काशी का इतिहास Book | Kashi ka itihas Book PDF

पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-

पुस्तक का नाम (Name of Book)काशी का इतिहास / Kashi Ka Itihas PDF
पुस्तक का लेखक (Name of Author)डा. मोतीचन्द्र / Dr. Motichandra
पुस्तक की भाषा (Language of Book)हिंदी | Hindi
पुस्तक का आकार (Size of Book)16 MB
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook)512
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)इतिहास / History

पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-

किमी नगर के इतिहास को जानने के पहले उसकी प्राकृतिक बनावट के बारे में जानना अत्यत आवश्यक है। इतिहास के भौगोलिक आधारो को ठीक-ठीक समझने के बाद हम उस स्थान से सबंधित बहुत-से जटिल प्रश्नो पर अनायास ही प्रकाश डाल सकते हैं, और उसकी बहुत-सी गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं । सुदूर प्राचीन काल में वाराणसी की स्थापना का आधार धार्मिक न था ।

इतिहास से हमें पता चलता है कि हिन्दू धर्म से बनारस का सवध बहुत बाद की घटना है, क्योकि मनुस्मृति आदि ग्रंथो में तो काशी की साधारण सी चर्चा है। बौद्ध जातको में वाराणसी की धार्मिक प्रवृत्तियो के बदले काशी की बहुत सी बातो पर प्रकाश डाला गया है। वास्तव में उस प्राचीन युग में काशी का सनातन आर्य धर्म से तो कोई विशेष सबंध नहीं था। इसमें सदेह नही कि काशीवासी धार्मिक कट्टरता के पक्षपाती न थे, दूसरी ओर वे विचार स्वतंत्रता के पक्षपाती थे तथा इस देश की मूल धार्मिक धाराबो का जिनमें शिव और यक्ष नाग पूजा मुख्य थी काशी में अधिक प्रचार था ।


इतिहास की जाच पडताल करने पर पता चलता है कि काशी और उसकी राजधानी वाराणसी का महत्व विशेष रूपसे उसका व्यापारिक और भौगोलिक स्थिति के कारण था । जब सरस्वती के किनारे से नार्यों का काफिला विदेध माधव के नेतृत्व में आधुनिक उत्तर प्रदेश के घने जगलो को चीरता हुआ सदानीरा अथवा गडकी के किनारे जा पहुँचा और कोसल जनपद की नीव पडी, उसी समय सभवत काश्योने वनारस में अपना अड्डा जमाया। अगर ध्यान देकर देखा जाय तो उनके यहाँ भूस्थापन का कारण वाराणसी की भौगोलिक स्थिति है ।

बनारस शहर अर्धचन्द्राकार में गंगा के बायें किनारे पर अवस्थित है (अ० २५°१८′ उत्तर और देशातर ८३°१’ ५० ) । नगर की रचना एक ऊँची ककरीले करारे पर जो गंगा के उत्तरी किनारे पर तीन मील फैली है, होने से नगर को बाढ़ से कोई खतरा नही रहता । आधुनिक राजघाट का चौरस मैदान जहाँ नदी-नालों के कटाव नही मिलते, शहर बसाने के लिए उपयुक्त था। एक तरफ वरना और दूसरी तरफ गंगा नगर की प्राकृतिक खाई का काम देती हैं।

उत्तर-पश्चिम की ओर काशी के मार्ग में ऐसा कोई नैसर्गिक साधन जैसे पहाडियां, झील, दुलंघ्य नदी इत्यादि नही है जिससे नगर के बचाव में सहायता हो पर यह तो निश्चित है कि काशी के आस-पास के घनघोर वन, जिसका उल्लेख जातकों में आया है, काशी के बचाव में काफी सहायक रहे होगे । आधुनिक मिर्जापुर जिले की विन्ध्याचल की पहाडियां भी बनारस के बचाव में महत्वपूर्ण थी।

इतिहास में अनेक ऐसे प्रकरण है जिनसे पता लगता है कि शत्रुओ के घावो से त्रस्त होकर वनारस के शासक विन्ध्याचल की पहाडियो में जा छिपते और मौका मिलते ही पुन शत्रुओ को मार भगाते थे । १८ वी सदी के मध्य में बलवन्तसिंह ने भी इसी नीति का सहारा लेकर अवध के नवाब शुजाउद्दौला को काफी छकाया था।

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