ज्ञानयोग – स्वामी विवेकानंद (Gyanyog – Swami Vivekananda) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक का नाम (Name of Book) | ज्ञानयोग / Gyanyog |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Swami Vivekanand |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 10 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 332 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Adhyatm |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
श्री स्वामी विवेकानन्द द्वारा वेदान्त पर दिए गये भाषणो का संग्रह ” ज्ञानयोग “ है । इन व्याख्यानों में श्री स्वामीजी ने वेदान्त के गूढ़ तत्वों की ऐसे सरल, स्पष्ट तथा सुन्दर रूप से विवेचना की है। कि आजकल के शिक्षित जनसमुदाय को ये खूब जँच जाते है । उन्होने यह दर्शाया है कि वैयक्तिक तथा सामुदायिक जीवन – गठन वेदान्त किस प्रकार सहायक होता है।
मनुष्य के विचारों का उच्च- तम स्तर वेदान्त है और इसी की ओर संसार की समस्त विचार- धाराऍ शनैः शनै. प्रवाहित हो रही है । अन्त मे वे सब वेदान्त में ही लीन होंगी । स्वामीजी ने यह भी दर्शाया है कि मनुष्य के देवी स्वरूप पर वेदान्त कितना ज़ोर देता है
राजयोग PDF
कर्मयोग PDF
प्रेमयोग PDF
भक्ति योग PDF
माया शब्द प्रायः आप सभी ने सुना होगा । इसका व्यवहार साधारणतः कल्पना, कुहक अथवा इसी प्रकार के किसी अर्थ में किया जाता है, किन्तु यह इसका वास्तविक अर्थ नहीं है। मायावद रूप एक स्तम्भ पर वेदान्त की स्थापना हुई है, अतः उसका ठीक ठीक अर्थ समझ लेना आवश्यक है। मै तुमसे तनिक धैर्य की अपेक्षा रखता हूँ, क्योंकि मुझे बड़ा भय है कि कहीं तुम उसे ( माया के सिद्धान्त को ) ग़लत न समझ लो ।
वैदिक साहित्य में कुहक अर्थ में ही माया शब्द का प्रयोग देखा जाता है । यही माया शब्द का सबसे प्राचीन अर्थ है । किन्तु उस समय वास्तविक मायावाद – तत्त्व का उदय नहीं हुआ था । हम वेद में इस प्रकार का वाक्य देखते हैं- “ इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते,” अर्थात् इन्द्र ने माया द्वारा नाना रूप धारण किये । यहाँ पर माया शब्द इन्द्रजाल अथवा उसी के समान अर्थ में व्यवहृत हुआ है ।
चढों के अनेक स्थलों में माया शब्द इसी अर्थ में व्यवहृत हुआ देखा जाता है । इसके बाद कुछ काल तक माया शब्द का व्यवहार एकदम लुप्त हो गया । किन्तु इसी बीच तत्प्रतिपाद्य जो अर्थ या भाव था वह क्रमशः परिपुष्ट हो रहा था
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