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दुर्गा चालीसा आरती सहित PDF ( Durga Chalisa with Aarti PDF Hindi Book ) के बारे में अधिक जानकारी
पुस्तक का नाम (Name of Book) | दुर्गा चालीसा आरती सहित PDF | Durga Chalisa with Aarti PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | Anonymous |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 1 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 2 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | धार्मिक / Religious |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
श्री दुर्गा चालीसा पाठ | Durga Chalisa
नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ।।
निराकारी है ज्योति तुम्हारी । तिहूँ लोक फेली उजियारा ।।
शशि ललाट मुख महाविशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।।
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ।।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।।
प्रलय काल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित्य ध्यावैं ।।
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । परगट भई फाड़ कर खम्बा ।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।।
लक्ष्मी रूप धरौ जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं ।।
क्षीरसिंधु में करत विलासा । दयासिंधु दीजै मन आसा ।।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी ।।
मातंगी धूमावती माता। भुवनेश्वरी बगला सुखदाता ।।
श्री भैरव तारा जग तारिणी । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ।।
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी ।।
कर में खप्पर खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै ।।
सोहे अस्त्र और त्रिसूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला ।।
नगरकोटि में तुम्हीं विराजत । तिहूँ लोक में डंका बाजत ।।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्त बीज शंखन संहारे । ।
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी । ।
रूप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ।।
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ।।
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजैं नर नारी ।।
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहीं आवै ।।
ध्याबे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताको छुटि जाई ।।
जोगी सुर मुनि कहत बुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।।
शंकर आचरज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो ।।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्बा भवानी ।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहि कीन विलंबा ।।
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ।।
आशा तृष्णा निपट सतावै। मोह मदादिक सब विनशावें ।।
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ।।
करो कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला ।।
दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब कुछ भोग परम पद पावै ।।
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्बा भवानी ।।
श्री दुर्गा आरती | Maa Durga Aarti.
आरती श्री दुर्गा जी की
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्याम गौरी मैया जय आनन्द करणी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ।। टेक।।
माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोऊ नैना चन्द्रबदन नीको।। जय ।।
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गलमाला कण्ठन पर साजै ।। जय ।।
शुम्भ निशुम्भ विडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ।। जय ।।
चण्ड मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे ।।जय.।।
ब्राह्माणी रुद्राणी तुम कमलारानी।
अंगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ।। जय ।।
चौंसठ योगिनी मंगल गावें नृत्य करत भैरू ।
बाजत ताल मृदंगा अरु बाजत डमरू ।। जय ।।
तुम हो जब की माता तुम ही हो भता।
संतन की दुखहर्ता सुख सम्पत्तिकर्त्ता ।। जय. ।।
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी ।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी।। जय ।।
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति।। जय ।।
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै।। जय ।।
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