पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | काली उपासना / Kali Upasana PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | राजेश दीक्षित / Rajesh Dixit |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 52 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 244 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | तंत्र विद्या/Tantra Vidya |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
दशमहाविद्याओं में काली’ सर्वप्रधान हैं । इन्हें ‘आद्या’ अथवा ‘महाविद्या, भी कहा जाता है । श्मशान काली, भद्रकाली, सिद्धिकाली, कामकलाकाली, हंस काली, गुह्यकाली आदि इन्हीं भगवती के भेद हैं। इनमें ‘दक्षिणा काली’ का स्थान मुख्य है । दक्षिण दिशा में रहने वाला ‘यम’ भगवती ‘काली’ का नाम सुनते ही भाग जाता है तथा काली-उपासकों को नरक में ले जाने की सामर्थ्य उसमें नहीं है, इसीलिए भगवती को ‘दक्षिण कालिका’ अथवा ‘दक्षिणा काली’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है ।
● मार्कण्डेय पुराण की सप्तशती में जिन महाकाली का वर्णन है और जिनका जन्म भगवती अम्बिका के ललाट से हुआ है, वे काली अथवा महाकाली देवी दुर्गा की त्रिमूर्तियों में से एक हैं तथा श्राद्या महाविद्या काली से सर्वथा भिन्न हैं। पौराणिक काली तमोगुण की स्वामिनी हैं, जब कि भगवती दक्षिणा काली जगद्धात्री आदि शक्ति स्वरूपा हैं । काली- उपासकों को यह अन्तर ध्यान में रखना चाहिए ।
● विभिन्न ग्रंथों में भगवती दक्षिण कालिका की उपासना की अनेक विधियों का वर्णन किया गया है । उनमें पशु भाव तथा वीर भाव की उपासना विघियां मुख्य हैं । वीरभाव की उपासना गृहस्थों के लिए न तो उचित है और न सुसाध्य ही । सिद्ध गुरु के उचित मार्ग-दर्शन के अभाव में उनका प्रयोग साधक के लिए अहितकर भी सिद्ध होता है । अस्तु, उन विधियों का सम्यक् ज्ञान किसी योग्य गुरु से ही प्राप्त करना चाहिए।
गृहस्थों के लिए भगवती की जो उपासना-विधि शास्त्र, सम्मत, सरल तथा हानि रहित है, इस पुस्तक में मुख्य रूप से उसी का वर्णन किया गया है । वाममार्ग के प्राचीन ग्रंथ ‘काली तन्त्र’ तथा अन्य विधियों को प्रस्तुत पुस्तक में केवल इसी दृष्टि से सङ्कलित किया गया है, ताकि जिज्ञासुत्रों को काली – उपासना विषयक सभी विधियों का शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त हो सके ।
काली और उनके भेद
‘काली’ का शब्दार्थ है – ‘कालः’ अर्थात् ‘शिवः तस्य पत्नी काली ।’ अर्थात् ‘कालो शिव को पत्नी का नाम है। ये भगवती आदि अन्त रहित – अजन्मा और सम्पूर्ण जगत् को स्वामिनो हैं । ये काल को उत्पन्न करने वाली तथा ग्ररूपा हैं । साकार- उपासकों की सुविधा के हेतु तन्त्र आदि शास्त्रों में इन्हीं निराकारा भगवती के गुण और क्रिया रूप ध्यान तथा स्वरूप आदि का वर्णन किया गया है ।
‘मार्कण्डेय पुराण’ के सप्तशती खण्ड में वर्णित अम्बिका के ललाट से उत्पन्न पौराणिक कालो इन याद्या काली में भिन्न हैं । वे दुर्गा की त्रिमूर्तियों में से एक हैं और उनका ध्यान भी इनमे सर्वथा पृथक् है ।
तन्त्र शास्त्रों में ग्राद्या भगवती के दस मुन्य भेद कहे गये हैं कालिका च महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी । भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा ॥ बगला सिद्ध विद्या च मातङ्गी कमलात्मिका । एता दश महाविद्याः सर्वतन्त्रेषु गोपिताः ॥
श्रर्थात् – (१) कालो, (२) महाविद्या (तारा), (३) षाडशी, (४) भुवनेश्वरो, (५) भैरवी, (६), छिन्नमस्ता, (७) धूमावती, (८) बगला, (2) मातङ्गी और (१०) कमलात्मिका – ये दस महाविद्याएं हैं। इनमें भगवती काली मुख्य हैं। काली के अनन्त तथा असंख्य भेद हैं । परन्तु ग्राठ भेद मुख्य माने जाते हैं जो इस प्रकार हैं
(१) चिन्तामणि काली, (२) स्पर्शमणि काली, (३) सन्तति
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