काशी का अस्सी उपन्यास पीडीएफ (Kashi Ka Assi Book) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक का नाम (Name of Book) | काशी का अस्सी / Kashi Ka Assi |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Kashinath Singh |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 214 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Novel |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
शहर बनारस के दक्खिनी छोर पर गंगा किनारे बसा ऐतिहासिक मुहल्ला अस्सी । अस्सी चौराहे पर भीड़-भाड़वाली चाय की एक दुकान । इस दुकान में रात-दिन बहसों में उलझते, लड़ते-झगड़ते गाली-गलौज करते कुछ स्वनामधन्य अखाड़िए बैठकबाज । न कभी उनकी बहसें खत्म होती हैं, न सुबह-शाम । जिन्हें आना हो आएँ, जाना हो जाएँ ।
इसी मुहल्ले और दुकान का ‘लाइव शो’ है यह कृति–उपन्यास का उपन्यास और कथाएँ की कथाएँ । खासा चर्चित, विवादित और बदनाम । लेकिन बदनाम सिर्फ अभिजनों में, आम जनों में नहीं ! आम जन और आम पाठक ही इस उपन्यास के जन्म की जमीन रहे हैं !
- देख तमाशा लकड़ी का
- सन्तों घर में झगरा भारी
- सन्तों, असन्तों और घोंघाबसन्तों का अस्सी
- पांड़े कौन कुमति तोहें लागी
- कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
मित्रो, यह संस्मरण वयस्कों के लिए है, बच्चों और बूढ़ों के लिए नहीं; और उनके लिए भी नहीं जो यह नहीं जानते कि अस्सी और भाषा के बीच ननद-भौजाई और साली बहनोई का रिश्ता है ! जो भाषा में गन्दगी, गाली, अश्लीलता और जाने क्या-क्या देखते हैं और जिन्हें हमारे मुहल्ले के भाषाविद् ‘परम’ (चूतिया का पर्याय) कहते हैं, वे भी कृपया इसे पढ़कर अपना दिल न दुखाएँ-
मुझसे बड़ा अभागा कौन होगा कि जिस कथा का आरम्भ मंगलाचरण से करना चाहिए, उसकी शुरुआत श्रद्धांजलि से करनी पड़ रही है। खैर, यदि विधना को यही मंजूर है तो यही सही !
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