ब्रह्म पुराण पीडीएफ मुफ्त डाउनलोड | Brahma Puran PDF Free Download

पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-

पुस्तक का नाम (Name of Book)ब्रह्मा-पुराण / Brahma Puran PDF
पुस्तक का लेखक (Name of Author)Gita Press / गीता प्रेस
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)35 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)423
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)वेद-पुराण / Ved-Puran

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

ब्रह्म पुराण (संस्कृत: ब्रह्म पुराण, ब्रह्म पुराण) संस्कृत भाषा में हिंदू ग्रंथों की अठारह प्रमुख पुराण शैली में से एक है। यह सभी संकलनों में पहले महा-पुराण के रूप में सूचीबद्ध है, और इसलिए इसे आदि पुराण भी कहा जाता है। इस पाठ का एक अन्य शीर्षक सौर पुराण है, क्योंकि इसमें सूर्य या सूर्य देवता से संबंधित कई अध्याय शामिल हैं। ब्रह्म पुराण वास्तव में भौगोलिक महात्म्य (यात्रा गाइड) और विविध विषयों पर अनुभागों का संकलन है ब्रह्म पुराण हिंदू धर्म के 18 पुराणों में से एक प्रमुख पुराण है। इसे पुराणों में महापुराण भी कहा जाता है।

पुराणों की दी गयी सूची में इस पुराण को प्रथम स्थान पर रखा जाता है। कुछ लोग इसे पहला पुराण भी मानते हैं। इसमें विस्तार से सृष्टि जन्म, जल की उत्पत्ति, ब्रह्म का आविर्भाव तथा देव-दानव जन्मों के विषय में बताया गया है। इसमें सूर्य और चन्द्र वंशों के विषय में भी वर्णन किया गया है। इसमें ययाति या पुरु के वंश–वर्णन से मानव-विकास के विषय में बताकर राम-कृष्ण-कथा भी वर्णित है। इसमें राम और कृष्ण के कथा के माध्यम से अवतार के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए अवतारवाद की प्रतिष्ठा की गई है।

पूर्वकालकी बात है, परम पुण्यमय पवित्र नैमिषारण्यक्षेत्र बड़ा मनोहर जान पड़ता था। वहाँ बहुत से मुनि एकत्रित हुए थे, भाँति भाँतिके पुष्प उस स्थानकी शोभा बढ़ा रहे थे। पीपल, पारिजात, चन्दन, अगर, गुलाब तथा चम्पा आदि अन्य बहुत से वृक्ष उसकी शोभा वृद्धिमें सहायक हो रहे थे। भाँति-भाँतिके पक्षी, नाना प्रकारके मृगोंका झुंड, अनेक पवित्र जलाशय तथा बहुत-सी बावलियाँ उस वनको विभूषित कर रही थीं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा अन्य जातिके लोग भी वहाँ उपस्थित थे। ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी सभी जुटे हुए थे।

झुंड की झुंड गौएँ उस वनकी शोभा बढ़ा रही थीं। नैमिषारण्यवासी | मुनियोंका द्वादशवार्षिक (बारह वर्षोंतक चालू रहनेवाला) यज्ञ आरम्भ था जौ, गेहूँ, चना, उड़द, मूंग और तिल आदि पवित्र अन्नोंसे यज्ञमण्डप सुशोभित था। वहाँ होमकुण्डमें |

अग्निदेव प्रज्वलित थे और आहुतियाँ डाली जा रही थीं। उस महायज्ञमें सम्मिलित होनेके लिये बहुत से मुनि और ब्राह्मण अन्य स्थानों से आये। स्थानीय महर्षियोंने उन सबका यथायोग्य सत्कार किया ऋत्विजोंसहित वे सब लोग जब आरामसे बैठ गये, तब परम बुद्धिमान् लोमहर्षण सूतजी वहाँ पधारे।

उन्हें देखकर मुनिवरोंको बड़ी प्रसन्नता हुई, उन सबने । उनका यथावत् सत्कार किया। सूतजी भी उनके प्रति आदरका भाव प्रकट करके एक श्रेष्ठ आसनपर विराजमान हुए। उस समय सब ब्राह्मण सूतजीके साथ वार्तालाप करने लगे। | बातचीतके अन्तमें सबने व्यास- शिष्य लोमहर्षणजीसे | अपना संदेह पूछा।

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