आत्म पूजा (भाग 1, 2, 3) ( Atma Puja (Part 1, 2, 3 ) PDF ) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक का नाम (Name of Book) | आत्म पूजा (भाग 1, 2, 3) / Atma Puja (Part 1, 2, 3 ) |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Osho |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 94 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Adhyatm |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
इसके पूर्व कि हम अज्ञात में उतरें, थोड़ी सी बातें समझ लेनी आवश्यक हैं। अज्ञात ही उपनिषदों का संदेश । जो मूल है, जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह सदैव ही अज्ञात है। जिसको हम जानते हैं, वह बहुत ही ऊपरी है। इसलिए हमें थोड़ी सी बातें ठीक से समझ लेना चाहिए, इसके पहले कि हम अज्ञात में उतरें ।
ये तीन शब्द-ज्ञात, अज्ञात, अज्ञेय समझ लेने जरूरी है सर्वप्रथम, क्योंकि उपनिषद अज्ञात से संबंधित हैं केवल प्रारंभ की भांति । वे समाप्त होते हैं अज्ञेय में ज्ञात की भूमि विज्ञान बन जाती है; अज्ञात – दर्शनशास्त्र या तत्वमीमांसा; और अज्ञेय है धर्म से संबंधित।
दर्शनशास्त्र ज्ञात व अज्ञात में, विज्ञान व धर्म के बीच एक कड़ी है। दर्शनशास्त्र पूर्णत: अज्ञात से संबंधित है। जैसे ही कुछ भी जान लिया जाता है वह विज्ञान का हिस्सा हो जाता है और वह फिर फिलॉसॉफी का हिस्सा नहीं रहता। इसलिए विज्ञान जितना बढ़ता जाता है, उतना ही दर्शनशास्त्र आगे बढ़ा दिया जाता है ।
जो भी जान लिया जाता है विज्ञान का हो जाता है; और दर्शनशास्त्र विज्ञान व धर्म के मध्य बीच की कड़ी है। इसलिए विज्ञान जितनी तरक्की करता है, दर्शनशास्त्र को उतना ही आगे बढ़ना पड़ता है; क्योंकि उसका संबंध केवल अज्ञात से ही है। परन्तु जितना दर्शनशास्त्र आगे बढ़ाया जाता है, उतना ही धर्म को भी आगे बढ़ना पड़ता है; क्योंकि मूलत: धर्म अज्ञेय से संबंधित है।
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