गर्भ गीता PDF (Garbh Geeta Hindi PDF) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक का नाम (Name of Book) | गर्भ गीता / Garbh Geeta |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 43 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 8 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
श्री कृष्ण भगवान् जी का वचन है कि जो प्राणी इस गर्भ गीता का सद्भावना से विचार मनन करता है वह पुरुष फिर गर्भवास में नहीं आता है।
अर्जुनोवाच- हे कृष्ण भगवान्! यह प्राणी जो गर्भवास में आता है। वह किस दोष के कारण आता है ? हे प्रभु जी! जब यह जन्मता है, तब इसको जरा आदि रोग लगते हैं। फिर मृत्यु होती है। हे स्वामी! वह
कौन-सा कर्म है जिसके करने से प्राणी जन्म मरण से रहित हो जाता है ?
श्री भगवानोवाच- हे अर्जुन! यह मनुष्य जो है सो अन्धा व मूर्ख है जो संसार के साथ प्रीति करता है। यह पदार्थ मैंने पाया है और वह मैं पाऊँगा, ऐसी चिन्ता इस प्राणी के मन से उतरती नहीं। आठ पहर माया को ही मांगता है। इन बातों को करके बार-बार जन्मता मरता है। वह गर्भ विषे दुःख पाता रहता है। और
अर्जुनोवाच- हे श्री कृष्ण भगवान्! यह मन मद
मस्त हाथी की भाँति है, तृष्णा इसकी शक्ति है। यह मन तो पाँच इन्द्रियों के वश में है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार इन पाँचों में अहंकार बहुत बली है। सो कौन यत्न है जिससे मन वश में हो जाए ?
श्री भगवानोवाच- हे अर्जुन! यह मन निश्चय ही हाथी की भाँति है। तृष्णा इसकी शक्ति है। मन पाँच इन्द्रियों के वश में है। अहंकार इनमें श्रेष्ठ है। हे अर्जुन! जैसे हाथी अंकुश (कुण्डा) के वश में होता है। वैसे ही मनरूपी हाथी को वश में करने के लिए ज्ञान रूपी अंकुश
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