देशभक्ति की कविताएं ( Desh Bhakti Poetry in Hindi ) के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का नाम (Name of Book) | देश भाक्ति की कविताए / Desh Bhakti Ki Kavitayan |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Narendra Sinha |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 2 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 310 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Poetry |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
हिन्दी काव्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वरूप घोर विकास को नापने जोखने के लिए हमें भठारहवी शताब्दी के उत्तराद्ध में प्रारभ भारतीय धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिष नव जागरण के उस युग की धार लौटना होगा जिसका अप्र दूत होने का श्रेय राजा राममोहन राय को प्राप्त है ।
राजा राममोहन राय से प्रारभ इस राष्ट्रीय पुनर्जागरण में केशवचंद्र सेन, रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानन्द, लोकमान्य तिलन, स्वामी दयानन्द सरस्वती, एनी बेसेंट, सी०एफ० एण्ड्रज आदि अनेक महापुरुयों ने अपने-अपने ढंग से सहयोग देकर जागति वा भैरव शख पूवा। लेकिन इन सभी महानुभावो में, हिंदी की दृष्टि से, स्वामी दयानन्द की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
स्वामी जी ने 1875 में बम्बई में श्रायसमाज की स्थापना करके पूरे देश विशेषत उत्तर भारत में सामाजिक तथा राजनीतिक जागृति की लहर दौड़ा दी। उनका जन्म यद्यपि गुजरात मे हुआ था, तथापि उन्होने राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदी की महत्ता को स्वीकार वर इस भाषा को ही अपने धर्म प्रचार का माध्यम बनाया। वैसे, इससे भी पूर्व सन् 1857 की प्राति के समय हिन्दी भाषा ही जाति की उद्घोषिका बनी थी, किन्तु आगे चलकर दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रदर्शित भाग पर चलकर हमारे देश के तत्कालीन साहित्यकारो और सुधारना ने हिंदी को ही अपनी भाव- रा में प्रवीकरण वा माध्यम बनाया ।
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