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पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | सोमनाथ / Somnath PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Acharya Chatursen Shastri |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 4 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 404 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | साहित्य / Literature, उपन्यास / Novel |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
Somnath in Hindi PDF Summary
सोमनाथ एक ऐतिहासिक तीर्थस्थल है जो भारत के गुजरात राज्य में स्थित है। यह दुनिया के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भगवान शिव को समर्पित है। सोमनाथ मंदिर को कई बार लूटा गया और नष्ट किया गया है, लेकिन हर बार इसे फिर से बनाया गया है।
सोमनाथ मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद बनाया गया था। मंदिर एक भव्य संरचना है जो ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित है। मंदिर में तीन गर्भगृह हैं, जिनमें से प्रत्येक में भगवान शिव का एक स्वरूप है।
सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार, मंदिर की स्थापना स्वयं भगवान चंद्र ने की थी। ऐसा कहा जाता है कि भगवान चंद्र ने अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए सोमनाथ में तपस्या की थी।
सोमनाथ मंदिर हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। हर साल लाखों श्रद्धालु सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर में कई उत्सव मनाए जाते हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण महाशिवरात्रि है।
पुस्तक का उद्देश्य:
- सोमनाथ मंदिर के इतिहास और पौराणिक कथा को बताना।
- सोमनाथ मंदिर के धार्मिक महत्व को समझाना।
- सोमनाथ मंदिर के वास्तुशिल्प का वर्णन करना।
- सोमनाथ में मनाए जाने वाले उत्सवों के बारे में बताना।
पुस्तक का मूल्यांकन:
सोमनाथ में हिंदी में एक अच्छी तरह से लिखी गई और जानकारीपूर्ण पुस्तक है जो सोमनाथ मंदिर के इतिहास, पौराणिक कथा, धार्मिक महत्व, वास्तुकला और उत्सवों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है। पुस्तक में प्रस्तुत जानकारी सरल और सुबोध है, और इसे किसी भी स्तर के पाठक आसानी से समझ सकते हैं। पुस्तक के लेखक, एक इतिहासकार हैं, और उन्होंने पुस्तक में अपने ज्ञान और अनुभव को साझा किया है।
कुल मिलाकर, सोमनाथ में हिंदी में एक ऐसी पुस्तक है जो सोमनाथ मंदिर के बारे में जानने में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक मूल्यवान संसाधन है।
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सोमनाथ महालय के कोट की दक्षिण दिशा में चतुर्थ तोरण था। उसे पार करने पर देवदासियों का आवास था, जो दृढ़ परकोटे से घिरा था। इस समय इस आवास में सात सौ सुन्दरियाँ रहती थीं। कुछ गुजरातिनें थीं, जिनका श्याम वर्ण, मध्यम कद और मृदु भाषण अनायास ही दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करता था। कुछ उत्तरापथ की निवासिनी थीं, जिनकी उन्नत नाक और प्रशस्त मस्तक, गौर वर्ण तथा उच्च स्वर उनके व्यक्तित्व को प्रकट करता था। कुछ सुदूर हिमाचल शृङ्ग के परे की निवासिनी थीं, जिनकी चपटी नाक, ठिगना कद, और पीत वर्ण अलग छटा दिखाता था। कुछ दक्षिणापथ की श्यामल वामाएँ थीं, जो अपने उज्ज्वल वेश और चंचल नेत्रों से क्षण-भर ही में यात्रियों का हृदय जीत लेती थीं।
कोई मृदुल खरज के स्वरों से, कोई कुशल प्रगल्भ आलाप से, कोई भावपूर्ण नृत्य-विलास से, देव और देवभक्त जनों को रिझाती थीं। सब देवार्पित थीं और नृत्य-गीत-विलास से देव सोमनाथ और उनके भक्तगणों की आराधना करती थीं। ये सुन्दरियाँ नख-शिख से विलास, शृङ्गार और भाव की प्रतिमूर्तियाँ-सी बनी रहती थीं। इनके मोह और भाव में फँसे राजा मन्त्र-मुग्ध बने सोमनाथ महालय में महीनों-वर्षों पड़े उनकी नूपुर-ध्वनि का ध्यान करते और उनके प्रेमामृत को चख कर महावर-रंजित पाद-पंकज का, मृदुल-सुखद-कोमल आघात स्पर्श कर जीवन धन्य करते थे।
इस आवास में सबसे पृथक् एक ओर छोटा-सा किन्तु सुन्दर घर, सब से निराला था। इस घर के द्वार पर एक बिल्व वृक्ष था। यही गंगा दासी का घर था। गंगा का यौवन अब सम्पूर्ण हो चुका था। उत्फुल्ल नेत्रों के चारों ओर स्याही की रेखा दौड़ गई थी। गुलाबी गालों की कोर पर एक-आध लकीर दीख पड़ती थी। भौरे से काले और घूंघरवाले केश-गुच्छ के बीच एक-आध श्वेत बाल चाँदी के तार के समान चमकता दीख पड़ता था। उसके सुन्दर दाँत अभी भी वैसे ही आभा बिखेरते थे।
पर होंठों का रस एक रत्ती कम पड़ चुका था। अभिप्राय यह, कि गंगा अब चालीस के निकट पहुँच रही थी, फिर भी उसकी वाणी में, चाल में और खड़ी होने के ढंग में एक उन्मादक आकर्षण था, वह महान् कलाकार थी। उस युग में, दक्षिणांचल में उसके समान गायिका और नर्तकी दूसरी न थी। वह बीस वर्ष तक सोमनाथ महालय में नर्तकी का अधिष्ठात्री-पद भोग चुकी थी, और अब भी वह उसी पद पर आसीन थी।
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