पुस्तक का विवरण (Description of Book) :-
पुस्तक का नाम (Name of Book) | कर्मयोग / Karmyog PDF |
पुस्तक का लेखक (Name of Author) | स्वामी विवेकानंद / Swami Vivekanand |
पुस्तक की भाषा (Language of Book) | हिंदी | Hindi |
पुस्तक का आकार (Size of Book) | 4 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ (Total pages in Ebook) | 149 |
पुस्तक की श्रेणी (Category of Book) | अध्यात्म / Adhyatm |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
प्रस्तुत पुस्तक स्वामी विवेकानंद के न्यूयार्क में दिये गये आठ व्याख्यानों का अनुवाद है । यद्यपि कोई योग औरों से न्यून नहीं, उनका समुचित अभ्यास करने से समान फल मिलता है, तथापि कर्मयोग के भीतर जो एक साहसिकता, एक शूरता है, वह शायद औरों में नहीं । अबाध गति से चलते संसार-चक्र में उसके कठोर घर्पण का भय न कर कूद पड़ना, उसके अनगनित यंत्रों की पीड़ा सह अंत में उसे वश में कर लेना, जीवन की यह कविता इन व्याख्यानों में सविशेप झलकती है।
गीता की वाणी का अनुकरण करते स्वामी विवेकानंद फिर एक बार सबको संसार का वीरता पूर्वक सामना करने के लिये आहूत करते हैं । यहाँ उन्होंने अंकपित स्वर से मनुष्य मात्र की महत्ता की घोषणा की है। क्षुद्र से क्षुद्र स्थिति का व्यक्ति भी कर्मयोगी हो महत्तम के सम्मान का अधिकारी हो सकता है । अपने-अपने विकास का मार्ग सबके आगे खुला है । कर्मयोग की यही शिक्षा है कि मनुष्य उसपर चलकर अपनी पूर्णता का अनुभव कर सके ।
कर्म शब्द संस्कृत की “कु= करना” धातु से बना है। जो कुछ भी किया जाता है, कर्म है । कर्मों का फल भी इसका अर्थ होता है। दर्शन-शास्त्र में इसका अर्थ कभी-कभी उस प्रयुक्त परिणाम से होता है जिसके कि हमारे पूर्वकर्म कारण हैं । परंतु कर्म-योग में हमें उसी कर्म से वास्ता है जिसका अर्थ काम है ।
सत्य का ज्ञान मनुष्य जाति का उचित ध्येय है, इसी आदर्श को प्राच्य दर्शन हमारे सामने रखते हैं । मनुष्य का ध्येय सुख नहीं, ज्ञान है । सांसारिक सुख और आनन्द का अंत हो जाता है । मनुष्य की यह भूल है जो वह समझता है कि ध्येय सुख है ; संसार की सभी विपत्तियों की जड़ यह अंध-विश्वास है कि सुख ही वह आदर्श है जिसे पाने के लिये प्रयत्नपर रहना चाहिये !
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