पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | महाविद्या महाकाली साधना | Mahavidya Mahakali Sadhana |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | श्री सुमित गिरधरवाल / Mr. Sumit Girdharwal |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 13 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | तंत्र विद्या/Tantra Vidya |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
महाकाली, महाकाल की वह शक्ति है जो काल व समय को नियन्त्रित करके सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करती हैं। आप दसों महाविद्याओं में प्रथम हैं और आद्याशक्ति कहलाती हैं। चतुर्भुजा के स्वरूप में आप चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने वाली हैं जबकि दस सिर, दस भुजा तथा दस पैरों से युक्त होकर आप प्राणी की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को गति प्रदान करने वाली हैं। शक्ति स्वरूप में आप शव के उपर विराजित हैं। इसका अभिप्राय यह है कि शव में आपकी शक्ति समाहित होने पर ही शिव, शिवत्व को प्राप्त करते हैं। यदि शक्ति को शिव से पृथक कर दिया जाये तो शिव भी शव – तुल्य हो जाते हैं। शिव-ई = शव । बिना शक्ति के सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और शिव शव के समान हैं।
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि इस सम्पूर्ण सृष्टि में शिव और शक्ति ही सर्वस्व हैं। उनके अतिरिक्त किसी का कोई आस्तित्व नहीं है।
इस साधना को आरम्भ करने से पूर्व एक साधक को चाहिए कि वह मां भगवती काली की उपासना अथवा अन्य किसी भी देवी या देवता की उपासना निष्काम भाव से करे। उपासना का तात्पर्य सेवा से होता है। उपासना के तीन भेद कहे गये हैं :- कायिक अर्थात् शरीर से, वाचिक अर्थात् वाणी से और मानसिक- अर्थात् मन से ।
जब हम कायिक का अनुशरण करते हैं तो उसमें पाद्य, अर्घ्य, स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पंचोपचार पूजन अपने देवी देवता का किया जाता है। जब हम वाचिक का प्रयोग करते हैं तो अपने देवी देवता से सम्बन्धित स्तोत्र पाठ आदि किया जाता है अर्थात् अपने मुंह से उसकी कीर्ति का बखान करते हैं। और जब मानसिक क्रिया का अनुसरण करते हैं तो सम्बन्धित देवता का ध्यान और जप आदि किया जाता है।
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