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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | श्रीकालभैरवाष्टकम् | Kalabhairava Ashtakam PDF in Hindi |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | अनाम / Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 5 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | तंत्र विद्या/Tantra Vidya |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
Kalabhairava Ashtakam in Hindi PDF Summary
“श्रीकालभैरवाष्टकम्” एक प्रमुख संस्कृत श्लोक संग्रह है जो कालभैरव, एक अवतार शिव की महाकाली स्वरूप, को समर्पित है। यह श्लोक अष्टकम, अर्थात आठ श्लोकों का समृद्धि से भरा हुआ है, जो कालभैरव की महत्वपूर्ण गुण, रूप, और महत्त्व को प्रकट करते हैं।
इस अष्टकम में प्रमुख विषयों में से कुछ हैं:
- भैरव का परिचय: श्लोक आरंभ होता है जिसमें कालभैरव का परिचय किया जाता है। यह वर्णन शिव के एक अवतार के रूप, स्वरूप, और अनुष्ठान को स्पष्ट करता है।
- भैरव के गुण: अष्टकम में कालभैरव के विभिन्न गुणों का वर्णन है, जैसे कि अद्वैता, निर्गुणता, और अनन्तता।
- भैरव की आराधना: श्लोकों में कालभैरव की उपासना और भक्ति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। भक्ति के माध्यम से शिव के इस रूप की महिमा का गान किया जाता है।
- फलश्रुति: अष्टकम के अंत में श्लोकों का फलश्रुति है, जो भक्तों को शिव के इस रूप की कृपा और आशीर्वाद का वाद करती है।
“श्रीकालभैरवाष्टकम्” का पाठ और उसकी समझ महत्वपूर्ण हैं जब भक्त इस दिव्य अष्टकम के माध्यम से कालभैरव की आराधना करते हैं और उनके जीवन में भैरव की कृपा को बुलाते हैं।
ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥
भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम ॥९॥
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