मंगलाचरण (Manglacharana PDF ) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक का नाम (Name of Book) | मंगलाचरण | Manglacharana PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | अनाम / Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 5 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 196 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | धार्मिक / Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
परम प्रियवर, परम मान्यवर, वृद्धी. महाशयां, भाइया, और बहिनी । परम पिता परमेश्वर के सुयोग्य पुत्री और पुत्रियां ईश्वर के नन्दनो और नन्दनियां ‘ शब्द सर्वथा असमर्थ हैं उम कृतज्ञता के भाव को प्रगट करने मे कि जो आप महाशयों की कृपा ने, आपकी ऐसी गुणग्राहकता, ऐसे सच्चे प्रेम और आपके ऐसे आदर और सन्मान ने र हृदय में उत्पन्न किया है। यदि मैं यह कह कि मेरे शरीर का राम राम कृतज्ञता रूप हो रहा है तो इससे किंचित मात्र भी संदेह नही होना चाहिये । विचार के कानों से आप यदि काम ले तो आप को मेरा गम राम आपके धन्यवाद के गीत गाता हुआ प्रतीत होगा। साधारण दृष्टि से देखा जाय तो मरा इस समय इस कान फरेन्स के सभापति के पद पर उपस्थित होना एक अत्यन्त आश्चर्य जनक बात है । भला कहाँ देहरादून जैसा भारतवर्ष के एक कोने में, पहाड़ की तली में, एक छोटा सा स्थान कि जहां का मैं निवासी हूँ और फिर कहां मैं वास्तव में एक बहुत ही तुच्छ मनुष्य, कि जो पूर्ण दृढ़ कारणों से निश्चय किये हुए हैं कि मुझसे अधिक मूढ़, खोटा, पापी मनुष्य कोई भी संसार भर में नही है, और जिसकी विद्या भी बहुत ही अल्प है और कहाँ मां भारतवर्ष का शिरामणि, सब से बड़ा और प्रसिद्ध नगर कलकत्ता और इस कलकत्ते की किसी छोटे माटे सभा-समाज मे नही किन्तु आल इंडिया वैश्य – कानफरेम मे मैं सभापति बनाया जाऊँ, यह आश्चर्य है । आश्चर्य है ।।
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