पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | ब्रह्माण्ड पुराण | Brahmanda Purana PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Gita Press / गीता प्रेस |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 47 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 416 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | वेद-पुराण / Ved-Puran |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
पुराणों में यही अन्तिम पुराण है। उच्च कोटि के पुराण में इसे महत्व पूर्ण स्थान प्राप्त है। इसकी प्रशंसा में पुराणकार यहाँ तक चले गये कि में उन्होंने इसे वेद के समान घोषित किया। इसका अभिप्राय यह हुआ कि पाठक जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वेद का अध्ययन करता है, उस तरह को विषय सामग्री उसे यहाँ भी प्राप्त हो जाती है और वह जीवन को चतु मुखी बना सकता है ।
इस पुराण के पठन-पाठन, मनन-चिन्तन और अध्ययन की परम्परा भी प्रशंसनीय है । गुरु ने अपने शिष्यों में से इसका ज्ञान अपने योग्यतम शिष्य को उसका पात्र समझ कर दिया ताकि इसकी परम्परा अवाध गति से निरन्तर चलती रहे। भगवान प्रजापति ने वसिष्ठ मुनि को, भगवान वसिष्ठ ऋषि ने परम पुण्यमय अमृत के अदृश इस तत्व ज्ञान को शक्ति के पुत्र अपने पौत्र पाराशर को दिया। प्राचीन काल में भगवान पाराशर ने इस परम दिव्य ज्ञान को जातुकूर्ण्य ऋषि को, जातुकूर्ण्य ऋषि परम संयमी द्व ैपायन को पढ़ाया । द्वपायन ऋषि ने श्रुति के समान इस अद्भुत पुराण को अपने पाँच शिष्यों जैमिनि, सुमन्तु, वैशम्पायन पेलव और लोमहर्षण को पढ़ायां । सूत परम विनम्र, धार्मिक और पवित्र थे । अतः उनको यह अद्भुत वृतान्त वाला पुराण पढ़ाया था। ऐसी मान्यता है कि सूतजी ने इस पुराण का श्रवण भगवान व्यास देव जी से किया था। इन परम ज्ञानी सूत जी ने ही नैमिषारण्य में महात्मा मुनियों को इस पुराण का प्रवचन किया था। वही ज्ञान आज हमारे सामने है।
पुराण का लक्षण है–सर्ग अर्थात् सृष्टि और प्रति सर्ग अर्थात् उस सृष्टि से होने वाली सृष्टि, वंशों का वर्णन, मन्वन्तर अर्थात् मनुओं का कथन। इसका तात्पर्य यह है कि कौन-कौन मनु किस-किस के पश्चात् हुए ! वंशों में होने वालों का चरित यह ही पांचों बातों का होना पुराण का लक्षण है। यह सभी लक्षण इस पुराण में उपस्थित हैं। इसके चार पाद हैं प्रक्रिया, अनुषंग, उत्पोद्धात और उपसंहार। इन्हीं के द्वारा सम्पूर्ण वर्णन हुआ है।
इस पुराण के नामकरण का रहस्य है कि इसमें समस्त ब्रह्मांड का वर्णन है । भुवन कोष का उल्लेख तो सभी पुराणों में मिलता है परन्तु प्रस्तुत पुराण में सारे विश्व का सांगोपांग वर्णन उपलब्ध होता है। इसमें विश्व के भूगोल का विस्तृत व रोचक विवेचन है। इसमें ऐसी-ऐसी जान •कारी मिलती है जिसे देखकर आश्चर्य होता है कि बिना वैज्ञानिक सहयोग के इतनी गहन खोज कैसे की होगी। वैज्ञानिक युग मैं अभी तक उसकी पुष्टि भी नहीं हो पायी है।
पुराण में स्वायम्भुव मनु के सर्ग व भारत आदि सब वर्षों की समस्त नदियों का वर्णन है। फिर सहस्रों द्वीपों के भेदों का सात द्वीपों में ही अन्त र्भाव हैं, जम्बूद्वीप और समुद्र के मण्डल का विस्तार से वर्णन है। पर्वतों का योजना-बद्ध उल्लेख है । जम्बूद्वीप आदि सात समुद्रों के द्वारा घिरे हुए हैं। के • सप्तद्वीप का प्रमाण सहित वर्णन है। सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी को पूर्ण परि णाम बताया गया है। सूर्य की गति का भी उल्लेख है। ग्रहों की गति और परिमाण भी कहे गये हैं। इस तरह से विश्व के भूगोल का महत्व पूर्ण उल्लेख है।
वेद के सम्बन्ध में भी यह जानकारी उल्लेखनीय है कि विभु बुद्धि मान गीर्ण स्कन्ध ने सन्तान के हेतु से एक वेद के चार पाद किये थे और ईश्वर ने चार प्रकार से किया था। भगवान शिव के अनुग्रह से व्यास देव ने उसी भाँति भेद किया था उस वेद की शिष्यों और प्रशिष्यों ने वेद की अयुत शाखाए की थी।
इस पुराण के विषय में एक विशेष बात यह है कि ईसवी सन् ५ की शताब्दी में इस पुराण को ब्राह्मण लोग जावा द्वीप ले गये थे। वहाँ की प्राचीन “कवि भाषा” में अनुवाद हुआ जो आज भी मिलता है। इससे इस पुराण की प्राचीनता का भी बोध होता है।
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