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कुमारसंभव | Kumarsambhav

कुमारसंभव | Kumarsambhav Book/Pustak Pdf Free Download

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Category: उपन्यास / Novel

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Table of Contents

पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-

पुस्तक का नाम (Name of Book)कुमारसंभव | Kumarsambhav
पुस्तक का लेखक (Name of Author)कालिदास / Kalidas
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)1.2 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)96
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)उपन्यास / Novel

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

संस्कृत साहित्य में कालिदास का स्थान अद्वितीय है। उनकी रचना के विलक्षण सौन्दर्य को उनके पश्चाद्वर्ती सभी टीकाकारों ने, आचोलकों ने तथा सहृदय पाठकों ने मुक्तकंठ से सराहा है। निस्सन्देह ही कविता का जैसा मनोरम रूप कालिदास की रचनाओं में प्रस्फुटित हुआ है वैसा अन्यत्र कहीं नहीं हुआ। इसलिए आश्चर्य नहीं कि उनके विषय में अनेक परवर्ती कवियों ने अनेक प्रशंसासूचक उक्तियां लिखी हैं। उदाहरण के लिए सोडल कवि ने कालिदास की प्रशंसा करते हुए कहा है कि ‘वे कवि कालिदास धन्य हैं जिनकी पवित्र और अमृत के समान मधुर कीर्ति वाणी का रूप धारण करके सूर्यवंश-रूपी समुद्र के परले पार तक पहुंच गई है।

ख्यातः कृती मोऽपि च कालिदासः शुद्धा सुधास्वादुमती च यस्य। वाणीमिषाच्चण्डमरीचिगोत्र सिन्धोः परं पारमवाप कीर्तिः।।

इसी प्रकार भरतचरित्र के लेखक श्रीकृष्ण कवि ने कालिदास की वाणी की प्रशंसा करते हुए कहा है कि ‘कमलिनी की भांति निर्दोष तथा मोतियों की माला की भांति अनेक गुणों से युक्त और प्रियतमा की गोद की भांति सुखद वाणी कालिदास के सिवाय अन्य किसी की नहीं है।’

अस्पृष्टदोषा नलिनीव दृष्टा हारावलीव ग्रथिता गुणौघैः। प्रियाकपालीव विमर्दहृद्या न कालिदासादपरस्य वाणी ।।

जयदेव कवि ने कालिदास की अन्य संस्कृत कवियों के साथ गणना करते हुए कालिदास को कविता-कामिनी का विलास बताया है और कालिदास को कविकुल गुरु कहा है उन्होंने लिखा है कि ‘जिस कविता सुन्दरी का केश-कलाप चोर कवि है, जिसके कर्णफूल का स्थान मयूर कवि ने लिया हुआ है, जिसका हास भास कवि है और कविकुलगुरु कालिदास जिसके विलास हैं, हर्ष कवि जिसके हर्ष हैं और हृदय में रहनेवाला पंचवाण अर्थात् कामदेव वाण कवि है, वह कविता-सुन्दरी किस व्यक्ति को आनन्दित न कर देगी!’

यस्याचोरश्चिकुरनिकर: कर्णपूरो मयूरः, भासो हास: कविकुलगुरु: कालिदासौ विलास:। हर्षो हर्षो हृदयवसतिः पञ्चवाणस्तु वाणः, केषां नैया कथय कविताकामिनी कौतुकाय ।।

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