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Katha Sarit Sagar PDF Download
पुस्तक का नाम (Name of Book) | कथासरित्सागर की उत्कृष्ट कहानियाँ | Excellent Stories of Katha Sarit Sagar PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 15 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 116 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | कहानी / Story |
Katha Sarit Sagar Book PDF Summary
कथा सारित् सागर पुस्तक की उत्कृष्ट कथाएं
कथा-सारिता-सागर (Katha Sarita Sagar) एक हिंदी कहानी संग्रह है। यह संग्रह विभिन्न रूपक, कथा और उपन्यासों का संग्रह है जो भारतीय साहित्य की विविधता को प्रकट करता है।
इसमें विभिन्न विषयों पर कहानियाँ हैं जो जीवन के मूल्यों, नैतिकता, प्रेम, समाजिक मुद्दों और मानवीय भावनाओं को छूने का प्रयास करती हैं।यह संग्रह एक अद्वितीय रूप से विभाजित है और निम्नलिखित विषयों पर कहानियाँ शामिल हैं:
अनुक्रम
कथा संख्या | कथा का नाम |
---|---|
1 | नागार्जुन की कथा |
2 | वीरवर की कथा |
3 | तरुणचन्द्र की कथा |
4 | मानपरा की कथा |
5 | कार्याटिक की कथा |
6 | मूलदेव की कथा |
7 | मौनव्रतो की कथा |
8 | उपकोशा की कथा |
9 | विक्रर्मासह की कथा |
10 | हरिशर्मा की कथा |
11 | श्रीदत्त की कथा |
12 | शिव और माधव की कथा |
13 | पिंगलिका की कथा |
14 | गुणाढ्य की कथा |
प्राकृत का ही एक रूप पैशाची भाषा है। पुरातन काल में कभी पैशाची प्राकृत ही लोक भाषा के रूप में पश्चिमोत्तर प्रदेश खासतौर पर कश्मीर में, प्रचलित थी- भाषाशास्त्रियों की ऐसी मान्यता है। महाकवि गुणाढ्य ने इसी पैशाची प्राकृत में ‘वृहत्-कथा’ की रचना की थी।
वृहत् कथा का रचना-काल ईसा की प्रथम शताब्दी निर्धारित किया गया है। गुणाढ्य राजा सातवाहन का राज्यमंत्री था और सात-वाहन का काल प्रथम शताब्दी प्रायः सुनिश्चित है।
संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थों में प्रायः यत्र-तत्र वृहत्-कथा एवं गुणाढ्य का नामोल्लेख मिलता है। वासवदत्ता, काव्यादर्श, हर्षचरित, कादम्बरी, नल-चम्पू और कुवलयानन्द के रचनाकारों ने वृहत्-कथा की आदर से चर्चा की है।
परन्तु वह पैशाची प्राकृत वाली मूल वृहत् कथा अब कहीं भी उपलब्ध नहीं है। उसका केवल संस्कृत अनुवाद ही मिलता है।
संस्कृत में अनूदित वृहत्-कथा के तीन रूप अब तक प्राप्त हुये हैं।
- प्रथम संस्कृत रूप – आठवीं नर्व शताब्दी में नेपाली बुद्धस्वामी द्वारा रचित ‘वृहत्कथा श्लोक संग्रह’ है।
- दूसरा रूप – प्रसिद्ध कश्मीरी कवि क्षेमेन्द्र द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में लिखी गई ‘वृहत्-कथा मंजरी’ है।
- तीसरा रूप – ‘कथा सरित् सागर’, जिसकी रचना कश्मीरी कवि सोमदेव भट्ट ने की है। सोमदेव भट्ट का काल ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी है। इस संग्रह की कथाओं का संकलन सोमदेव भट्ट के ‘कथा सरित् सागर’ से ही किया गया है।
संस्कृत पद्य को ही हिन्दी गद्य में रूपान्तरित करके कुछ कथाओं का इस रूप में प्रस्तुत किया गया है। रूपान्तरण में, इसका ध्यान रखा गया है कि किसी भी पद्य का पूरा-भाव छूटने न पाये और कथा का मूल रूप ज्यों का त्यों सुरक्षित रहे।
इस कथा-संकलन का प्रधान उद्देश्य यही रहा है कि – आज का पाठक अपने प्राचीन कथा-साहित्य से परिचित हो सके। दो हज़ार वर्ष पुराने, भारतीय कथा-साहित्य में कहानी-तत्त्व कितनी यथेष्ट मात्रा में और कितने स्वाभाविक रूप में विद्यमान है – यह जान-कारी भी इस संकलन से विज्ञ पाठक को हो सकेगी।
मानव के सुख-दुख और हर्ष-विषाद, मानव की उदात्त भावनायें और गर्हित चरित्र, व्रत-निष्ठा और कुटिलता भरी धूर्तता, तरुणी नारी के रूप-लावण्य का जादू, उसकी विवेकशालिनी बुद्धि, उसकी ममता-करुणा और दृढ़ चरित्र-बल, ऊर्ध्वमुखी और अधोमुखी प्रवृत्ति, त्याग-स्वार्थ-इन सवका कितना सजीव चित्रण महाकवि गुणाढ्य ने किया है, सहृदय पाठक इन कथाओं में देख पायेंगे। आनन्द तो मिलेगा ही, प्रभावित भी होंगे।
वृहत् कथा की रचना कैसे हुई? इसकी भी एक अलग कहानी है। संकलन के अंतिम पृष्ठों में वह अद्भुत कथा पढ़िये।
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