | अनाम / Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 56 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 977 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | वेद-पुराण / Ved-Puran |
श्रीमद भागवत कथा परिचय (Shrimad Bhagwat Katha Hindi PDF Excerpts From the Book) :-
सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान् श्रीकृष्णको हम नमस्कार करते हैं, जो जगत्की उत्पत्ति, स्थिति और विनाशके हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक- तीनों प्रकारके तापोंका नाश करनेवाले हैं ॥ १ ॥
जिस समय श्रीशुकदेवजीका यज्ञोपवीत संस्कार भी नहीं हुआ था तथा लौकिक वैदिक कर्मोंकि अनुष्ठानका अवसर भी नहीं आया था, तभी उन्हें अकेले ही संन्यास लेनेके लिये घरसे जाते देखकर उनके पिता व्यासजी विरहसे कातर होकर पुकारने लगे- ‘बेटा! बेटा! तुम कहाँ जा रहे हो ?’ उस समय वृक्षोंने तन्मय होनेके कारण श्रीशुकदेवजीकी ओरसे उत्तर दिया था। ऐसे सर्वभूत- हृदयस्वरूप श्रीशुकदेवमुनिको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ २ ॥
एक बार भगवत्कथामृतका रसास्वादन करनेमें कुशल मुनिवर शौनकजीने नैमिषारण्य क्षेत्रमें विराजमान महामति सूतजीको नमस्कार करके उनसे पूछा । ३ ।।
शौनकजी बोले- सूतजी ! ज्ञान आपका अज्ञानान्धकारको नष्ट करनेके लिये करोड़ों सूर्यकि समान है। आप हमारे कानोंके लिये रसायन- अमृतस्वरूप सारगर्भित कथा कहिये ॥ ४ ॥ भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे प्राप्त होनेवाले महान् विवेककी वृद्धि किस प्रकार होती है तथा वैष्णवलोग किस तरह इस माया-मोहसे अपना पीछा छुड़ाते हैं ? ॥ ५ ॥ इस घोर कलिकालमें जीव प्रायः आसुरी स्वभावके हो गये हैं, विविध क्लेशोंसे आक्रान्त इन जीवोको शुद्ध (दैवीशक्तिसम्पन्न) बनानेका सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? ॥ ६॥
सूतजी ! आप हमें कोई ऐसा शाश्वत साधन बताइये, जो सबसे अधिक कल्याणकारी तथा पवित्र करनेवालोंमें भी पवित्र हो तथा जो भगवान् श्रीकृष्णकी प्राप्ति करा दे ॥ ७ ॥ चिन्तामणि केवल लौकिक सुख दे सकती है और कल्पवृक्ष अधिक-से-अधिक स्वर्गीय सम्पत्ति दे सकता है; परन्तु गुरुदेव प्रसन्न होकर भगवान्का योगिदुर्लभ नित्य वैकुण्ठ धाम दे देते हैं ॥ ८ ॥ सूतजीने कहा- शीनकजी! तुम्हारे हृदयमें भगवान्का प्रेम है; इसलिये मैं विचारकर तुम्हें सम्पूर्ण सिद्धान्तोंका निष्कर्ष सुनाता हूँ, जो जन्म-मृत्युके भयका नाश कर देता है ॥ ९ ॥ जो भक्तिके प्रवाहको बढ़ाता है। और भगवान् श्रीकृष्णकी प्रसन्नताका प्रधान कारण है, मैं तुम्हें वह साधन बतलाता हूँ; उसे सावधान होकर सुनो ॥ १० ॥ श्रीशुकदेवजीने कलियुगमें जीवोंके काल रूपी सर्पके मुखका प्रास होनेके त्रासका आत्यन्तिक नाश करनेके लिये श्रीमद्भागवतशास्त्रका प्रवचन किया है। ॥ ११ ॥ मनकी शुद्धिके लिये इससे बढ़कर कोई साधन नहीं है। जब मनुष्यके जन्म-जन्मान्तरका पुण्य उदय होता है, तभी उसे इस भागवतशास्त्र की प्राप्ति होती है। १२ ।। जब शुकदेवजी राजा परीक्षितको यह कथा सुनानेके लिये सभामें विराजमान हुए, तब देवतालोग उनके पास अमृतका कलश लेकर आये ॥ १३ ॥ देवता अपना काम बनाने में बड़े कुशल होते हैं; अतः यहाँ भी सबने शुकदेवमुनिको नमस्कार करके कहा, ‘आप यह अमृत लेकर बदलेमें हमें कथामृतका दान दीजिये ॥ १४ ॥ इस प्रकार परस्पर विनिमय (अदला-बदली) हो जानेपर राजा परीक्षित् अमृतका पान करें और हम सब श्रीमद्भागवतरूप अमृतका पान करेंगे ॥ १५ ॥ इस संसारमें कहाँ काँच और कहाँ महामूल्य मणि तथा कहाँ सुधा और कहाँ कथा ? श्रीशुकदेवजीने (यह सोचकर) उस समय देवताओंकी हँसी उड़ा दी ॥ १६ ॥ उन्हें भक्तिशून्य (कथाका अनधिकारी) जानकर कथामृतका दान नहीं किया। इस प्रकार यह श्रीमद्भागवतकी कथा देवताओंको भी दुर्लभ है ॥ १७ ॥
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