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सौंदर्य लहरी, जिसे “सौंदर्य की लहर” के रूप में भी जाना जाता है, एक संस्कृत स्त्रोत्र है जो देवी काली की स्तुति करता है। यह आद्य शंकराचार्य द्वारा रचित है, जो एक महान भारतीय दार्शनिक और धर्मशास्त्री थे।
सौंदर्य लहरी में 100 श्लोक हैं, प्रत्येक में देवी काली के एक अलग पहलू का वर्णन किया गया है। श्लोकों में देवी की अद्भुत सुंदरता और उनके अलौकिक शक्तियों का वर्णन है। श्लोकों में देवी के साथ भक्त के प्रेम और भक्ति का भी वर्णन है।
सौंदर्य लहरी एक अत्यधिक प्रभावशाली और ध्यान योग स्तोत्र है। यह भक्तों को देवी काली के आशीर्वाद प्राप्त करने और उनके जीवन में आध्यात्मिक प्रकाश लाने में मदद करता है।
यहाँ सौंदर्य लहरी का एक हिंदी सारांश दिया गया है:
- श्लोक 1: देवी काली को सभी देवताओं की माता और सर्वोच्च शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है।
- श्लोक 2: देवी काली को अद्भुत रूप और सुंदरता के साथ वर्णित किया गया है।
- श्लोक 3: देवी काली को अलौकिक शक्तियों के साथ वर्णित किया गया है।
- श्लोक 4: देवी काली को भक्तों के लिए एक दयालु और करुणामयी मां के रूप में वर्णित किया गया है।
- श्लोक 5: भक्तों को देवी काली की भक्ति करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
सौंदर्य लहरी एक शक्तिशाली और प्रेरक स्त्रोत्र है जो भक्तों को देवी काली के आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह उन लोगों के लिए भी एक मूल्यवान मार्गदर्शक है जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।
सौंदर्य लहरी ( Soundarya Lahari Pdf ) के बारे में अधिक जानकारी:-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | सौंदर्य लहरी हिंदी अर्थ सहित | soundarya lahari book hindi pdf |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Shankaracharya |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 19 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 415 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Sanskrit Granth |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
” सौंदर्य लहरी” का ” सौंदर्य-माधुर्य “
“सौन्दर्य लहरी” श्री भगवत्पाद आद्य शङ्कराचार्य द्वारा रचित एक प्रासादिक स्तोत्र है जिसके पाठ से अनेक साधकों का महान कल्याण हुआ है । श्री जगजननी आदिशक्ति महात्रिपुरसुन्दरी के प्रकाश से यह सकल चर अचर प्रकाशित है ।
माँ की इस स्तुति से साधक शिशुओं के हृदय में अपार शान्ति एवं अपूर्व तेज और ओज का दिव्य समावेश होता है— यद अनेकों का अनुभव है । उसी महान मंगलमय स्तोत्र की श्रीमत्स्वामीजी श्री विष्णुतीर्थजी महाराज ने योगपरक अपूर्व व्याख्या की है जो ज्ञान-विज्ञान एवं व्यक्तिगत यौगिक अनुभूतियों से समवेत होने के कारण योगसाधकों के लिए अनमोल बन गयी है ।
वेद, उपनिषद, गीता, सप्तशति आदि ग्रंथों के प्रचुर उद्धरण एवं प्रमाण से ग्रंथ का एक-एक पृष्ट परिपुष्ट है । पूर्वानुक्रमणिका के कारण यह अत्यन्त गहन एवं रहस्यपूर्ण विषय बहुत ही सरलता से संग्रा हो गया है । क्लिष्ट शब्दों के अर्थ, भावार्थ एवं संक्षिप्त टिप्पणी तथा विपय-विवेचन के विवरण से संपूर्ण ग्रंथ अपने आन्तरिक सौन्दर्य- माधुर्य के साथ आस्वाद्य हो गया है ।
लेखक ‘अनुभवी’ व्यक्ति मालूम होते हैं, साधना के गुह्य पथ का आपको अनुभव है, वे उसके रहस्य और मर्म को भली भांति जानते- समझते हैं और समझाने की भाषा इतनी प्राञ्जल, मधुर एवं मोहक है।
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