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Durga Kavach PDF

श्री दुर्गा कवच हिंदी pdf | Durga Kavach PDF

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Category: धार्मिक / Religious

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श्री दुर्गा कवच हिंदी pdf – Durga Kavach PDF Download

पुस्तक का नाम (Name of Book)श्री दुर्गा कवच / Durga Kavach PDF
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Anonymous
पुस्तक की भाषा (Language of Book)Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)3 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)22
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)धार्मिक / Religious

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

दुर्गा कवच पीडीएफ एक पुस्तक है जिसमें देवी दुर्गा का शक्तिशाली मंत्र है, जो भक्तों को सुरक्षा और आशीर्वाद देता है। इस पुस्तक में दुर्गा कवच का उद्भव, अर्थ और लाभ बताया गया है, और संस्कृत और हिंदी में गीत के बोल भी दिए गए हैं।

दुर्गा कवच मार्कण्डेय पुराण का एक भाग है, जिसमें ब्रह्मा और मार्कण्डेय के बीच की बातचीत है। ब्रह्मा ने मार्कण्डेय को एक ऐसा गुप्त मंत्र बताया, जिसमें दुर्गा की नौ शक्तियों का वर्णन है, जो सभी प्राणियों का हित करती हैं। ये नौ शक्तियां हैं:

  • शैलपुत्री, जो पर्वत की बेटी हैं, बैल पर सवार होती हैं, और त्रिशूल और कमल धारण करती हैं।
  • ब्रह्मचारिणी, जो ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं, नंगे पैर चलती हैं, और माला और कलश धारण करती हैं।
  • चंद्रघंटा, जो अपने माथे पर चंद्रमा का घंटा लगाती हैं, बाघ पर सवार होती हैं, और घंटी, धनुष, बाण, तलवार, और ढाल धारण करती हैं।
  • कुष्माण्डा, जो अपनी हँसी से ब्रह्माण्ड को रचती हैं, सिंह पर सवार होती हैं, और आठ हाथों में विभिन्न शस्त्र धारण करती हैं।
  • स्कंदमाता, जो कार्तिकेय की माता हैं, हंस पर सवार होती हैं, और चार हाथों में कमल, शंख, चक्र, और बालक धारण करती हैं।
  • कात्यायनी, जो कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रकट हुई हैं, व्याघ्र पर सवार होती हैं, और तलवार, शक्ति, धनुष, बाण, लोटा, और आभूषण धारण करती हैं।
  • कालरात्रि, जो काल की रात्रि की रूप में जानी जाती हैं, गधा पर सवार होती हैं, और त्रिशूल, घंटी, दमरु, और खड़ग धारण करती हैं।
  • महागौरी, जो अत्यंत गोरी और सुंदर हैं, वृषभ पर सवार होती हैं, और त्रिशूल, घंटी, डमरू, और कमल धारण करती हैं।
  • सिद्धिदात्री, जो सभी प्रकार की सिद्धियां देती हैं, कमल पर बैठती हैं, और शंख, चक्र, गदा, और पद्म धारण करती हैं।

इस पुस्तक में दुर्गा कवच का पाठ करने की विधि भी बताई गयी है, जिससे भक्तों को दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। दुर्गा कवच का पाठ करने से भक्तों को शरीर, मन, धन, और आत्मा की रक्षा मिलती है, और सभी प्रकार के भय, दुःख, शत्रु, रोग, और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

दुर्गा कवच पीडीएफ को आप नीचे दिए गए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं। इस पुस्तक का लेखक मुनि श्री दुर्गानंद जी हैं, जो एक प्रसिद्ध धार्मिक और साहित्यिक विद्वान हैं। उन्होंने इस पुस्तक को दुर्गा के भक्तों के लिए लिखा है, जो दुर्गा के बारे में जानना और उनकी आराधना करना चाहते हैं।

श्री दुर्गा कवच (हिन्दी में) (Durga Kavach in Hindi)

“ऋषि मार्कंड्य ने पूछा जभी !
दया करके ब्रह्माजी बोले तभी !!

के जो गुप्त मंत्र है संसार में !
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में !!

हर इक का कर सकता जो उपकार है !
जिसे जपने से बेडा ही पार है !!

पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का !
जो हर काम पूरे करे सवाल का !!

सुनो मार्कंड्य मैं समझाता हूँ !
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ !!

कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना !
जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता !!”

“नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये !
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये !!

कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!

पहली शैलपुत्री कहलावे !
दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे !!

तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम !
चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम !!

पांचवी देवी अस्कंद माता !
छटी कात्यायनी विख्याता !!

सातवी कालरात्रि महामाया !
आठवी महागौरी जग जाया !!

नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने !
नव दुर्गा के नाम बखाने !!”

“महासंकट में बन में रण में !
रुप होई उपजे निज तन में !!

महाविपत्ति में व्योवहार में !
मान चाहे जो राज दरबार में !!

शक्ति कवच को सुने सुनाये !
मन कामना सिद्धी नर पाए !!

चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार !
बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार !!

कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!

हंस सवारी वारही की !
मोर चढी दुर्गा कुमारी !!

लक्ष्मी देवी कमल असीना !
ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा !!”

“ईश्वरी सदा बैल सवारी !
भक्तन की करती रखवारी !!

शंख चक्र शक्ति त्रिशुला !
हल मूसल कर कमल के फूला !!

दैत्य नाश करने के कारन !
रुप अनेक किन्हें धारण !!

बार बार मैं सीस नवाऊं !
जगदम्बे के गुण को गाऊँ !!

कष्ट निवारण बलशाली माँ !
दुष्ट संहारण महाकाली माँ !!

कोटी कोटी माता प्रणाम !
पूरण की जो मेरे काम !!

दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ !
चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ !!”

कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!

अग्नि से अग्नि देवता !
पूरब दिशा में पेंदरी !!

दक्षिण में वाराही मेरी !
नैविधी में खडग धारिणी !!

वायु से माँ मृग वाहिनी !
पश्चिम में देवी वारुणी !!

उत्तर में माँ कौमारी जी!
ईशान में शूल धारिणी !!

ब्रहामानी माता अर्श पर !
माँ वैष्णवी इस फर्श पर !!

चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो !
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!”

“सन्मुख मेरे देवी जया !
पाछे हो माता विजैया !!

अजीता खड़ी बाएं मेरे !
अपराजिता दायें मेरे !!

नवज्योतिनी माँ शिवांगी !
माँ उमा देवी सिर की ही !!

मालाधारी ललाट की, और भुकुटी कि यशर्वथिनी !!

भुकुटी के मध्य त्रेनेत्रायम्घं टा दोनो नासिका !!

काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी !!

नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो !!

संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!

ऊपर वाणी के होठों की !
माँ चन्द्रकी अमृत करी !!

जीभा की माता सरस्वती !
दांतों की कुमारी सती !!”

“इस कठ की माँ चंदिका !
और चित्रघंटा घंटी की !!

कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की !
माँ मंगला इस बनी की !!

ग्रीवा की भद्रकाली माँ !
रक्षा करे बलशाली माँ !!

दोनो भुजाओं की मेरे,
रक्षा करे धनु धारनी !!

दो हाथों के सब अंगों की,
रक्षा करे जग तारनी !!

शुलेश्वरी, कुलेश्वरी,
महादेवी शोक विनाशानी !!

जंघा स्तनों और कन्धों की,
रक्षा करे जग वासिनी !!

हृदय उदार और नाभि की,
कटी भाग के सब अंग की !!

गुम्हेश्वरी माँ पूतना,
जग जननी श्यामा रंग की !!

घुटनों जन्घाओं की करे,
रक्षा वो विंध्यवासिनी !!

टकखनों व पावों की करे,
रक्षा वो शिव की दासनी !!”

“रक्त मांस और हड्डियों से,जो बना शरीर !
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर !!

बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान !
सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान !!

धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन !
तेरी कृपा से ही माँ,चमन का है कल्याण !!

आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार !
ब्रह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार !!

विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल !
दुष्टों से रक्षा करो,हाथ लिए त्रिशूल !!

भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश !
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश !!

यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये !
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए !!”

“है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान !
लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान !!

मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए !
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर मे आये !!

ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड्य ! यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया !!

रहा आज तक था गुप्त भेद सारा ! जगत की भलाई को मैंने बताया !!

सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित ! है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया !!

चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो ! सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया !!

जो संसार में अपने मंगल को चाहे !
तो हरदम कवच यही गाता चला जा !!”

“बियाबान जंगल दिशाओं दशों में !
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा !!

तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में !
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा !!

निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे !
चमन पाव आगे बढ़ता चला जा !!

तेरा मान धन धान्य इससे बढ़ेगा !
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए !!

यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा !
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें !!

यही भूत और प्रेत के भय का नाशक !
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये !!

इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर !
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए !!”

“इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे !
कृपा से आधी भवानी की, बल और बुद्धि बढे !!

श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम !
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम !!

कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ !
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण !!

!! जय माता दी !!”

दुर्गा कवच संस्कृत (Durga Kavach Sanskrit)

अथ देव्याः कवचम्

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।

ॐ नमश्चण्डिकायै ।।

मार्कण्डेय उवाच ॐ

यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।

यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥

ब्रह्मोवाच

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।

देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ॥ २ ॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।

तृतीयं चन्द्रघण्डेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥ ३ ॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ॥ ४ ॥

ॐ चण्डिका देवीको नमस्कार है।

मार्कण्डेयजीने कहा- पितामह ! जो इस संसारमें परम गोपनीय तथा मनुष्योंकी सब प्रकारसे रक्षा करनेवाला है और जो अबतक आपने दूसरे किसीके सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये ॥ १ ॥ ब्रह्माजी बोले – ब्रह्मन् ! ऐसा साधन तो एक देवीका कवच ही है, जो गोपनीयसे भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका उपकार करनेवाला है। महामुने! उसे श्रवण करो ॥ २ ॥ देवीकी नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें ‘नवदुर्गा’ कहते हैं। उनके पृथक् पृथक् नाम बतलाये जाते हैं। प्रथम नाम शैलपुत्री।

“नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।। ५ ।।

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे ।

विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ॥ ६ ॥

है। दूसरी मूर्तिका नाम ब्रह्मचारिणी है। तीसरा स्वरूप चन्द्रघण्टा के नामसे प्रसिद्ध है। चौथी मूर्तिको कूष्माण्डारे कहते हैं। पाँचवीं दुर्गाका नाम स्कन्दमाता है। देवीके छठे रूपको कात्यायनी कहते हैं। सातवाँ कालरात्रि ६ और आठवाँ स्वरूप महागौरी के नामसे प्रसिद्ध है।

नवीं दुर्गाका नाम सिद्धिदात्री है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान्के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं॥ ३-५॥ जो मनुष्य अग्निमें जल रहा हो, रणभूमिमें शत्रुओंसे घिर गया हो, विषम संकटमें फँस गया हो तथा इस प्रकार भयसे आतुर होकर जो भगवती दुर्गाकी शरणमें प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता।

युद्धके समय संकटमें पड़नेपर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं तथापि हिमालयकी तपस्या और प्रार्थनासे प्रसन्न हो कृपापूर्वक उनकी पुत्रीके रूपमें प्रकट हुईं। यह बात पुराणोंमें प्रसिद्ध है। १. ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी – सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूपकी प्राप्ति कराना जिनका स्वभाव हो, वे ‘ब्रह्मचारिणी’ हैं।

२. चन्द्रः घण्टायां यस्याः सा- आह्लादकारी चन्द्रमा जिनकी घण्टामें स्थित हों, उन देवीका नाम ‘चन्द्रघण्टा’ है। ३. कुत्सितः ऊष्मा कूष्मा – त्रिविधतापयुतः संसारः, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्याः सा कूष्माण्डा। अर्थात् त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदरमें स्थित हैं, वे भगवती ‘कूष्माण्डा’ कहलाती हैं। ४. छान्दोग्यश्रुतिके अनुसार भगवतीकी शक्तिसे उत्पन्न हुए सनत्कुमारका नाम स्कन्द है । उनकी माता होनेसे वे ‘स्कन्दमाता’ कहलाती हैं ।

५. देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये देवी महर्षि कात्यायनके आश्रमपर प्रकट हुईं और महर्षिने उन्हें अपनी कन्या माना; इसलिये ‘कात्यायनी’ नामसे उनकी प्रसिद्धि हुई । ६. सबको मारनेवाले कालकी भी रात्रि (विनाशिका) होनेसे उनका नाम ‘कालरात्रि’ है । ७. इन्होंने तपस्याद्वारा महान् गौरवर्ण प्राप्त किया था, अतः ये महागौरी कहलायीं। ८. सिद्धि अर्थात् मोक्षको देनेवाली होनेसे उनका नाम ‘सिद्धिदात्री’ है।”

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