पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | भगवान परशुराम | Bhagwan Parshuram PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | अनाम / Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 8 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 20 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | जीवनी और आत्मकथाएँ / Biography and Autobiography |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
परशुराम जी का पहला पराक्रम और हैहयराज कातिवीर्य अर्जुन का वध महिस्मती नगरी में हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन का शासन था। और कार्तिवीर्य अजुन ने गुनिवर दत्ताय की अनन्य मन से आराधना की थी उनसे एक सुवर्णनिर्मित शक्तिशाली विमान तीव्र गामी रथ और युद्ध भूमि मे सहस्त्र भुजा प्राप्ति का वरदान प्राप्त किया। वरदानों के प्रभाव से वह ब्रिलोकी पर शासन करता था वह धन जन तथा बल के अभिमान में गो ब्राह्मण देवता और ऋषिमुनियों को वस्त करके आनन्द का अनुभव करता था क्षत्रीय ही जगत में उत्तम हैं, इन्हीं के सहारे पृथ्वी खड़ी है शेष तीन वर्णों को क्षत्रियों की उपासना करनी चाहिए। उसने ऐसा आदेश अपनी प्रजा को दे रखा था ।
कार्तवीर्य ने भृगुवति परशुराम की वीरता और पराक्रम की गाथाएं सुनी तो उनके यश से चिढ़ गया। एक दिन वह परशुराम की अनुपस्थिति से यमदग्नि ऋषि के आश्रम में आया उस समय परशुराम जी की माता आश्रम में अकेली थीं। उन्होंने राजा का कंदमूल फलों द्वारा सरकार करना चाहा परन्तु बल में प्रमत्त कार्तवीर्य ने पागल हाथी की तरह ऋषि आश्रम को नष्ट भ्रष्ट कर डाला और काम धेनु को सतान की इच्छा से उसके बछड़े का हरण कर लिया।
वन से आश्रम में लौटने पर परशुराम जी आश्रम की दशा तथा वात्सल्य के कारण तड़पती हुई काम धेनु को देख कर कार्तवीर्य पर कुपित हुए व अपनी माता सम्मुख प्रतिज्ञा की कि वह तत्काल ही कार्तवीर्य का पीछा करके रणभूमि में बलात् उसकी भुजा काट कर ही आश्रम वापिस आएगा। ऐसा ही हुआ उन्होंने कार्तवीर्य के साथ घमासान युद्ध करके उसे परास्त किया और रणभूमि में ही उस यम लोक पहुंचा दिया |
सहस्त्रबाहु के पुत्रों द्वारा यमदग्नि का वध, सहस्त्रबाहु की मृत्यु के दुःख से संतृप्त उसके पुत्रों ने परशुराम जी की अनुपस्थिति में यमदग्नि आश्रम पर आक्रमण कर दिया। आश्रम में प्रवेश करके तीखे शास्त्रों से यमदग्नि ऋषि जी की प्रतिशोध रूप में हत्या कर डाली तथा स्वयं भाग गये।
९. पति की मृत्यु पर रेणुका का रुदन और परशुराम की प्रतिज्ञा : रेणुका मृत पति को देख कर छाती पीट पीट कर उच्च स्वर में रोने लगी तत्काल ही परशुराम जी आश्रम में आए पूज्य पिता का दाह संस्कार करके माता के सामने प्रतिज्ञा की कि मैं 21 बार समस्त पृथ्वी के दुष्ट क्षत्रियों का विनाश करूंगा और पृथ्वी ब्राह्मणों को दान करूंगा।
परशुराम जी का पराक्रम और क्षत्रियों का विनाश सर्व प्रथम रेणुका नन्दन ने पिता के हत्यारे सहस्त्रबाहु के पुत्रों को यमसदन का अतिथि बनाया इसके पश्चात् युद्ध के लिए संगठित हुए चins सहस्त्र क्षत्रियों का एक मात्र धनुष से जीत लिया।
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