वास्तु शास्त्र ( Vastu Shastra PDF ) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक का नाम (Name of Book) | वास्तु शास्त्र | Vastu Shastra |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 108 KB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 19 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | Vastu Shastra |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
वेदों से संगृहीत शास्त्रों में से ज्योतिष शास्त्र ” एक है। इसे “वेदों का नेत्र ” भी कहते हैं। इसी शास्त्र का एक अंग है “वास्तु शास्त्र ” । यह शास्त्र मंगलमय एवं शिल्पादि निर्माणों का आधार है। यह संसार के समस्त प्राणियों को समान रूप से श्रेय पहुँचानेवाला शास्त्र है। इसे ” प्रगतिदायक निर्माण ” भी कह सकते हैं। यह कल्पनाओं के बजाय अनुभव को प्रधान्यता देनेवाला एक अपूर्व शास्त्र है। इस शास्त्र को सृष्टि वैचित्र्य एवं मानव कल्याण के बीच की कडी भी मान सकते हैं। क्यों कि दिशा मानव की दशा को बदल सकती है।
वास्तु शास्त्र प्रचीन काल से है। लेकिन राजा महाराजाओं तक ही सीमित होकर आम जनता तक पहुँच न पाया। धीरे धीरे कई परिवर्तन आये। तानाशाही के स्थान में प्रजातंत्र का आविर्भाव हुआ। शास्त्रीय अथवा तकनीकी प्रगति के कारण ” समाचार क्रान्ति ” आयी। फलस्वरूप संपन्न लगों तक ही सीमित रहनेवाला वास्तु शास्त्र ” आम आदमी तक पहुँच गया ।
” अर्थ मनर्थं “नास्ति ततस्सुख लेशं ” आदि श्लोंकों से पता चलता है कि अर्थ अनर्थदायक है। लेकिन भ्राँतिवश लोग समझते हैं कि धन ही सब कुछ है। धनवान ही बलवान, गुणवान एवं भगवान है। लेकिन यह सच नहीं है। मैंने कई धनवानों से मिला और मानसिक प्रशांतता के लिए उनकी तडप भी देखी। अन्त में इस निर्णय पर पहुँचा कि ” अर्थं दुःख भाजनं ” की कहावत सच है। मानसिक प्रशांतता से बढकर अमूल्य कुछ और है ही नहीं। “जब आवत संतोष धन, सबधन धूरि समान ।”
यदि हमें सुख-चैन, भोग, भाग्य आदि प्राप्त करना है तो ” वास्तु का अनुसरण अनिवार्य है। क्यों कि विधातृ निर्मित पाँच भौतिक शरीर तथा मानव निर्मित निर्माणों के बीच निकट सम्बन्ध है । इसलिए इसी सम्बन्ध की जानकारी दिलाने वाले वास्तु शास्त्र ” को अपनाना सर्व श्रेयोदायक माना जाता है।
वास्तु
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