पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | औषधीय पौधे | Aushadhiya Paudhe PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | सुधांशु कुमार जैन / Sudhansu Kumar Jain |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 4 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 214 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | आयुर्वेद / Ayurveda |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
जड़ी-बूटियां शब्द सुनते ही हमारे मन में किसी अद्भुत अथवा दैवी शक्तिशाली वनौषधि का विचार आता है। हमारे साहित्य में जड़ी-बूटियों द्वारा न केवल असाध्य से असाध्य रोगों की चिकित्सा के विवरण हैं, वरन उनका अनेक चमत्कारी एवं अविश्वसनीय घटनाओं से भी संबंध मिलता है। अमुक पौधे के बीज को वशीकरण मंत्र पढ़कर, किसी व्यक्ति पर फेंकना और उसे वश में कर लेना, अमुक जड़ चबा लेने से दीर्घायु का सुख प्राप्त कर लेना, अथवा अमुक रस की दो बूंद मात्र से मृत व्यक्ति को जीवित कर लेने आदि की कथाएं प्रायः सुनने को मिलती हैं।
किसी वनौषधि की महिमा का गुणगान करते समय प्रायः कहना इतना प्रभावकारी नहीं समझा जाता था कि वह किसी खोज, विश्लेषण अथवा अनुभव पर आधारित है, जितना कि यह कहना कि वह किसी साधु महात्मा द्वारा दी हुई या बतलाई हुई है। संभव है, यह उस समय की परिस्थितियों के अनुकूल रहा हो।
पुस्तक में दिये हुए रंगीन फोटो व रेखाचित्र, जिन अनेक वैज्ञानिकों तथा संस्थाओं के सहयोग से प्राप्त हुए हैं, एवं जिनके नाम चित्र सूची में अंकित हैं, मैं उन सबका आभारी हूं । स्व. डा. संतापाऊने, न केवल इस पुस्तक के लिए पौधों एवं उनके चित्रों के चुनाव में तथा पुस्तक की रूपरेखा निर्धारित करने में सहायता दी थी, वरन इसके अंग्रेजी संस्करण को पांडुलिपि का अधिकांश भाग स्वयं ध्यानपूर्वक पढ़ा और अनेक उपयोगी सुझाव दिये थे।
औषधि तथा शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का इतिहास कदाचित उतना ही पुराना है, जितना मानव का। किंतु प्रागैतिहासिक काल में घटनाओं को लिपिबद्ध करने का साधन न होने से आज हमें यह ज्ञात नहीं है कि रोग और उसके निवारण के विषय में आरंभ से मानव की क्या धारणाएं या साधन थे।
जब से घटनाओं के प्रमाण मिलते हैं, यह ज्ञात होता है कि पुरातन काल में, अन्य विद्याओं की भांति, रोग के निदान एवं निवारण की विद्या का भी अनेक नक्षत्रों, ऋतुओं एवं दैवी शक्तियों से घनिष्ठ संबंध समझा जाता था, इसलिए चिकित्सा एवं परिचर्या के साथ साथ देवी-देवता, धर्म तथा अंधविश्वास आदि अनेक रूढ़ियां चिकित्सा का एक आवश्यक अंग-सा बन गई थीं।
फिर भी, किसी न किसी प्रकार की वास्तविक चिकित्सा एवं परिचर्या रोग निवारण का साधन अवश्य रही होगी यह निश्चित है। जब कभी आज के वैज्ञानिक युग के मानव की चिर अतृप्त जिज्ञासा ने भूतकाल की गहराइयों में दृष्टि डाली है, तभी से पुरातन काल की घटनाओं के लिखित, अर्द्धलिखित या अलिखित कुछ न कुछ प्रमाण मिल ही गये हैं। और ये सभी हमारे पूर्वजों की (उस परिस्थिति में) योग्यता, दूरदर्शिता एवं पुरुषार्थ भरे इतिहास के रोचक पृष्ठ हैं।
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