सम्पूर्ण भविष्य पुराण ( Bhavishya Purana Hindi PDF)
पुस्तक का नाम (Name of Book) | भविष्य पुराण / Bhavishya Puran PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | गीता प्रेस / Geeta Press |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 24 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 448 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | वेद-पुराण / Ved-Puran |
भविष्य पुराण पुस्तक के बारे में (About Bhavishya Purana Book) :-
भारतीय वाङ्मयमें पुराणोंका एक विशिष्ट स्थान है। इनमें वेदके निगूढ़ अर्थोका स्पष्टीकरण तो है ही, कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड तथा ज्ञानकाण्डके सरलतम विस्तारके साथ-साथ कथावैचित्र्यके द्वारा साधारण जनताको भी गूढ़-से-गूढ़तम तत्त्वको हृदयङ्गम करा देनेकी अपनी अपूर्व विशेषता भी । इस युगमें धर्मकी रक्षा और भक्तिके मनोरम विकासका जो यत्किंचित् दर्शन हो रहा है, उसका समस्त श्रेय पुराण- साहित्यको ही है। वस्तुतः भारतीय संस्कृति और साधनाके क्षेत्रमें कर्म, ज्ञान और भक्तिका मूल स्रोत वेद या श्रुतिको ही माना गया है। वेद अपौरुषेय, नित्य और स्वयं भगवान्की शब्दमयी मूर्ति हैं। स्वरूपतः वे भगवान् के साथ अभिन्न हैं, परंतु अर्थकी दृष्टिसे वेद अत्यन्त दुरूह भी हैं। जिनका ग्रहण तपस्याके बिना नहीं किया जा सका। व्यास, वाल्मीकि आदि ऋषि तपस्याद्वारा ईश्वरकृपासे ही वेदका प्रकृत अर्थ जान पाये थे। उन्होंने यह भी जाना था कि जगत्के कल्याणके लिये वेदके निगूढ़ अर्थका प्रचार करनेकी आवश्यकता है। इसलिये उन्होंने उसी अर्थको सरल भाषा में पुराण, रामायण और महाभारतके द्वारा प्रकट किया। इसीसे शास्त्रोंमें कहा है कि रामायण, महाभारत और पुराणोंकी सहायतासे वेदोका अर्थ समझना चाहिये- ‘इतिहास- पुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्। इसके ही इतिहास पुराणको वेदोंके समकक्ष पञ्चम वेदके रूपमें माना गया है। छान्दोग्योपनिषद्में नारदजीने सनत्कुमारजीसे कहा है – ‘स होवाच ऋग्वेदं भगवोऽध्येमि यजुर्वेद सामवेदमाथर्वणं चतुर्थमितिहासपुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम्’ ।’ ‘मैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा चौथे अथर्ववेद और पाँचवे वेद इतिहास-पुराणको जानता हूँ।’ इस प्रकार पुराणोंकी अनादिता, प्रामाणिकता तथा मङ्गलमयताका सर्वत्र उल्लेख है और वह सर्वथा सिद्ध तथा यथार्थ है। भगवान् व्यासदेवने प्राचीनतम पुराणका प्रकाश और प्रचार किया है। वस्तुतः पुराण अनादि और नित्य हैं।
पुराणों में भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार तथा सकाम एवं निष्कामकर्मको महिमाके साथ-साथ यज्ञ, व्रत, दान, तप, तीर्थसेवन, देवपूजन, श्राद्ध-तर्पण आदि शास्त्रविहित शुभ कमोंमें जनसाधारणको प्रवृत्त करनेके लिये उनके लौकिक एवं पारलौकिक फलोंका भी वर्णन किया गया है। इनके अतिरिक्त पुराणोंमें अन्यान्य कई विषयोंका समावेश पाया जाता है। इसके साथ ही पुराणोंकी कथाओंमें असम्भव-सी दीखनेवाली कुछ बातें परस्पर विरोधी-सी भी दिखायी देती हैं, जिसे स्वल्प श्रद्धावाले पुरुष काल्पनिक मानने लगते हैं। परंतु यथार्थमें ऐसी बात नहीं है। यह सत्य है कि पुराणोंमें कहीं-कहीं न्यूनाधिकता हुई है एवं विदेशी तथा विधर्मियोंके आक्रमण अत्याचारसे बहुतसे अंश आज उपलब्ध भी नहीं हैं। इसी तरह कुछ अंश प्रक्षिप्त भी हो सकते हैं। परंतु इससे पुराणोंकी मूल महत्ता तथा प्राचीनतामें कोई बाधा नहीं आती।
‘भविष्यपुराण’ अठारह महापुराणोंके अन्तर्गत एक महत्त्वपूर्ण सात्त्विक पुराण है, इसमें इतने महत्त्वके विषय भी हैं, जिन्हें पढ़-सुनकर चमत्कृत होना पड़ता है। यद्यपि श्लोक संख्या में न्यूनाधिकता प्रतीत होती है। भविष्यपुराणके अनुसार इसमें पचास हजार श्लोक होने चाहिये; जबकि वर्तमानमें अट्ठाईस सहस्र श्लोक ही इस पुराणमें उपलब्ध है। कुछ अन्य पुराणोंके अनुसार इसकी श्लोक संख्या साढ़े चौदह सहस्र होनी चाहिये। इससे यह प्रतीत होता है कि जैसे विष्णुपुराणकी श्लोक संख्या विष्णुधर्मोत्तरपुराणको सम्मिलित करनेसे पूर्ण होती है, वैसे ही भविष्यपुराणमें भविष्योत्तरपुराण सम्मिलित कर लिया गया है, जो वर्तमानमें भविष्यपुराणका उत्तरपर्व है। इस पर्व में मुख्यरूपसे व्रत, दान एवं उत्सवोंका ही वर्णन है।
वस्तुतः भविष्यपुराण सौर-प्रधान ग्रन्थ है। इसके अधिष्ठातृदेव भगवान् सूर्य है, वैसे भी सूर्यनारायण प्रत्यक्ष देवता हैं जो पञ्चदेवोंमें परिगणित हैं और अपने शास्त्रोंके अनुसार पूर्णब्रह्मके रूपमें प्रतिष्ठित हैं।
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1 thought on सम्पूर्ण भविष्य पुराण | Bhavishya Purana Hindi PDF
भविष्य पुराण में भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है। इससे पता चलता है कि ईसा और मुहम्मद के जन्म से बहुत पहले ही भविष्य पुराण में महर्षि वेद व्यास ने पुराण ग्रंथ लिखते समय मुस्लिम धर्म के उद्भव और विकास तथा ईसा मसीह तथा उनके द्वारा प्रारंभ किए गए ईसाई धर्म के विषय में लिख दिया था।
भविष्य पुराण (Bhavishya Puran PDF Download Link)
भविष्य पुराण के अनुसार, इसके श्लोकों की संख्या पचास हजार के लगभग होनी चाहिए। परन्तु वर्तमान में कुल १४,००० श्लोक ही उपलब्ध हैं।
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